Chhattisgarh Congress के नईया के कौन खेवय्या ?….देखिए “चुनाव चालीसा”
छत्तीसगढ़ में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले है. कांग्रेस 2018 की जीत को रिपीट करने की कोशिश में है. लेकिन इस साल चुनावी समीकरण दिलचस्प होने वाली है. क्योंकि इस साल सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस के बीच टक्कर नहीं है. इस साल आम आदमी पार्टी भी पूरी ताकत से चुनावी मैदान में उतर रही है. साथ ही सर्व आदिवासी समाज क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की फिराक में है. बहुजन समाज पार्टी और जेसीसी जे अलग अलग चुनाव लड़ने जा रही है. यानी कुल मिलाकर चुनावी मैदान में सभी पार्टियों के घोड़े दौड़ने वाले है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी किसके नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरेगी यही आज समझते की कोशिश करते है हमारे खास कार्यक्रम चुनावी चालीसा में
देखे हमारा खास कार्यक्रम “चुनावी चालीसा”
2018 में ये थे मुख्यमंत्री पद के दावेदार
साल दो हजार अठ्ठारह में दिसंबर का महीना जब छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई. लेकिन मुख्यमंत्री कौन बनेगा इस पर फैसला नहीं हो पा रहा था. क्योंकि दावेदारों में 4 लोगों के नाम सामने आए थे. तात्कालिक पीसीसी चीफ भूपेश बघेल, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे टी एस सिंहदेव केंद्रीय मंत्री रहे डॉ. चरणदास महंत और लोकसभा सांसद रहे ताम्रध्वज साहू इन चारों की तस्वीर राहुल गांधी के साथ जारी की गई और तमाम उठापटक के बीच आखिर में भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनाया गया
आईए पहले जान लेते है कि दो हजार तेईस विधानसभा चुनाव में इन चारों नेताओं का क्या रोल रहेगा ?
सरगुजा नरेश टी एस सिंहदेव याने टीएस बाबा मंझे हुए राजनेता है, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के ताकतवर नेताओं में टीएस सिंहदेव का नाम आता है.कांग्रेस की सरकार आने के बाद सियासी उथल पुथल में बाबा भूपेश की लड़ाई पूरे देश ने देखी सूनी, जिस संभाग सरगुजा से टी एस सिंहदेव आते है वहां पिछले चुनाव में कांग्रेस ने चौदह के चौदह सीट में धमाकेदार जीत दर्ज की थी. इसलिए सिंहदेव की नाराजगी कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकती थी. ऐसा माना जा रहा है कि फिलहाल डिप्टी सीएम का पद मिलने और केंद्रीय सलेक्शन टीम में जगह मिलने से सिंहदेव की नाराजगी जरुर दूर हो गई होगी, सिंहदेव 2018 के चुनाव में घोषणा पत्र के अलावा कई पीढ़ियों का विरासत लेकर के दो हजार अठ्ठारह के चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण प्रबंधन आर्थिक क्षेत्र में भी बहुमूल्य योगदान पार्टी को प्रदान किए थे. साथ ही साथ महाराजा होने के बाद भी उनका व्यक्तित्व जन मानस तक पहुंचा है. तो पार्टी उनके अनुभव और सेवाओं के आधार पर उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे फिर से फतह हासिल करना चाहेगी, हालांकि बाबा द्वारा घोषणा पत्र समीति के अध्यक्ष बनने से इंकार के बाद राजनीतिक गलियारों में इसे लेकर तरह तरह की चर्चाए होना शुरु हो गई थी कि घोषणा पत्र में किए गए वादे पूरा नहीं हो पाने पर बाबा ने यह कदम उठाया होगा…कारण जो भी रहा हो बाबा इस बार सेफ गेम खेलते दिख सकते है
दो हजार अठ्ठारह के चुनाव में डॉ चरणदास महंत की क्या रही भूमिका !
