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Chhattisgarh : हसदेव जंगल की कटाई का अडानी से क्या है सबंध ?… जंगल की कटाई का 10 सालों से चल रहा है विरोध, जाने कैसे सियासत की भेंट चढ़ गई वर्षो पुराने लाखों पेड़

रायपुर। हसदेव अरण्‍य छत्‍तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में है। इस वन क्षेत्र में कोयला के करीब 23 भंडार हैं। वैसे तो छत्‍तीसगढ़ में कोरिया से लेकर कोरबा जिला तक कई खदानों से कोयला निकाला जा रहा है, लेकिन हसदेव में कोयला खदानों के आवंटन और खनन का स्‍थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। हसदेव में कोयला खदान आवंटन और कोयला खनन के लिए वनों की कटाई का विरोध करीब 10 साल से चल रहा है। छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य को बचाने के लिए बड़ी मुहिम चल रही है. क्योंकि कोयला खनन के लिए जंगल से पेड़ काटे जा रहे है. कांग्रेस ने दावा किया है कि 50 हजार पेड़ काटे जा चुके है. इस मामले में पूर्व डिप्टी सीएम टी एस सिंहदेव ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से फोन पर बात किया है. उन्होंने हसदेव में पेड़ कटाई पर जानकारी दी है और नए खदान खोलने पर रोक लगाने की मांग की है. इसपर सियासत पारा चढ़ गया है.इस दौरान केंद्र व राज्‍य में सरकारें बदल गईं, लेकिन मामला अब तक नहीं सुलझा है। विपक्ष में रहते राजनीतिक दल और उनके नेता आंदोलन का समर्थन करते हैं, लेकिन सत्‍ता में आते ही खदान के पक्ष में खड़े हो जाते हैं।

हसदेव वन में कोयला खदान और पेड़ों की कटाई के विरोध में चल रहे आंदोलन को समर्थन देने एक दिन पहले पूर्ववर्ती सरकार में डिप्‍टी सीएम रहे टीएस सिंहदेव पहुंचे थे, जब 43 हेक्टेयर में फैले पेड़ों की कटाई हुई तब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल से उस समय जब मीडिया ने सवाल किया तो बघेल ने इसे देशहित के लिए जरुरी बताया था। गौर करने वाली बात यह भी है कि 2015 में कांग्रेस के पूर्व राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राहुल गांधी भी इस आंदोलन को समर्थन देने पहुंचे थे। इस दौरान उन्‍होंने जंगल नहीं कटने देने का वादा किया था, जबकि खदान का आंवटन कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली केंद्र की यूपीएस सरकार ने किया था।

बता दे कि हसदेव अरण्‍य क्षेत्र में राजस्‍थान राज्‍य विद्युत निगम लिमिटेड को कोयला खदान का आवंटित हुआ है। राजस्‍थान की सरकार ने खदान को माइनिंग डेवलपमेंट ऑपरेटिंग यानी खदान को विकसित और खनन करने का ठेका अडानी की कंपनी ने दे रखा है।

2010 में हुआ था कोयला खदानों का आवंटन
जानकारों के अनुसार केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली यूपीएस सरकार के दौरान 2010 में राजस्‍थान सरकार को छत्‍तीसगढ़ में 3 कोयला खदानों का आवंटन किया गया था। लेकिन वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हसदेव अरण्य में खनन प्रतिबंधित रखते हुए इसे नो – गो एरिया घोषित कर दिया। इसके बाद में वन मंत्रालय के वन सलाहकार समिति ने अपने ही नियम के खिलाफ जाकर यहां परसा ईस्ट और केते बासेन कोयला परियोजना को वन स्वीकृति दे दी।

जंगल की कटाई के लिए सीएम साय ने कांग्रेस को ठहराया जिम्मेदार
दरअसल उत्तर छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य में कोयला खदान खोलने के लिए पिछले एक सप्ताह से हजारों पेड़ों की कटाई हुई है. लेकिन स्थानीय आदिवासी पेड़ो की कटाई का विरोध कर रहे है. ये विरोध अब बड़े स्तर में शुरू हो गया है. कांग्रेस ने राज्य की बीजेपी सरकार को घेरने के लिए बड़े आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी है. वहीं दूसरी तरफ हसदेव में जंगल की कटाई के लिए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि हसदेव में जंगलों की कटाई का जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की सरकार है. पूर्व की भूपेश बघेल सरकार के आदेश पर ही हसदेव जंगल की कटाई की गई है.

