छत्तीसगढ़ के इस गांव में रुके थे गुरु नानक देव…जाने क्यों बोला जाता है इसे ‘गुलाबी गांव’

गुरु नानक जयंती 2025 के पावन अवसर पर छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में स्थित ‘गढ़फुलझर’ गांव चर्चा में है। यह गांव सिख धर्म के प्रथम गुरु, श्री गुरु नानक देव जी के पवित्र कदमों से जुड़ा ऐतिहासिक स्थल है। प्राचीन दस्तावेज़ों के अनुसार, अमरकंटक से जगन्नाथपुरी यात्रा के दौरान 1506 ईस्वी में गुरु नानक देव जी ने बसना क्षेत्र के नजदीक गढ़फुलझर गांव में दो दिन विश्राम किया था।
गढ़फुलझर में गुरु नानक देव जी का प्रवास
कहा जाता है कि जिस स्थान पर गुरु नानक देव जी ठहरे थे, वहां अब ‘नानक डेरा’ के नाम से एक पहचान मिल चुकी है। पिछले वर्षों में यहां विशाल ‘नानक सागर साहिब गुरुद्वारा’ के निर्माण की घोषणा हुई, और पूरे गांव को ‘नानक सागर’ नाम दिया गया है। स्थानीय लोगों के अनुसार, यहां लगभग पांच एकड़ भूमि सरकारी रिकॉर्ड में गुरु नानक जी के नाम दर्ज है और ग्रामीण उन्हें स्नेह से ‘गुरु खाब’ बुलाते हैं।

क्या है गुलाबी गांव की खासियत?
गढ़फुलझर और उसके आसपास के ‘नानक सागर’ गांव की अनोखी बात यह है कि यहां के सभी घर गुलाबी रंग से रंगे हुए हैं, जिससे यह ‘गुलाबी गांव’ कहलाता है। इस गांव में एक ऐसे ऐतिहासिक चबूतरे की भी मान्यता है, जहां आज भी लोग सिर ढककर बैठते हैं और मन की शांति महसूस करते हैं। गांव में कभी कोई एफआईआर दर्ज नहीं होने और आपसी विवादें चबूतरे पर बैठकर ही समाप्त हो जाने से, यह जगह एकता और शांति की मिसाल बन गई है।
सेवा और धार्मिकता का केंद्र
गुरु नानक देव जी के आगमन के प्रमाण के बाद, गढ़फुलझर तीर्थ यात्रा और धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन रहा है। यहां पर भव्य गुरुद्वारा, लंगर हॉल, धर्मशाला, हॉस्पिटल और स्कूल की सुविधा विकसित की जा रही है। यह स्थल सेवा और आपसी भाईचारे का संगम बन गया है, जहां गुरु नानक जी की शिक्षाएं जीवंत रूप में दिखती हैं।
गढ़फुलझर, छत्तीसगढ़ केवल एक गांव नहीं, बल्कि गुरु नानक देव जी की स्मृति, सेवा, एकता और शांति का प्रतीक स्थल है। आगामी गुरु नानक जयंती पर यहां की यात्रा आपके लिए अविस्मरणीय अनुभव हो सकती है।






