छत्तीसगढ़ का पहला बूटीगढ़, आयुर्वेदिक रसशाला में 160 प्रकार की जड़ी-बूटियों से इलाज…जाने खासियत..
बैक टू आयुर्वेद, छत्तीसगढ़ की यह नई टैगलाइन है। छत्तीसगढ़ अब आयुर्वेद की तरफ लौट रहा है, छत्तीसगढ़ अब बूटीगढ़ बन गया है। छत्तीसगढ़ के धमतरी में बूटीगढ़ की स्थापना की गई है। यहां पर आयुर्वेदिक रसशाला आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। प्रदेश में अपनी तरह का पहला नवाचार है।
बूटीगढ़ में जल संरक्षण और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का समन्वय बनाया गया है। यहां पर सुपोषण के लिए मुनगा का सूप दिया जा रहा है तो हार्ट पेशेंट को अर्जुन क्षीरपाक को रामबाण औषधि बताई गई है। आयुर्वेदाचार्य महर्षि नागार्जुन की विधियों से यहां उपचार किया जा रहा है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस नवाचार की सराहना की है और ज्यादा से ज्यादा वन संपदा को सहजने और लोगों को आयुर्वेद के बारे में जागरूक करने के लिए कहा है।
बेहतर मानसिक और शारिरिक स्वास्थ्य के लिए दिया जा रहा काढ़ा
यहां पर 160 प्रकार की जड़ी-बूटियों को चिन्हित किया गया है, जिनमें से पहले चरण में बूटीगढ़ में 25,000 पौधे लगाए गए हैं। इनमें से कुछ ऐसी जड़ी-बूटियाँ हैं जिन्हें आयुर्वेदिक उपचार के लिए चूर्ण या टैबलेट बनाकर इस्तेमाल भी किया जा रहा है। समय के साथ जब बूटीगढ़ विकसित होने लगेगा तो रसशाला के जरिए लोगों को आयुर्वेद के प्रति और भी जागरूक किया जा सकता है।
इसके साथ ही बूटीगढ़ में विलुप्त होने वाली जड़ी-बूटियों को भी सहेजा जा रहा है, ताकि भविष्य में इन पर शोध हो सके। वर्तमान में विभिन्न आयुष केंद्रों में योग करने आये लोगों, मरीजों, गर्भवती महिलाओं , किशोर-किशोरियों व बच्चों को विभिन्न जड़ी-बूटियों से बना काढ़ा, औषधी स्वरूप दिया जा रहा है, जिससे लोगों के मानसिक और शारिरिक स्वास्थ्य में सकारात्मक परिर्वतन देखने को मिल रहा है।
हृदय रोगियों के लिए रामबाण है अर्जुन क्षीरपाक
कोविड काल के बाद से ही लगातार ये देखा जा रहा है कि अचानक हार्ट अटैक से किसी भी उम्र वर्ग के व्यक्ति की ऑन-द-स्पॉट मौत हो रही है, जान बचाने के लिए समय भी नहीं मिल पा रहा है, जो एक चिंता का विषय बन चुका है। जानकार कहते हैं कि आयुर्वेद में अर्जुन पेड़ की छाल से बनें ‘अर्जुन क्षीरपाक’ के नियमित सेवन से इंस्टेंट हार्ट अटैक के मामलों में कमी लाई जा सकती है।
अर्जुन की छाल में विशेष औषधीय गुण होते हैं, जो हृदय की धमनियों को मजबूती प्रदान करते हैं और हृदय की मांसपेशियों को शक्ति देते हैं। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए अत्यधिक लाभकारी है, जिन्हें हृदय संबंधी समस्याएं हैं या जिनमें हार्ट अटैक का खतरा अधिक होता है।
मुनगा का सूप है बेहद लाभकारी
बूटीगढ़ और रसशाला की प्रदर्शनी में मुनगा (सहजन) जैसे पौधों के औषधीय गुणों को भी प्रदर्शित किया गया, जिसमें मुनगा का सूप बनाने की विधि बताई गई। साथ ही, विभिन्न जड़ी-बूटियों का अर्क डिस्टिलेशन प्रक्रिया के माध्यम से निकाला गया, जिससे रोज़मर्रा के जीवन में उपयोगी औषधियाँ तैयार की जा सकती हैं।
बूटीगढ़ और रससाला का उद्देश्य ही यही है कि आमजनों को ज्यादा से ज्यादा औषधीय गुणों से भरे पेड़-पौधों को लेकर जागरूक किया जाए। हमारे घरों में ही कितनी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ उपलब्ध होती हैं, जिसके सेवन से मौसमी बीमारियों को ठीक किया जा सकता है। राशि रत्न पौधों को लगाने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है। ज्यादा से ज्यादा औषधीय पौधरोपण से प्रकृति को भी सहजा जा रहा है और जल सरंक्षण के लिए भी यह कदम है।
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ रसशास्त्र से मिली रसशाला की प्रेरणा
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में से एक रसशास्त्र में औषधियों को बनाने की कई विधियों का वर्णन मिलता है। इन प्रक्रियाओं में अलग-अलग यंत्रों का उपयोग किया जाता था, जिनसे औषधियों को शुद्ध और तैयार किया जाता था। महर्षि नागार्जुन को इन विधियों का जनक माना जाता है। इन औषधियों का उपयोग विशेष रूप से बीमारियों के इलाज में किया जाता है।
पुराने समय में आयुर्वेदाचार्य कई प्रकार के यंत्रों का इस्तेमाल करते थे। जैसे दोला यंत्र, उलूखल यंत्र, कच्छप यंत्र, और स्वेदनी यंत्र। इन यंत्रों से औषधियाँ बनती थीं, जो आज भी कई बीमारियों में कारगर होती हैं। आयुष रसशाला के जरिए ताजा जड़ी-बूटियों से औषधीय रस, अर्क, क्वाथ और पेय बनाए जाते हैं। ये औषधियाँ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं और कई बीमारियों में फायदेमंद साबित होती हैं।
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