बिलासपुर लोकसभा : दोनो बाहरी ! … मुद्दों पर लड़ रहे है चुनाव या नैया पार लगाने जातिगत समीकरण के आसरे…देखे चुनाव चालीसा
नवीन देवांगन । बिलासपुर लोकसभा सीट मे इस बार के चुनाव में यहां की परिस्थिति बदली-बदली नजर आ रही है। यहां से भाजपा BJP ने एक बार फिर से साहू समाज का कार्ड खेला है। भाजपा इससे पहले भी 2019 में साहू समाज याने अरुण साव और 2014 में साहू समाज से ही याने लखनलाल साहू के उपर दांव खेला था और उसमें भाजपा सफल भी रही थी, लोगो का मानना है कि इस दांव के पीछे का सबसे बड़ा कारण सामाजिक वोटर है। हालांकि कुछ लोग पिछले दो चुनावों में मोदी लहर को भी इसका श्रेय देते है बीजेपी इस बार फिर साहू समाज से ही उम्मीदार उतारा है तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी करारा जवाब देते हुए यादव कार्ड खेल दिया है। कांग्रेस ने यहां से भिलाई के विधायक व युवा नेता देवेंद्र यादव को मैदान में उतारा है। हालांकि दोनो उम्मीदवारों के उपर बाहरी प्रत्याशी का तमगा लगा हुआ है वो चुनाव में कितना असर डालेगा इस पर हम आगे बात करेंगे…बिलासपुर लोकसभा में जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखकर भले ही कांग्रेस और भाजपा अपना संपर्क अभियान चला रहे है, भाजपा प्रत्याशी मोदी की गारंटी दे रहे है तो कांग्रेस मोदी कि विफलताओं को लेकर जनता के बीच जा रहे है मतलब यहां भी मुद्दा मोदी बनाम मोदी ही है….
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बिलासपुर लोकसभा सीट पर नजर डालें तो 2024 मे तकरीबन 20 लाख वोटर हैं। विभिन्न राजनीतिक दलो के अपने स्तर पर जो जातिगत आंकड़े प्रस्तूत किए गए है गर उसे माने तो इस लोकसभा में आदवासी वोटरो की संख्या सबसे ज्यादा है 2 लाख 65 हजार के आंकडे के साथ ही आदिवासी वोटर पहले नंबर पर है इसके बाद 2 लाख 25 हजार साहू वोटरो की संख्या है 1 लाख 85 हजार वोटरो के साथ यादव वोटर यहां तीसरे नंबर पर है कुर्मी समाज के वोटरों की संख्या 1 लाख 35 हजार के आसपास है इसके साथ मरार पटेल बाम्हण सूर्यवंशी सतनामी और अन्य वोटरो की संख्या है हालांकि यहां समाजों के बीच यह खिचा तान भी बने रहता है कि उनके समाज से ही इस लोकसभा में सबसे ज्यादा वोटर्स आते है फिलहाल बिलासपुर लोकसभा सीट ओबीसी बाहुल्य सीट है । इसलिए भाजपा औऱ कांग्रेस की नजर ओबीसी वोटरों पर टिकी रहेगी, बात करते हैं बीजेपी की तो बिलासपुर लोकसभा से लगातार तीसरी बार प्रत्याशी का चेहरा बदला गया है, लेकिन सामाजिक ताना-बाना पुराना है।
बात करे 2014 या 2019 या अब की याने 2024 की तो बीजेपी ने साहू समाज पर ही भरोसा जताया है और पिछले दो चुनावों में यह भरोसा सोला आने सच भी हुआ है दोनों ही प्रत्याशियों लखनलाल साहू और अरुण साव ने अच्छे-खासे वोट से फतह हासिल की है। लेकिन बावजूद इसके इनमें से रिपीट किसी को नहीं किया। हालांकि अरुण साव छत्तीसगढ़ बीजेपी की कमान संभालने के बाद विधानसभा में कांग्रेस को पटखनी देने में सफल रहे वे इस विधानसभा चुनाव में तोखन साहू जो फिलहाल बिलासपुर से लोकसभा के उम्मीदवार है उनकी चित परिचित सीट लोरमी से चुनाव लड़े और जीत हासिल कर फिलहाल डिप्टी सीएम के पद में काबिज है कहा