कांग्रेस ने बीजेपी सरकार के खिलाफ शुरू किया आंदोलन
लेकिन कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के बयान पर खंडन करते हुए कहा है कि 26 जुलाई 2022 को विधानसभा में सर्वसम्मति से हसदेव अरण्य में सभी खदानों की अनुमतियों को निरस्त करने के लिए संकल्प पारित किया है. विधानसभा में सर्वसम्मति से हसदेव में नए खनन के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया है. इसके बाद अब कांग्रेस ने मैदानी लड़ाई के लिए मोर्चा खोल दिया है. सोमवार को कांग्रेस के पूर्व विधायक विकास उपाध्याय ने रायपुर में मानव श्रृंखला बनाकर का विरोध किया. इसके बाद आज दोपहर कांग्रेस युवा मोर्चा की टीम रायपुर में बीजेपी सरकार की पुतला दहन की तैयारी में है.

2012 में पहले चरण की खुदाई के लिए मंजूरी दे दी गई। केंद्र ने पहले फेज के लिए 762 हेक्टेयर में फैले 137 मिलियन टन कोयले की खुदाई की मंजूरी दी थी। राज्‍य की तत्‍कालीन भाजपा राज्य सरकार ने भी पहले चरण की खुदाई के लिए सभी मंजूरी दे दी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने खनन पर रोक लगाई लेकिन 2015 में खनन फिर से शुरू हो गया। इस खदान से कोयला निकालने का काम अभी चल रहा है। इसके बाद दूसरे चरण की खुदाई को लेकर विरोध शुरू हो गया।

जमकर हो रही है सियासत
एक तरफ स्‍थानीय लोग और पर्यावरण प्रेमी जंगल को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं दूसरी तरफ जमकर सियासत भी हो रही है। छत्तीसगढ़ विधानसभा ने हसदेव अरण्य को खनन मुक्त रखने के लिए 26 जुलाई 2022 को अशासकीय संकल्प सर्वानुमति से पारित किया था। लेकिन इसके कुछ दिनों बाद ही राज्‍य सरकार ने खदान को अनुमति दे दी। अब कांग्रेस खदान के लिए भाजपा को जिम्‍मेदार बता रही है तो दूसरी तरफ भाजपा कांग्रेस पर ठिकरा फोड़ रही है।

राहुल गांधी पहुंचे थे आंदोलनकारियों के बीच
कांग्रेस के पूर्व राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने जून 2015 में सरगुजा का दौरा किया। राहुल हसदेव अरण्य के गावं में गए और पैदल यात्रा भी की। इसके बाद मदनपुर गांव में आयोजित आम सभा में राहुल गांधी ने लोगों से वादा किया था कि वो जंगल नहीं कटने देंगे।

तीन राज्‍यों को जोड़ता है हसदेव अरण्‍य
हसदेव अरण्‍य तीन राज्‍यों के जंगलों को जोड़ता है। एक तरफ इसका एक छोर मध्‍य प्रदेश के कान्‍हा जंगल से जुड़ी हुई तो दूसरा छोर झारखंड के पलामू तक फैला है। छत्तीसगढ़ में इस यह जंगल कोरबा, सरगुज़ा और सूरजपुर जिलों में फैला है। इसी जंगली क्षेत्र में हसदेव नदी बहती है। जंगल इस नदी के कैचमेंट एरिया में है। हसदेव नदी पर बना मिनी माता बांगो बांध जिससे बिलासपुर, जांजगीर-चाम्पा और कोरबा के खेतों और लोगों को पानी मिलता है। इस जंगल मे हाथी समेत 25 वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवागमन का क्षेत्र है। करीब 1 लाख70 हजार हेक्टेयर में फैला यह जंगल अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है। यहां गोंड, लोहार और ओरांव , पहाड़ी कोरवा जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार लोगों का घर है। 82 तरह के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां और 167 प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं। इनमें से 18 वनस्पतियों अपने अस्तित्व के खतरें में है।

लेमरु हाथी रिजर्व
केंद्र सरकार की तरफ से 2018 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार छत्‍तीसगढ़ में देश के केवल एक प्रतिशत हाथी छत्‍तीसगढ़ में हैं लेकिन इसी जंगली सीमा ओडिशा, झारखंड और मध्‍य प्रदेश से लगी हुई है। इस वजह से यह हाथियों की आवाजाही का रास्‍ता है। वनों की कटाई के कारण प्रदेश में हाथी मानव द्वंद्व की घटनाएं बढ़ गई हैं। स्‍थानीय लोगों की मांग और हाथियों के संरक्षण के लिए वन क्षेत्र के करीब 2 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को हाथी रिजर्व घोषित किया गया है। इस रिजर्व को लेमरु हाथी रिजर्व नाम दिया गया है।

