जम्मू-कश्मीर का राज्य दर्जा बहाल करने की मांग: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब, जानिए 4 हफ्तों की मोहलत क्यों दी?

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाली याचिकाओं पर केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया। यह सुनवाई मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने की। याचिकाकर्ताओं में शिक्षाविद जहूर अहमद भट और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता अहमद मलिक शामिल थे, जिन्होंने केंद्र से राज्य का दर्जा जल्द बहाल करने का अनुरोध किया था।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि क्षेत्र में पिछले साल चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए, लेकिन हाल की सुरक्षा चिंताओं और पहलगाम में हुए आतंकवादी हमलों के कारण केंद्र को राज्य का दर्जा बहाल करने पर विचार करने के लिए अतिरिक्त समय चाहिए। उन्होंने कहा कि यह एक अनोखी समस्या है, जिसमें कई कारकों का संतुलन आवश्यक है।
याचिकाकर्ता पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने केंद्र के 2023 के आश्वासन का हवाला देते हुए कहा कि राज्य का दर्जा बहाल करने में देरी संघवाद के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इस मामले को पांच न्यायाधीश वाली संविधान पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए, क्योंकि अनुच्छेद 370 पर मूल फैसला उसी पीठ द्वारा दिया गया था।
सुनवाई में यह भी चर्चा हुई कि राज्य का दर्जा देने में विलंब जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की क्षमता को प्रभावित कर सकता है और संघवाद के मूल ढांचे का उल्लंघन कर सकता है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कुछ लोग केंद्र शासित प्रदेश की गंभीर स्थिति को भ्रामक तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं।
याचिकाओं में यह भी कहा गया कि हाल के चुनाव शांतिपूर्ण रहे और सुरक्षा की कोई बड़ी बाधा नहीं है, इसलिए राज्य का दर्जा बहाल करने में देरी न्यायसंगत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को चार सप्ताह का समय दिया और मामले की आगे की सुनवाई तय की।