नंदावत परंपरा अखाड़ा के करतब कहाँ देखे ल मिलही ?
विशेष आलेख – सुशील भोले
हमन कक्षा चौथी म रेहेन त पाठ 18 म एक कविता पढ़न-
सूरज के आते भोर हुआ,
लाठी लेझिम का शोर हुआ
यह नागपंचमी झम्मक-झम,
यह ढोल-ढमाका ढम्मक-ढम
मल्लों की जब टोली निकली,
यह चर्चा फैली गली-गली
दंगल हो रहे अखाड़े में,
चंदन चाचा के बाड़े में.
ठउका कक्षा तीसरी के पाठ 17 म घलो एक कविता पढ़न-
इधर उधर जहाँ कहीं,
दिखी जगह चले वहीं
कमीज को उतार कर,
पचास दंड मारकर
अजी उठे अजब शान है,
अरे ये पहलवान है.
सफेद लाल या हरा,
लंगोट कस झुके जरा
अजब की शान है,
अरे ये पहलवान हैं.
अइसन नजारा तब वाजिब म जगा-जगा देखे बर मिल जावत रिहिसे. लोगन अपन लइका मनला अखाड़ा म भेजना अउ उहाँ के दांवपेंच सिखवाना ल गरब के संगे-संग लइका के शारीरिक अउ मानसिक विकास खातिर बहुत जरूरी मानत रिहिन. फेर अब जइसे-जइसे आधुनिकता अउ वैज्ञानिकता के नाव म शारीरिक कौशल के पारंपरिक तरीका ले दुरिहावत जावत हन, वइसे-वइसे शारीरिक सुदृढ़ता के संगे-संग अपन परंपरा अउ संस्कृति ल घलो बिसरावत जावत हन.
हमर पारा म हरदेव लाल मंदिर हे. इहाँ हर बछर नागपंचमी के दिन पूरा छत्तीसगढ़ स्तरीय कुश्ती के आयोजन होवय, जेमा रायपुर के सबो नामी पहलवान मन तो आबे च करंय. दुरुग, भेलई, नांदगांव, बिलासपुर, धमतरी, महासमुंद जइसन शहर के पहलवान मन घलो आवंय अउ बिहनिया ले रतिहा के होवत के अपन-अपन जोड़ के पहलवान मन संग शारीरिक कला-कौशल के प्रदर्शन करंय. लोगन खवई-पियई ल छोड़ के दिन भर उंकर मन के कुश्ती के मजा लेवत राहंय. फेर ए सब अब सिरिफ ‘सुरता’ के विषय बनके रहिगे हे. अइसने अउ कतकों जगा आयोजन होवय.
एकर खातिर माटी ल कोड़-खान के विशेष रूप ले तैयार करे जाय. कतकों जगा के अखाड़ा मन तो मंदिर बरोबर पवित्र अउ सुरक्षित रहय, जिहां हनुमान जी के विशेष रूप ले पूजा-पाठ होवय. पहलवान मन जेन माटी म कुश्ती लड़थें, वोला महतारी के रूप म सम्मान देथें अउ मानथें. विशेषज्ञ मन बताथें- कुश्ती के अखाड़ा के माटी म दूध, मही, सरसों के तेल, हल्दी अउ लिमउ घलो मिंझारे जाथे. जेकर ले वो माटी ह एकदम कोंवर अउ फुरहुर हो जाथे.
इहाँ ए जानना जरूरी हे, हमर छत्तीसगढ़ म पहिली इही अखाड़ा के पवित्र माटी ल नागपंचमी परब के कुश्ती संपन्न होए के बाद भोजली बोवइया मन अपन-अपन घर लेगंय अउ उही म भोजली बो के भोजली दाई के सेवा करंय. अब तो कुश्ती अउ अखाड़ा के परंपरा ह लट्टे-पट्टे दिखथे, त अइसन म वोकर माटी म भोजली बोए के परंपरा घलो देखे म नइ आवय.
आजकल तो लोगन अखाड़ा जाए के बलदा जिम जाए लगे हें. उहाँ सिंथेटिक कपड़ा के बने मैट म कुश्ती के अभ्यास करथें. देश विदेश म आयोजित होने वाला कुश्ती प्रतियोगिता मन घलो अइसने मैट म होए लगे हे. फेर जानकर मन बताथें, जेन आनंद अउ माटी संग जुड़ाव के अनुभुति माटी के मैदान म होवय, वो ह मैट म नइ होवय.
हमर गाँव म कुश्ती वाला अखाड़ा तो मैं नइ देखे रेहेंव, फेर अस्त्र-शस्त्र चलाए के संग अउ आने शारीरिक कला-कौशल के प्रदर्शन करने वाला अखाड़ा जरूर देखन. एमा पारंगत लोगन पर्व विशेष के दिन अपन ए कला के जबरदस्त प्रदर्शन गाँव के मैदान म करंय. गाँव म कभू बरात आवय या हमर गाँव ले बरात कोनो आने गाँव जावय, त एकर मन के अद्भुत कला-कौशल के दर्शन बरात परघनी के बेरा रात भर देखे ले मिलय. सब अपन-अपन कला के प्रदर्शन करंय. ए ह लोगन ल अतेक भावय, ते लोगन दुल्हा बाबू संग जेवनास घर म जाए अउ दूधभत्ता म शामिल होए के बलदा अखाड़ा के आनंद म ही बूड़े रहि जावंय. अब तो बर-बिहाव ह घलो एक दिन अउ कभू-कभू तो एके जुवर म संपन्न हो जाथे, त अइसन म भला वो रात-रात भर के परघनी अउ अखाड़ा के करतब कहाँ देखे ले मिलही?