बस्तर संभाग

बस्तर में महुआ फूल की अच्छी पैदावार अच्छी हो, इसलिए महुआ के पेड़ों की होती है शादी,चढ़ती है तेल हल्दी

बस्तर। दंतेवाडा की प्राचीन नगरी बारसूर में पिछले कई वर्षों से एक अनोखी परंपरा चली आ रही है। यहां के गांव प्रमुख, बैगा और सिरहा, गुनिया गांव के ग्रामीणों के साथ मिलकर महुआ के फूलों की अच्छी पैदावार के लिए महुआ पेड़ की शादी करवाते है। इसमें ग्रामीणों की बड़ी आस्था जुड़ी है। इस शादी की ख़ास बात यह है कि जिस तरह मानव जीवन में दूल्हा- दुल्हन की शादी की रस्म की परंपराए होती हैं, ठीक उसी तरह से रस्मों को करते हुए महुआ के पेड़ों की शादी करवाई जाती है। इस शादी की एक – एक रीति रिवाज बस्तर के आदिवासी संस्कृति, रीति रिवाजों और रस्मों पर आधारित है।

निभाई जाती है तेल हल्दी की रस्म
ग्रामीणों ने बताया कि, यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। आदिवासी रीति- रिवाजों से दूल्हा- दुल्हन को जिस तरह तेल हल्दी लगाया जाता है ठीक उसी प्रकार महुआ के टहनियों को तेल हल्दी लगाकर शादी करवाया जाता है। इस शादी में बाजे गाजे और शहनाई बजाकर पुरुष ग्रामीण महुआ पेड़ का चक्कर लगाते हुए नाच गायन करते हैं। और तेल हल्दी खेलने का रस्म भी निभाते हैं। गांव में जश्न का माहौल होता है। शादी की सब रस्म समापन के बाद गांव के देवी-देवताओं की पूजा कर महुआ फूल के अच्छे पैदावार की कामना करते है। बता दें कि जनजातीय समुदाय में जन्म से लेकर मृत्यु तक महुआ वृक्ष के फल-फूल व पत्तियों का विशेष महत्व होता है। महुआ के बिना समाज का शादी विवाह जैसी कई परंपराएं अधूरी होती है।

आमदनी का जरिया महुआ फूल
ग्रामीण एक-एक फूलों को संग्रहित कर घर के आंगन में लाकर सप्ताह भर तक अच्छी तरह सूखाते हैं और अपनी आवश्यकता के अनुरूप बेचकर आर्थिक आय प्राप्त करते हैं। सदियों से वनांचल के लोगों के लिए महुआ फूल एक अतिरिक्त आमदनी का जरिया है। महुआ के पेड़ से लेकर फूल, छाल व पत्ते तक सभी उपयोगी है। अलग-अलग बीमारियों के अनुरूप जनजाति समुदाय महुआ को औषधि के रूप में उपयोग करता है। अब छत्तीसगढ़ सरकार भी ग्रामीणों से महुआ फूल खरीदकर उससे कुकीज समेत अन्य खाद्य सामग्री भी बना रही है।

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