यह भी जा रहा है कि अरुण साव ने विधानसभा में उनकी सीट उनसे ले ली थी लिहाजा पूरा जोर लगा कर वे इसका अहसान चुकाते हुए आलाकमान से बिलासपुर के लिए तोखन साहू का टिकिट ले ही आऐ…हालांकि विधानसभा चुनाव में बीजेपी के शानदार जीत के बाद बिलासपुर के कद्दावर नेता पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल को साय मंत्रिमंड़ल में जगह नहीं मिलने पे यह कयास लगाए जा रहे है कि उन्हे लोकसभा में बिलासपुर से टिकिट दी जा सकती है, पर इन सब कयासों पर विराम उस समय लग गया जब तोखन साहू के नाम पे मुंहर लगी, पार्टी के ही कुछ लोग दबी जुबान में इसे अरुण साव अंदरुनी रणनीति का जीत बताते आ रहै है बहरहाल इस बार फिर साहू समाज से याने पूर्व विधायक तोखन साहू को मैदान में उतारने से अंदरुनी तौर पर बीजेपी के लिए कुछ न कुछ संकट पैदा करने वाला जरुर होगा । लगातार तीसरी बार साहू समाज को तवज्जो देने से यहां के कुछ समाज प्रमुख खासे नाराज चल रहे हैं, खास कर सबसे ज्यादा वोटरो याने चौथे पायदान पर काबिज कुर्मी समाज के बीच से जो बाते निकल कर सामने आ रही है वह बीजेपी के फेवर में कतई नहीं दिखती, हालांकि कही न कहीं बीजेपी से नाराज कुर्मी समाज ने यह पत्ता अभी तक नहीं खोला है कि इस चुनाव में वह किसे वोट करेंगे। बहरहाल, कुर्मी समाज की इस लामबंदी से बीजेपी के सामने संकट के बादल जरुर मंडरा सकते है ।अब देखना यह है कि बीजेपी कुर्मी समाज को कितना समझा और संतुष्ट कर पाती है
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दूसरी तरफ यादव वोटरो को साधने के लिए कांग्रेस ने भिलाई के युवा विधायक देवेन्द्र यादव को यहां से मैदान में उतारा है, देवेन्द्र यादव का नाम फाइनल होने पर कांग्रेस के ही लोग इसे कुछ दिनों तक पचा नहीं पा रहे थे, बाहरी प्रत्याशी बता कर कांग्रेस के कई नेता इसका खुलकर विरोध में उतर आए थे, कुछ कांग्रेसी तो कांग्रेस भवन के बाहर विरोध में आमरण अनशन में भी बैठ गए थे, देवेंद्र यादव का नाम फाइनल होने से पहले एक और नाम बिलासपुर लोकसभा के लिए कांग्रेस की तरफ से जोरो शोरो से चल रहा था वह नाम था विष्णु यादव का लगभग बिलासपुर के कांग्रेसी भी इस नाम पर अंतिम मुंहर लगने की उम्मीद जता चुके थे पर दिल्ली से आई लिस्ट में देवेंद्र यादव का नाम देख पैरो तले जमीन खिसक गई थी, जिसके बाद खुद विष्णु यादव इसे लेकर जोर शोर से विरोध में उतर आए पर उनकी सुनवाई कहीं नहीं हुई और वे दुखी मन से ही सही कांग्रेस को कोसते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया… बिलासपुर के खुन्नस खाए कांग्रेसियो और कोयला घोटाले की आंच देवेंद्र यादव को कितना झुलसा पाती है यह भी देखने वाली बात है
बिलासपुर सीट पर लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा के लिए कोटा और मस्तुरी विधानसभा टेड़ी खीर साबित हो सकती है. दोनों विधानसभा में कांग्रेस के विधायक हैं, जिसमे कोटा आदिवासी बहुल विधानसभा है और दूसरा मस्तूरी एससी बहुल क्षेत्र है. इन दोनो विधानसभाओं में दोनों जाति के मतदाता अधिक संख्या में है. इस समय यही दो जाति हैं जो भाजपा सबसे बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकते है.
