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सरगुजा से लेकर रायगढ़ तक छत्तीसगढ़ महतारी के सीने में कौन भोंक रहा है खंजर ?

छत्तीसगढ़ धान के कटोरा काला हीरा याने ..कोयले की धरती… उद्योगों की रफ्तार को ताकत देने वाली खानें, और इन्हीं खदानों की कीमत पर अपनी ज़मीन, अपने जंगल, अपने भविष्य बचाने की लड़ाई लड़ते हजारों ग्रामीण…रायगढ़ के तमनार ब्लॉक में जिंदल पावर लिमिटेड की प्रस्तावित कोल माइंस के खिलाफ 14 गांव के लोग पिछले एक सप्ताह से से सड़क पर हैं। यह सिर्फ एक खदान का विवाद नहीं, यह सवाल है – विकास किसके लिए, किस कीमत पर और किसकी जमीन पर…?

“तमनार ब्लॉक के झरना, आमगांव, कोसमपाली, पतरापाली, जांजगीर, गोढ़ी, कसडोल, महलोई, सरसमाल समेत 14 गांवों के लोग 5 दिसंबर से खुले आसमान के नीचे बैठे हैं।

“इनका एक ही दावा है – कोयला खदान नहीं चाहिए, जमीन नहीं देंगे, चाहे जो कीमत चुकानी पड़े। गांव वालो का कहना है कि हम पीढ़ियों से यहां खेती कर रहे हैं, यही हमारा सबकुछ है। कंपनी आएगी तो हम कहां जाएंगे? हम अपनी जमीन किसी कीमत में नहीं छोड़ेंगे।पहले से कंपनियों के कारण प्रदूषण बढ़ा है, धूल से सांस लेना मुश्किल है, सड़क पर दिन-रात भारी गाड़ियां दौड़ती हैं, हादसे बढ़ रहे हैं। अब नई खदान खोलकर हमारी बची-खुची जमीन भी ले लेंगे।

दुसरी तरफ ग्रामीँणों के समर्थन में लैलूंगा की विधायक विद्यावती सिदार भी मैदान में उतर आईं। उन्होंने खुले मंच से जनसुनवाई निरस्त करने की मांग की और प्रशासन को चेतावनी दी कि ग्राम सभा की सहमति के बिना कोई फैसला स्वीकार नहीं होगा।

“ग्रामीणों का आरोप है कि जनसुनवाई से उन्हें जान-बूझकर दूर रखा गया। पब्लिक हियरिंग के लिए स्कूल मैदान तय था, लेकिन प्रशासन ने चुपके से मार्केट कॉम्प्लेक्स के अंदर एक कमरे में सुनवाई कर दी, आदिवासी बहुल इलाकों में ग्राम सभा की सहमति के बिना किसी भी परियोजना पर आगे बढ़ना कानून और भरोसे – दोनों की कसौटी पर सवाल खड़े करता है

गारे-पेलमा सेक्टर-1 खदान, जिसका आवंटन जिंदल कंपनी को किया गया है। 24 अक्टूबर को जनसुनवाई होनी थी, गांव वालों ने रोक दिया। इसके बावजूद प्रशासन ने दोबारा सुनवाई रख दी, हजारों लोगों के विरोध के बावजूद उनकी आवाज अनसुनी की जा रही है।

“छाल और आसपास के गांवों में भी यही कहानी दोहराई जा रही है। रायगढ़ कलेक्ट्रेट के बाहर रात भर बैठे सैकड़ों ग्रामीण सिर्फ एक मांग के साथ डटे रहे कि  जनसुनवाई रद्द करो, पहले हमारी बात सुनो।

यह विरोध सिर्फ रायगढ़ तक सीमित नहीं है। सरगुजा के अमेरा ओपनकास्ट कोल माइंस के विस्तार का विरोध करते ग्रामीण 3 दिसंबर को पुलिस से भीड़ गए।कथित रूप से ग्रामीणों ने पथराव किया, गुलेल से हमला किया, जिसमें ASP और थाना प्रभारी समेत लगभग 25 पुलिसकर्मी घायल हो गए। जवाब में पुलिस ने भीड़ तितर-बितर करने आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े।

यह वही जमीन है, जिसे साल 2001 में अधिग्रहित किया गया, लेकिन विस्थापन, पुनर्वास और मुआवज़े के प्रश्न आज भी अधूरे हैं। दो दशक बाद भी ग्रामीणों का दर्द खत्म नहीं हुआ, उल्टा नई खदानों और विस्तार ने घाव और गहरे कर दिए हैं।

अमेरा खदान के लिए साल 2001 में भूमि अधिग्रहण हुआ तब से अब तक मात्र 19% किसानों ने ही मुआवजा लिया है। किसानों को अब तक न नौकरी मिली, न सभी को मुआवजा। 3 माह पहले अधिग्रहित जमीन पर बुलडोजर चलाया गया था, जिसके बाद ग्रामीण अपनी फसल और जमीन की रखवाली कर रहे हैं।

ग्रामीणों के अनुसार बैठक कर निर्णय लिया है कि वे अपनी जमीनें नहीं देंगे। इसके बावजूद प्रशासन जमीन पर जबरदस्ती कब्जा दिलाने पर अड़ा है। इसके कारण यह तनाव की स्थिति बनी है।

