छत्तीसगढ़ के ढाई लाख शिक्षकों को हाईकोर्ट से बड़ा झटका, नहीं मिलेगा बढ़ी सैलरी का लाभ

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के एक अहम फैसले के बाद राज्य के करीब ढाई लाख शिक्षकों को 10 साल की सेवा के बाद मिलने वाली ग्रेडेशन और बढ़ी सैलरी का लाभ नहीं मिलेगा। कोर्ट ने साफ कर दिया कि संविलियन से पहले पंचायत विभाग के शिक्षाकर्मियों को स्कूल शिक्षा विभाग का नियमित सरकारी कर्मचारी नहीं माना जा सकता, इसलिए वे पिछले कार्यकाल के आधार पर वेतन वृद्धि या प्रमोशन का दावा नहीं कर सकते।
हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
हाईकोर्ट ने 10 साल की सर्विस के बाद ग्रेडेशन और वेतन वृद्धि की मांग करने वाली 1,188 याचिकाएं खारिज कर दीं।
जस्टिस एनके व्यास की सिंगल बेंच ने कहा कि संविलियन से पहले ये शिक्षाकर्मी स्कूल शिक्षा विभाग के अधीन नहीं थे, इसलिए इन्हें ग्रेडेशन का लाभ देने की पात्रता नहीं बनती।
शिक्षाकर्मियों की मांग क्या थी
पंचायत विभाग में ग्रेड-3, 2 और 1 के रूप में नियुक्त शिक्षाकर्मियों का बाद में शिक्षा विभाग में संविलियन कर सहायक शिक्षक (एलबी), शिक्षक (एलबी) और व्याख्याता (एलबी) बनाया गया।
शिक्षकों ने दलील दी थी कि 10 साल की सेवा पूरी होने के बाद 2017 के आदेश के तहत उन्हें क्रमोन्नति और वेतन वृद्धि मिलनी चाहिए और सोना साहू केस के फैसले का हवाला देकर ग्रेडेशन की मांग की गई।
सरकार का पक्ष और कोर्ट की दलील
राज्य सरकार ने तर्क दिया कि ये सभी शिक्षाकर्मी पंचायत राज अधिनियम, 1993 के तहत पंचायत कर्मचारी थे, उनकी सेवा और नियंत्रण जनपद पंचायत के अधीन था, इसलिए वे संविलियन से पहले राज्य सरकार के नियमित कर्मचारी नहीं थे।
कोर्ट ने माना कि 10 मार्च 2017 के सर्कुलर में ग्रेडेशन के लिए जरूरी 10 साल की सेवा केवल 1 जुलाई 2018 (संविलियन की तारीख) से गिनी जा सकती है, इससे पहले की अवधि मान्य नहीं होगी।
संविलियन नीति और लाभ पर रोक
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि 30 जून 2018 की संविलियन नीति के मुताबिक, पुराने शिक्षाकर्मी सिर्फ संविलियन की तारीख से सरकारी शिक्षक माने जाएंगे।
इस नीति के चलते वे संविलियन से पहले की अवधि के लिए न तो वेतन वृद्धि का दावा कर सकते हैं और न ही ग्रेडेशन का लाभ ले सकते हैं।
आर्थिक असर और वेतन बढ़ोतरी पर प्रभाव
अनुमान है कि अगर कोर्ट शिक्षकों के पक्ष में फैसला देता, तो सरकार को प्रति शिक्षक करीब ₹3.5 लाख से ₹15 लाख तक अतिरिक्त भुगतान करना पड़ सकता था, खास तौर पर क्लास-3 से क्लास-2 स्केल के अंतर की वजह से।
उदाहरण के तौर पर, अगर कोई क्लास-3 टीचर 2005 में नियुक्त हुआ होता और 2015 से उसे क्लास-2 का पे-स्केल मिल जाता, तो उसकी सैलरी में हर महीने हजारों रुपए का फर्क पड़ता, लेकिन अब यह लाभ नहीं मिल पाएगा।
समयमान वेतनमान और अन्य लाभ
सरकार ने यह भी कहा कि शिक्षाकर्मियों को पहले ही 7 साल में समयमान वेतनमान और 2014 में समकक्ष वेतनमान दिया जा चुका है।
कोर्ट ने माना कि शिक्षाकर्मी क्रमोन्नति आधारित ग्रेडेशन के लिए पात्र नहीं हैं, क्योंकि उनकी मूल नियुक्ति ही पंचायत कर्मचारी के रूप में अलग सेवा शर्तों के साथ हुई थी।