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ऐसा माना जा रहा है कि जितने वोट विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिले हैं, उतने वोट लोकसभा में मिलेंगे. जो भाजपा के बराबरी पर आ जाएगा, लेकिन ये दोनों विधानसभा के वोट कांग्रेस के पक्ष में आए तो कांग्रेस की जीत हो सकती है. देखा जाए तो बाकी विधानसभा में कांग्रेस का वोट प्रतिशत खराब नहीं था, लेकिन इन दो विधानसभाओं में भाजपा को काफी नुकसान हुआ है. यदि ऐसा हुआ तो भाजपा के लिए बिलासपुर सीट जीतना आसान कतई नहीं होने वाला
बिलासपुर लोकसभा सीट पिछले 26 सालों में भाजपा के पाले में आता रहा है, लेकिन इस बार चुनावी गणित और लोकसभा क्षेत्र के बाहर के उम्मीदवार के आने पर अब दोनों ही पार्टी के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है. वैसे तो इस सीट पर दोनों ही उम्मीदवार पिछड़े वर्ग के हैं, लेकिन साहू और यादव समाज से मिले दोनों उम्मीदवार को लेकर जीत और हार पर संशय बना हुआ है. बिलासपुर लोकसभा में आठ विधानसभा आते हैं, जिनमें फिलहाल 6 पर भाजपा और दो पर कांग्रेस काबिज है, लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि यदि कांग्रेस आठों विधानसभा में मिले वोट और मस्तूरी और कोटा विधानसभा के आदिवासी और सतनामी समाज के मतदाताओं को अपने पक्ष में वोट करने राजी कर ले, तो यह सीट कांग्रेस के खाते में आ सकती है. कोटा विधानसभा में लगभग 45 फीसदी मतदाता आदिवासी हैं. इसी तरह मस्तूरी विधानसभा सीट एससी आरक्षित है. यहां 70 फीसदी एससी समाज के मतदाता हैं. और इस समय दोनों ही विधानसभा में कांग्रेस के विधायक फिलहाल काबिज है
बिलासपुर लोकसभा के आठ विधानसभा में लगभग 20 लाख मतदाता हैं. इनमें पिछले विधानसभा चुनाव 2023 में साढ़े ग्यारह लाख मतदाताओं ने मतदान किया था. इनमें साढ़े पांच लाख वोट कांग्रेस को मिले. साढ़े 6 लाख वोट भाजपा को मिले हैं, लेकिन विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग-अलग है. इसमें परिस्थितियां बदल जाती है और मुद्दे भी बढ़ जाते हैं. जैसे कि विधानसभा चुनाव में स्थानीय और प्रदेश स्तर के मुद्दे होते हैं. वहीं, लोकसभा चुनाव में देश के मुद्दे होते हैं. मुद्दों की वजह से कई बार मतदाता लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अलग-अलग पार्टी को वोट देते हैं. यदि इस बार विधानसभा में मिले वोट की बात करें तो कांग्रेस ने 2023 के विधानसभा चुनाव में साढे 5 लाख वोट पाए हैं, जिसमे दो विधानसभा में आदिवासी और एससी समाज बहुल विधानसभा है. ऐसे में यदि कांग्रेस इन मतदाताओं को अपने पक्ष में कर ले तो कांग्रेस की जीत हो सकती है, लेकिन अब तक का जो चुनावी समीकरण बन रहा है, इसमें दोनों ही पार्टी के बीच कांटे की टक्कर दिख रहा है
1951 से 2019 तक बिलासपुर लोकसभा सीट पर हुए कुल 15 चुनावों में 7 बार कांग्रेस और 8 बार भाजपा जीत चुकी है। यानी इस बार कांग्रेस जीती, तो भाजपा के साथ उसकी जीत-हार का हिसाब बराबर होगा। बता दें कि 2019 में भाजपा प्रत्याशी और मौजूदा डिप्टी सीएम अरुण साव ने कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव को 1,41,763 वोटों से हराया था।
साल 2019 के चुनाव में बिलासपुर लोकसभा सीट से 25 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। 16 प्रत्याशियों के हिसाब से चुनाव कराने के लिए हरेक वीवीपैट के साथ 2 बैलेट यूनिट और एक नोटा की यूनिट लगानी पड़ी। इस बार 37 प्रत्याशी मैदान में हैं, इसलिए 3 बैलेट यूनिट लगानी पड़ेगी। इस तरह पोलिंग पार्टियों के थैले का बोझ और बढ़ने वाला है। बैलेट यूनिट की संख्या बढ़ने के साथ ही कमीशनिंग और रेंडमाइजेशन का काम भी बढ़ जाएगा।
भले ही इस बार 37 प्रत्याशी मैदान में है लेकिन इस बिलासपुर लोकसभा में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस याने तोखन साहू और देवेंद्र यादव के बीच ही माना जा रहा है ओबीसी बाहूल्य क्षेत्र होने के कारण जातिगत समीकरणों को दोनो मुख्य पार्टियों ने बखूबी सेट कर लिया है पर साहू यादवों के बीच इस बार कुर्मी समाज के वोटरो की दशा और दिशा भी इस सीट पे निर्णायक भूमिका निभाएगी, भाजपा की पारंपरिक सीट माने जाने वाली इस बिलासपुर लोकसभा में इस बार कांग्रेस भेद लगा पाती है या नहीं इसके लिए हमें इंतजार करना होगा 4 जून का…