SECL ने खदान के संचालन का जिम्मा LCC कंपनी को दिया है। LCC कंपनी का करोड़ों रुपए का इन्वेस्टमेंट है। काम बंद होने से कंपनी को नुकसान हो रहा है, इसलिए वह जल्दी से जल्दी जमीन पर कब्जा चाहती है। ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी कुछ अधिकारियों की मदद लेकर उनकी जमीन पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है।मामले में पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव ने स्पष्ट कहा है कि यदि ग्रामीण चाहते हैं कि खदान न खुले तो नहीं खुलेगी।

वही दूसरी तरफ राज्य अजजा आयोग के पूर्व अध्यक्ष भानू प्रताप सिंह का कहना है कि भूमि अधिग्रहण नियमों के तहत कोई भी कंपनी 5 सालों तक अधिग्रहित भूमि पर काम नहीं करती है तो जमीनें भू स्वामियों को वापस कर दी जाएंगी। किसी की मर्जी के बिना उसकी जमीन नहीं ली जा सकती। यदि ग्रामीणों ने मुआवजा नहीं लिया है तो उनकी जमीनें अधिग्रहित नहीं मानी जाएगी। यह नियम विरूद्ध है। इसका कड़ा विरोध किया जाएगा।

इसी तरह कोरबा के SECL की गेवरा खदान में भू-विस्थापित रोजगार, पुनर्वास और मुआवज़े की मांग कर रहे थे। मांगें पुरानी थीं, नाराज़गी गहरी थी, और इसी बीच CISF के लाठीचार्ज का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।

जवानों पर आरोप लगा कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। किसान सभा से जुड़े नेता और कई ग्रामीण गंभीर रूप से घायल हुए।

गांव वाले डबडबाई आखों से कह रहे है…. पहले हमारी जमीन गई, अब हमारे सवाल उठाने पर लाठियां बरसती हैं। रोजगार, मुआवज़ा और पुनर्वास – तीनों वादे अधूरे हैं। जब हम शांतिपूर्ण तरीके से बैठते हैं, तब भी हमें अपराधी की तरह देखा जाता है।

कोयला देश की ऊर्जा का बड़ा स्रोत है, उद्योगों की रीढ़ है, लेकिन इसकी असली कीमत कौन चुका रहा है? रायगढ़, सरगुजा और कोरबा जैसे इलाकों में रहने वाले वे लोग, जिन्होंने कभी न तो प्लांट की डिजाइन देखी और न ही पावर प्लांट का लाभ सीधे अपने घर में कभी महसूस किया। उनके हिस्से आया है – प्रदूषण, धूल, शोर, सड़कों पर दिन-रात दौड़ते कोयला वाहन, और हर समय यह डर कि अगली बार अधिसूचना न जाने किस गांव की जमीन छीन ले

“छत्तीसगढ़ की ये तस्वीरें सिर्फ एक जिले या एक कंपनी की कहानी नहीं हैं। रायगढ़, सरगुजा और कोरबा – तीनों जगहों पर सवाल एक ही है – विकास मॉडल में सबसे कमजोर की आवाज कहां है? आखिर कमजोर की आवाज कैसे दब जाती है या ऐसे कैसे दबा दी जाती है

“जब ग्राम सभा को नज़रअंदाज कर फैसले किए जाते हैं, जब पुनर्वास की बातें कागज पर रह जाती हैं, जब विरोध की भाषा का जवाब लाठीचार्ज या आंसू गैस से दिया जाता है, तब लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं।

“कोयला देश के लिए जरूरी हो सकता है, लेकिन क्या जमीन, जंगल और इंसान इससे कम जरूरी हैं?  छत्तीसगढ़ की जमीन दिल खोलकर कोयला, जंगल, पानी और जीवन देती है, यहां के लोगों के लिए यह जमीन उनके मां के समान है, वे इसे महतारी संबोधित कर पूजते है, लेकिन क्या विकास का नाम लेकर उसी धरती को उजाड़ देना सही है?  कंपनियों और सरकारों के इन दावों के बीच, कहीं ग्रामीणों की आवाज़ सुनाई दे रही है या वह कोयले की धूल में दब गई है? हमारा यहां किसी पक्ष में खड़े होने का नहीं, बल्कि यह सवाल उठाने की कोशिश है कि क्या किसी भी विकास की असली कीमत उन लोगों से वसूली जानी चाहिए, जिनके पास खोने को सिर्फ उनकी जमीन और पहचान ही है

सरकारे आती है जाती है…पर इन सब के बीच अपने आप को सबसे ठगा महसूस करते है वे गांव वाले मेहनतकश लोग जिनके न चाहते हुए भी विकास के नाम पर उनकी मां के सीने पे खंजर रुपी बुलडोजर चला दिया जाता है, जो सरकारें विपक्ष में रहते इन सब की चिंता में दुबल पातर हुए जाते है वहीं सत्ता में आते ही माल मलाई चाटने में लग जाते है, मरना मरना और मरना सिर्फ मेहनतकश गरीब किसान ग्रमीणों के हिस्से आती है

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news36Desk

news36 Desk में अनुभवी पत्रकारों और विषय विशेषज्ञों की पूरी एक टीम है जो देश दुनिया की हर खबर पर पैनी नजर बनाए रखते है जो आपके लिए लेकर आते है नवीनतम समाचार और शोधपरक लेख

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