‘मोर जतन करव रे मँय माटी महतारी अँव’…जैसे गानों को आवाज़ देने वाले लोकगायक नहीं रहे : आकाशवाणी, दूरदर्शन में आज भी गूंजती है धुरवा राम मरकाम का स्वर, छत्तीसगढ़ को दिए कई हिट गाने
केशव पाल @ रायपुर | छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोकगायक धुरवा राम मरकाम का आज रविवार को निधन हो गया। सुबह 7 बजे के करीब उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। वे पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे। निधन की खबर से संगीत जगत में शोक की लहर फैल गई है। उनके चाहने वाले तमाम लोक कलाकार, संगीतकार तथा लोकगायकों ने शोक व्यक्त किया है। उनके निधन को संगीत जगत के लिए अपूरणीय क्षति बताया है। उनका अंतिम संस्कार आज गंडई में किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि, खैरागढ़ जिले के गंडई में रहने वाले धुरवा राम मरकाम राष्ट्रीय स्तर के गायक थे। वे लोकगायिका स्व. दुखिया बाई मरकाम के पति थे। उन्होंने सांस्कृतिक लोक कला मंच काली कोइली, मया के फूल जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया था। गीत, संगीत और गायकी के क्षेत्र में धुरवा राम मरकाम का नाम बड़े ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। आज भी उनके गाए हुए कई गीतों की प्रस्तुति लोकमंच के कलाकारों द्वारा दी जाती है। धुरवा राम मरकाम के अद्भुत गायकी से प्रभावित होकर कई कलाकार संगीत के क्षेत्र में आए थे। उनसे प्रेरणा लेकर आज भी कई लोकगायक गायकी कर रहे हैं। उन्होंने प्रख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर के नया थियेटर सहित कई नाटकों में काम किया था। लगभग 70 से भी अधिक गीतों को उन्होंने अपने स्वर से नवाजा था। उनका गाया हुआ छत्तीसगढ़ी पारंपरिक गीत आज भी नये गीतों के लिए मार्गदर्शक के रूप में काम करता है।
आकाशवाणी, दूरदर्शन कलाकार थे मरकाम
उल्लेखनीय है कि, धुरवा राम मरकाम आकाशवाणी और दूरदर्शन के सिद्धहस्त कलाकार थे। उनका गाया हुआ कई धरोहर गीत आज भी रायपुर आकाशवाणी और दूरदर्शन में प्रसारित होता है। मशहूर गीतकार व कवि डॉ. पीसी लाल यादव का लिखा हुआ कई छत्तीसगढ़ी गीतों को उन्होंने अपना आवाज दिया था। धुरवा राम मरकाम के गीतों में छत्तीसगढ़ की मिट्टी की सौंधी महक होती थी। छत्तीसगढ़ की संस्कृति, परंपरा और यहां के रहन-सहन को समेटे हुए उनके गीतों को लोग आज भी गुनगुनाते रहते हैं।
छत्तीसगढ़ को दिए कई हिट सुपरहिट गीत
धुरवा राम मरकाम का गाया हुआ कई हिट सुपरहिट छत्तीसगढ़ी गीत आज भी लोगों द्वारा बड़े चाव के साथ सुना जाता है। मोर जतन करव रे मँय माटी महतारी अँव, चल संगी देवता ल मनाबो, कनिहा म तोर करधन पांव म सांटी तोर, जंगल-जंगल झाड़ी-झाड़ी, मोर मन करिया रे जैसे कई छत्तीसगढ़ी गीतों को उन्होंने अपना स्वर दिया था। उनके सहज और सरल अंदाज की गायकी से हर कोई उनके मुरीद हो जाया करते थे। गरीबी, अभावों और मुफलिसी का जीवन जीते हुए भी उन्हें संगीत से इतना प्रेम और लगाव था कि उन्होंने आखिरी समय तक भी संगीत का साथ नहीं छोड़ा।