25 साल में पहली बार ‘कैमरा डाउन’ : छत्तीसगढ़ विधानसभा में मोबाइल बैन पर मीडिया का महा-बहिष्कार

छत्तीसगढ़ विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान एक ऐसा नज़ारा दिखा, जो राज्य के संसदीय इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया था। प्रेस गैलरी में मोबाइल फोन ले जाने पर प्रतिबंध के फैसले के विरोध में पत्रकार एकजुट हो गए और 25 साल में पहली बार कैमरे डाउन कर विधानसभा की कार्यवाही का बहिष्कार कर दिया।
मोबाइल बैन के आदेश के बाद गुस्सा
मोबाइल बैन के आदेश के बाद मीडिया प्रतिनिधियों ने इसे प्रेस की आज़ादी पर सीधा हमला बताया। उनका कहना है कि डिजिटल दौर में मोबाइल सिर्फ निजी सुविधा नहीं, बल्कि रिपोर्टिंग का अहम टूल बन चुका है, जिसे छीनकर पारदर्शिता कम करने की कोशिश की जा रही है। पत्रकारों ने चेतावनी दी कि जब तक प्रतिबंध वापस नहीं लिया जाता, तब तक वे विरोध जारी रखेंगे।
भूपेश बघेल का मिला सर्मथन
इस विवाद पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी खुलकर पत्रकारों के समर्थन में आ गए। उन्होंने मोबाइल प्रतिबंध के फैसले को गलत करार देते हुए कहा कि सदन की कार्यवाही पर नजर रखने वाले चौथे स्तंभ को इस तरह रोकना लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ है। बघेल ने सवाल उठाया कि जो विधानसभा पूरी तरह पेपरलेस होने और आधुनिक तकनीक अपनाने की बात करती है, वहां सबसे प्रभावी डिजिटल टूल पर ही रोक क्यों लगाई जा रही है।
दिलचस्प बात यह भी है कि इसी सत्र को लेकर पहले से ही कई तरह की ‘पहली बार’ की चर्चाएं चल रही थीं। नवा रायपुर के नए विधानसभा भवन में पहला सत्र, रविवार के दिन सत्र की शुरुआत और पेपरलेस कार्यवाही जैसे प्रयोगों के बीच अब मीडिया बहिष्कार और कैमरा डाउन की घटना ने इसे और ज्यादा सुर्खियों में ला दिया है।
सूचना प्रवाह को नियंत्रित करने की कोशिश ?
पत्रकार संगठनों का मानना है कि मोबाइल बैन सिर्फ सुरक्षा या अनुशासन का मुद्दा नहीं, बल्कि सूचना प्रवाह को नियंत्रित करने की कोशिश भी हो सकता है। उनका तर्क है कि जब अन्य राज्यों की विधानसभाओं में भी मोबाइल प्रतिबंध को लेकर विवाद उठ चुके हैं और कई जगह विरोध के बाद नियमों में नरमी करनी पड़ी, तो छत्तीसगढ़ में भी सरकार और विधानसभा सचिवालय को मीडिया से संवाद कर व्यावहारिक समाधान निकालना चाहिए।