यह है विरोध की असली वजह
हसदेव अरण्‍य का पूरा क्षेत्र पांचवीं अनूसूची में आता है। ऐसे में वहां खनन के लिए ग्राम सभा की मंजूरी जरुरी है। आंदोलन कर रहे लोगों का कहना है कि ग्राम सभा ने मंजूरी नहीं दी है। वजह यह है कि परसा ईस्ट केते बासेन खदान के लिए कुल 1136 हेक्टेयर जंगल काटा जाना है जिसमे से 137 हेक्टेयर काटा जा चुका है। इसके साथ ही परसा कोल ब्लॉक के 1267 हेक्टेयर काटा जाएगा। लगभग 9 लाख पेड़ काटे जाएंगे। इससे वन्‍य जीवों और वनस्पति के साथ हसदेव नदी का केचमेंट भी प्रभावित होगा।

सिंहदेव ने कहा नए खदानों में माइनिंग के विरोध में पूरा आदिवासी समाज
पूर्व डिप्टी सीएम टी एस ने हसदेव के आदिवासियों से मुलाकात कर दावा किया है कि जहां पुराने खदानों में उत्खनन के प्रति स्थानीय लोगों के मत विभाजित हैं, वहीं नए खदानों में माइनिंग के विरोध में पूरा आदिवासी समाज एकमत है.इसकी जानकारी देते हुए सिंहदेव ने सीएम विष्णु देव साय से मोबाइल से बात कर उन्हें हसदेव अरण्य से जुड़े विरोध प्रदर्शन की ज़मीनी स्थिति की जानकारी दी है.

पूर्व डिप्टी सीएम ने मुख्यमंत्री को फोन कर खनन पर रोक लगाने की मांग
टीएस सिंहदेव ने कहा कि मुख्यमंत्री स्वयं सरगुजा अंचल के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र और समुदाय के हैं. उन्हें आदिवासी विचारधारा, संस्कृति, परंपराएं और मान्यताओं की पूरी जानकारी है. आदिवासी समुदाय के जल, जंगल, ज़मीन के प्रति प्यार, समर्पण, निष्ठा से वो पूर्ण रूप से परिचित हैं. सरगुजा के आदिवासी समाज के हित के लिए, उनकी इच्छानुसार, मुख्यमंत्री को और छत्तीसगढ़ सरकार को नए खदानों के खनन पर रोक लगानी चाहिए.

ये विनाश सिर्फ एक पूंजीपति की जिद के लिए है
हसदेव अरण्य में जब पेड़ों की कटाई शुरू हुई तो पुलिस जवानों की तैनाती की गई थी. इसके अलावा जो पर्यावरण प्रेमी है उनके नजरबंद किया गया था.इसी में से एक छत्तीसगढ़ बचाव संगठन के प्रमुख आलोक शुक्ला ने ट्विटर पर हसदेव को बचाने के लिए अभियान चला रहे है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा है कि ये विनाश सिर्फ एक पूंजीपति की जिद के लिए है, जो हसदेव से ही कोयला निकालकर मुनाफा कमाना चाहता है. जो हसदेव असंख्य जीव, जंतुओं का घर है, हमारी सांसें जिससे चलती हैं, उसका ऐसा विनाश, प्रकृति कभी माफ नहीं करेगी.

3 जिलों में फैला हुआ है हसदेव अरण्य
गौरतलब है कि हसदेव अरण्य उत्तर छत्तीसगढ़ के 3 जिलों में फैला हुआ है. इसमें कोरबा, सूरजपुर और सरगुजा जिला आता है. यहां भारत सरकार ने कोयला खदान का प्रस्ताव रखा है. लेकिन यहां रहने वाले आदिवासी जंगल की कटाई कई सालों से विरोध कर रहे है. राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन हो चुके है. विरोध की वजह ये भी है कि ये इलाका पांचवीं अनुसूची में आता है.

ऐसे में वहां खनन किया ग्राम सभा की मंजूरी जरूरी है. लेकिन आंदोलन कर रहे लोगों का दावा है कि मंजूरी नहीं दी गई है. वहीं ये पूरा इलाका हाथियों का बसेरा है, सैकड़ों हाथी इन्ही इलाकों में विचरण करते है तो आशंका ये भी है किअगर जंगल कट जाएंगे तो हाथी मानव द्वंद चरम पर हो सकता है

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