बात करे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सीनियर लीडर डाक्टर चरणदास महंत की तो वे लगभग 40 साल से राज्य और केंद्र सरकार का हिस्सा रहे है. राजनीति का लंबा अनुभव के साथ कांग्रेस के संगठन में मजबूत पकड़ रखते है. महंत छत्तीसगढ़ सबसे ज्यादा विधानसभा सीट वाले संभाग बिलासपुर संभाग से आते है. यहां 24 विधानसभा सीट है. जहां कांग्रेस के पास इस वक्त 13 सीट है. इस लिहाज से विधानसभा अध्यक्ष डॉ. महंत की भूमिका भी काफी अहम मानी जा रही है क्योंकि केवल यही संभाग ऐसा है जहां आधे सीट कांग्रेस के पास और आधे बीजेपी, जेसीसी जे और बसपा के पास है. इसलिए बिलासपुर संभाग से दो हजार तेईस के जंग में कांग्रेस किसी भी हाल में कमजोर नहीं होना चाहेगी . इस लिए महंत की भूमिका अहम मानी जाती है.
गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू प्रदेश में ओबीसी वोट बैंक का है बड़ा चेहरा
दो हजार चौदह के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद छत्तीसगढ़ में ताम्रध्वज साहू ने जीत हासिल की थी. राज्य के ग्यारह लोकसभा सीट में कांग्रेस केवल एक सीट ही जीत सकी थी. जिसने सब को चौका दिया था, छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू राज्य में सबसे बड़े वोट बैंक साहू समाज यानी ओबीसी वर्ग से आते है. राज्य में चालिस प्रतिशत से अधिक की जनसंख्या ओबीसी वर्ग की है जो राज्य चुनावी दशा और दिशा कहीं भी मोड़ने की ताकत रखती है लिहाजा इस हिसाब से ताम्रध्वज साहू का दो हजार तेईस के चुनाव में काफी अहम रोल माना जा रहा है. इसमें कोई शक नहीं कि छत्तीसगढ़ में ओबीसी की राजनीति में साहू समाज सामाजिक रूप से सशक्त और संख्या बल में भी बहुलता रखता है. तो इस फैक्टर को कांग्रेस पार्टी सकारात्मक रूप से दो हजार तेईस के चुनाव में भी बरकरार रखना चाहेगी
सीएम भूपेश ओबीसी वर्ग के देश में बड़े नेताओं में शुमार
बात करे सूबे के मुखिया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तो वे इस वक्त केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं ओबीसी वर्ग के देश में बड़े नेताओं में जाने पहचाने जा रहे है. राज्य में सीएम की कुर्सी में बैठने के बाद साढ़े चार साल की सरकार में सीएम बघेल ने अपनी पॉलिसी से घर घर तक पहुंचे है. इसके साथ अपने छत्तीसगढ़िया अंदाज, छत्तीसगढ़ियावाद के चलते राज्य के बड़े वोट बैंक में सीएम ने पैठ तो जमा ही लिया है. हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में बघेल की भूमिका और राज्य के कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन करा कर केंद्र के सामने भी बघेल ने अपना लोहा मनवाया है
बात करे कांग्रेस के सामने की चुनौती की तो कांग्रेस को SC-ST को जोड़ना बड़ी चुनौती बन कर सामने आ सकता है अगर कोई अनहोनी नहीं हुआ तो वर्तमान नेतृत्व में ही होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी जाएगी और पार्टी दो हजार अठ्ठारह के चुनाव के एक्सपीरियंस से सामूहिक नेतृत्व को महत्व दे सकती है इन चारों के अलावा आदिवासी वर्ग और अनुसूचित वर्ग का कोई भी सदस्य इसमें शामिल नहीं होना कांग्रेस को कही न कही नुकसान पहुंचा सकती है
इस बार का चुनाव इस मायने में दिलचस्प होते हुए दिख रहा है क्योंकि इस बार मुख्य विपक्षी पार्टी यानी भाजपा की शीर्ष नेतृत्व मैदान में उतर चुकी है जबकी दो हजार अठ्ठारह के चुनाव में केवल राज्य की इकाई ने चुनाव लड़ा था. तो अनुमान है कि चुनाव आते तक सीटों का अंतर कम हो जाएगा जिसके चलते माना जा रहा है कि इस बार बराबरी की टक्कर हो सकती है