नई शिक्षा नीति के बाद क्या छत्तीसगढ़ में स्थानीय मातृभाषाओं में हो सकेगी पढ़ाई लिखाई ?… मोदी की गारंटी और केंद्रीय शिक्षा मंत्री के वादों के बाद भी….
नवीन देवांगन । आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है, पूरे विश्व में आज के दिन अपनी मातृभाषा के सरंक्षण और संवर्धन के लिए यह दिवस धूमधाम से मनाया जाता है, बात करे छत्तीसगढ़ की तो छत्तीसगढ़ का निर्माण एक नवबंर 2000 को भाषाई आधार पर ही हुआ था पर अफसोस की बात यह है कि दो दशक से ज्यादा बीत जाने के बाद भी यहां कि स्थानीय भाषाओं बोलियों का वह स्थान अभी तक नहीं मिल पाया है जिसकी उम्मीद अलग राज्य बनने के बाद यहां के स्थानीय निवासियों ने की थी
छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा, हल्बी, गोंडी, कुडूख, भतरी जैसी स्थानीय भाषाओं के सरंक्षण और संवर्धन के लिए छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का गठन भी किया गया था, छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा भी दिया जा चुका है यहां यह बताना भी लाजमी होगा कि छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे ज्यादा लगभग 80 प्रतिशत लोगो की मातृभाषा छत्तीसगढ़ी ही है, शहरो की अपेक्षा आज भी गांवो में छत्तीसगढ़ी ही काम काज और व्यवहार की मुख्य भाषा है
कैसे होगा मातृभाषा का सरंक्षण और संवर्धन ?
नई शिक्षा नीति और मोदी की गारंटी की बात माने तो दोनो प्राथमिक स्तर तक के बच्चों को मातृभाषा में पढ़ाई लिखाई की पूरजोर रुप से वकालत करते है, हाल ही में राजधानी रायपुर आए केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने अपने उद्बोधन में भी प्राथमिक स्तर तक की पढ़ाई लिखाई मातृभाषा में करने कराने पर जोर दिया, उन्होने ने मंच से कहा था कि अब के समय में कोई भी भाषा स्थानीय भाषा नहीं रह गया है भारत में बोले जाने वाली हर भाषा अब राष्ट्रीय भाषा है, नई शिक्षा नीति और मोदी की गारंटी के बाद छत्तीसगढ़ के स्थानीय लोगो में प्राथमिक स्तर तक मातृभाषा की पढ़ाई लिखाई शुरु होने की उम्मीद जग गई है
देखे केंद्रीय शिक्षामंत्री ने क्या कहा था
मातृभाषा की पढ़ाई माध्यम या विषय के रुप में
नई शिक्षा नीति के बाद शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों के बीच एक नई चर्चा छिड़ गई है, मातृभाषा की पढ़ाई क्या एक विषय के रुप में होनी चाहिए या माध्यम के रुप में ?…छत्तीसगढ़ में पिछले 30 दशकों से छत्तीसगढ़ के स्थानीय भाषा में पढ़ाई लिखाई और काम काज की मांग को लेकर जमीनी लड़ाई लड़ रहे छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के संयोजक नंद किशोर सुकूल जी का मानना है कि मातृभाषा कि पढ़ाई विषय के रुप में कराने भर से कुछ नहीं होगा उसे माध्यम के रुप से कम से कम प्राथमिक स्तर तक के बच्चों को उनके सर्वांगिण विकास के लिए विषय के रुप में न करके माध्यम के रुप में पढ़ाई लिखाई होनी चाहिए, इसी मांग को लेकर वे फिलहाल रायपुर में गांधी प्रतिमा के सामने सत्याग्रह भी कर रहे है
सरकार कह रही है हो रही है पढ़ाई लिखाई
छत्तीसगढ़ी या अन्य स्थानीय भाषा बोली में पढ़ाई लिखाई का मुद्दा जनप्रतिनिधि,विधायको, सांसदगण समय समय पर उचित मंच पर उठाते आऐ है,फलस्वरुप सरकार को प्राथमिक स्तर में इसकी पढ़ाई लिखाई के तरफ ध्यान देना पड़ा, पर अभी भी सरकारी स्तर पर पढ़ाई लिखाई कराने के तरीके को लेकर लोगो में नाराजगी है, छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के संयोजक नंद किशोर सुकूल जी का कहना है कि अभी जो पुस्तके या पाठ्य सामग्री बच्चों को उपलब्ध कराई जा रही है या जिसके जरिए उन्हें पढ़ाया जा रहा है वह एक विषय के रुप में है न कि माध्यम के रुप में उसमें भी द्विभाषीय पाठ्यक्रमों और पुस्तकों का सहारा लिया जा रहा है जो कि बच्चों के मन को और दिगभ्रमित करने वाला साबित हो सकता है नंद किशोर सुकूल इसी मांग को लेकर सत्याग्रह पर बैठे हुए है कि बच्चों को प्राथमिक स्तर तक उनके मातृभाषा याने माध्यम के रुप में पढ़ाया जाए न कि एक विषय के रुप में जिसकी वकालत नई शिक्षा नीति और पीएम मोदी समेत केंद्रीय शिक्षा मंत्री भी भरे मंच से कर चुके है
मातृभाषा के माध्यम के रुप से पढ़ाई लिखाई से क्या है फायदे
अनेको शोध में यह पाया गया है कि कम से कम प्राथमिक स्तर तक बच्चों को उनकी मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाए जो बच्चों के सम्रग विकास के लिए निहायत ही जरुरी है, अनेको शिक्षाविदों ने इसकी पैरोकार करते हुए इसे अत्यंत जरुरी बताया है इसलिए भारत सरकार की नई शिक्षा नीति में इस बात पर पूरा जोर दिया गया है, देश भर में नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद अब यह माना जा रहा है कि प्राथमिक स्तर के बच्चों को उनके सर्वांगिण विकास के लिए नए सत्र से उन्हें उनकी मातृभाषा में पढ़ने लिखने का मौका मिलने लगेगा
मातृभाषा दिवस क्यों मनाया जाता है?
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने के पीछे का मकसद है कि दुनियाभर की भाषाओं और सांस्कृतिक का सम्मान हो. इस दिन तो मनाये जाने का उद्देश्य विश्व भर में भाषायी और सांस्कृतिक विविधता का प्रचार-प्रसार करना है और दुनिया में विभिन्न मातृभाषाओं के प्रति लोगों को जागरुक करना है.
विश्व भर में बोली जाती हैं इतनी भाषाएं, भारत में हैं 1652 भाषाएं
विश्व में जो भाषाएं सबसे ज्यादा बोली जाती हैं. उनमें अंग्रेजी, जैपनीज़, स्पैनिश, हिंदी, बांग्ला, रूसी, पंजाबी, पुर्तगाली, अरबी भाषा शामिल हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार लगभग 6900 भाषाएं हैं जो विश्व भर में बोली जाती हैं. इनमें से 90 प्रतिशत भाषाएं बोलने वाले लोग एक लाख से भी कम हैं. भारत की बात करें तो 1961 की जनगणना के अनुसार, भारत में 1652 भाषाएं बोली जाती हैं.