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छत्तीसगढ़ में मराठी को ‘भाषिक अल्पसंख्यक’ दर्जा देने की मांग, सरकार को 3 महीने में फैसला लेने का आदेश

छत्तीसगढ़ में मराठी भाषा को ‘भाषिक अल्पसंख्यक’ का दर्जा देने की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह इस मामले में तीन महीने के भीतर निर्णय ले।

यह आदेश मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने बिलासपुर निवासी डॉ. सचिन आशोक काले की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। डॉ. काले ने अपनी याचिका में मांग की थी कि अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ में भी मराठी भाषा को भाषिक अल्पसंख्यक का दर्जा मिलना चाहिए।

जाने पूरा मामला ?
याचिकाकर्ता डॉ. काले ने 22 अप्रैल 2023 और 27 नवंबर 2024 को राज्य सरकार के संबंधित विभागों को आवेदन देकर इस विषय में मांग रखी थी। उन्होंने उदाहरण दिया कि जैसे कर्नाटक, मध्यप्रदेश और तमिलनाडु ने मराठी, तेलुगु, उर्दू, कन्नड़ जैसी भाषाओं को अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा दिया है, वैसा ही छत्तीसगढ़ में भी किया जाए।

हाई कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने याचिका का अंतिम निपटारा करते हुए कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता ने संवैधानिक अधिकारों की मांग करते हुए प्रतिनिधित्व पत्र दिया है, इसलिए सरकार का दायित्व बनता है कि वह उस पर विचार करे। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को आदेश की प्रमाणित प्रति दो सप्ताह के भीतर संबंधित अधिकारी को सौंपनी होगी, और सरकारी वकील को आदेश की जानकारी तुरंत संबंधित विभाग को देना होगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि नीतिगत मामलों में वह सीधे हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन यदि कोई नागरिक संविधान के तहत अधिकार मांगता है, तो उस पर सरकार को प्रतिक्रिया देनी होगी।

राज्य सरकार ने क्या कहा?
राज्य सरकार के अधिवक्ता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह जनहित याचिका नहीं बल्कि निजी स्वार्थ से प्रेरित है। उन्होंने कहा कि मराठी एक प्रमुख भाषा है जो संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है, इसलिए इसे लघु भाषिक अल्पसंख्यक घोषित करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि ऐसा निर्णय लेना एक नीतिगत मामला है और अदालत इसमें आदेश नहीं दे सकती।

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