छत्तीसगढ़रायपुर संभाग

तस्वीरों में देखिए ‘छेरछेरा’ लाइव : बैंड की धुन…कहीं ढोलक की थाप…झांझ-मंजीरा बजाते निकली युवाओं की टोलियां, किसानों ने भी खुले हाथों से भर दी झोलियां

केशव पाल @ तिल्दा-नेवरा | हिंदू संवत्सर के पौष माह की पूर्णिमा तिथि को मनाए जाने वाला अन्न दान का लोकपर्व छेरछेरा की अंचल में धूम रही। शुक्रवार की सुबह बच्चें, युवक व युवतियां हाथ में थैला, टोकरी, झोली व बोरी आदि लेकर घर-घर छेरछेरा मांगने गए।

दान मांगने आए टोलियों को घर वालें भी उत्साह के साथ धान का दान कर झोलियां भर दी। सारागांव, निलजा, पवनी, मढ़ी, खौना, देवगांव, कुर्रा, बंगोली, जरौदा, बरौंडा, खपरी, जंजगीरा, सोनतरा आदि गांवों के गली मोहल्ले में बच्चे घर-घर जाकर अन्न की मांग करते देखे गए।

पर्व को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखा गया। खासकर ग्रामीण अंचलों में जहां बच्चों की टोलियां उत्साह के साथ घर-घर पहुंचकर अन्न दान लेने पहुंचे।

वहीं इस दिन सुबह से दोपहर तक ग्रामीण अंचलों में ‘छेरछेरा…माई कोठी के धान ल हेरहेरा’… ‘अरन-बरन कोदो दरन…जभे देबे तभे टरन’ की गुंज गुंजती सुनाई दी। इस बार युवाओं की टोलियां पिछले बार की अपेक्षा अधिक नजर आई।

हालांकि इस बार धान की उपज कुछ कम हुई है बावजूद किसानों ने उत्साह के साथ धान का दान किए। धान की फसल के खेतों से खलिहानों में आने की खुशी और अच्छी फसल को लेकर आद्रा और पुर्नवसु नक्षत्र में लोक पर्व छेरछेरा मनाया जाता है।

इस दिन बच्चों की झुंड घर-घर जाकर अन्न का दान मांगते दिखे। इस दिन किसानों ने धन नहीं बल्कि धान का दान किया। मान्यता है कि, इस दिन जो भी दान किया जाता है वह महादान होता है।

वहीं इधर, छेरछेरा के दिन अन्नपूर्णा देवी और मां शाकंभरी देवी की भी पूजा की गई। गांव-गांव में झांझ, मंजीरा, मांदर और बैंड बाजे की धुन में वाद्य यंत्रों व पारंपरिक बाजे-गाजे के साथ युवाओं की टोली दान मांगने द्वार-द्वार पर दस्तक दिए।

किसान भी खुले हाथों से बच्चों को अन्न का दान करते नजर आए। छेरछेरा के दिन प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल मां बंजारी धाम खपरी-मढ़ी में पारंपरिक छेरछेरा पुन्नी मेला का आयोजन किया गया। जिसमें दूर-दूर से हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्वालुओं ने दर्शन पूजन कर मेले का आनंद उठाए।

ज्योतिषाचार्य पंडित रमेश तिवारी ने बताया कि, इस बार पौष पूर्णिमा पर ब्रह्म, इंद्र और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बना हुआ था इसलिए इस दिन का महत्व और भी दोगुना हो गया।

बुजुर्गों ने बताया कि, छेरछेरा पर्व कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की प्राचीन परंपरा को याद दिलाता है। यह महापर्व यहां की सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक एकता को भी मजबूती प्रदान करता है।

उत्सवधर्मिता से जुड़ा छत्तीसगढ़ ऐसे त्यौहारों के माध्यम से अपनी सुख-दुख की अभिव्यक्ति करता है। इस दिन गली-मोहल्लें के घरों के सामने गोल घेरा बनाकर छेरछेरा गीत गाते हुए नृत्य करते बच्चों को घर वालों द्वारा जो भी दान मिलता है उसे बच्चे आपस में बांटते है।

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