धरसींवा के सोंडरा में मिली पांडुवंशी काल की बुद्ध प्रतिमा : घर बनाने की जा रही थी खुदाई, तभी 3 फीट की गहराई में दिखा ऊपरी भाग, पुरातत्व विभाग के अनुसार 6वीं से 9वीं शताब्दी पूर्व की प्रतिमा
केशव पाल @ रायपुर | रायपुर के धरसींवा से लगे सोंडरा गांव में घर बनाने के लिए की जा रही उत्खनन कार्य के दौरान पांडुवंशी काल की प्राचीन बुद्ध प्रतिमा मिली है। इसे 6वीं से 9वीं शताब्दी पूर्व पांडुवंशी काल की प्राचीन प्रतिमा बताई जा रही है। वहीं कुछ अन्य पुरातात्विक प्रतिमाएं भी मिली है। सोंडरा के भाजपा नेता दिलेन्द्र बंछोर द्वारा गृह निर्माण के लिए किए जा रहे खुदाई कार्य के दौरान बुद्ध की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसकी जानकारी मिलने पर पुरातत्त्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय विभाग के संचालक विवेक आचार्य के निर्देश पर पुरातत्व विभाग की टीम डॉ. पी.सी. पारख, डॉ. वृषोत्तम साहू तथा डॉ. राजीव मिंज के द्वारा सोंडरा पहुंचकर स्थल का निरीक्षण किया गया। उल्लेखनीय है कि, रायपुर-बिलासपुर मुख्य मार्ग में सांकरा से 2 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम दिशा में स्थित धरसींवा ब्लॉक के सोंडरा गांव में खुदाई के दौरान प्राचीनकाल की प्रतिमा मिली है। बता दें कि, उक्त स्थल के करीब ही खारून नदी भी स्थित है। जहां प्रतिमा प्राप्त हुई है वह स्थल गांव के सबसे ऊंचाई वाले भाग पर स्थित है। जिससे यहाँ प्राचीन टीला होने के साक्ष्य दिखाई देते हैं। गांव के ही दिलेन्द्र बंछोर के आवास परिसर में भवन के विस्तार के लिए कालम हेतु किए गए उत्खनन के दौरान भूमि की सतह से लगभग 3 फीट की गहराई से बुद्ध की प्रतिमा का ऊपरी भाग प्राप्त हुआ है।
बलुआ पत्थर में निर्मित है प्रतिमा
अधिकारियों के मुताबिक, बलुआ पत्थर में निर्मित इस प्रतिमा की चौड़ाई 74 सेंटीमीटर, ऊंचाई 87 सेंटीमीटर और मोटाई 40 सेंटीमीटर है। बुद्ध की इस विशाल प्रस्तर प्रतिमा के माथे पर ऊर्णा (तिलक चिन्ह) का अंकन इसे अनोखा रूप प्रदान करती है और इस आधार पर इसके ध्यानी बुद्ध होने की संभावना अधिक प्रतीत होती है। बुद्ध की यह आवक्ष प्रतिमा अपूर्ण है, जिस पर छेनी के चिन्ह साफ दिखाई दे रहे हैं। त्रि-स्तरीय निर्माण तकनीक में बनी बुद्ध प्रतिमा का यह ऊपरी भाग है। इस तकनीक का प्रयोग बालुए पत्थर की विशाल प्रतिमाओं के निर्माण हेतु किया जाता था। जिसमें किसी प्रतिमा को तीन प्रस्तर खंडों में योजना के अनुरूप स्तरों में निर्मित कर लम्बवत स्थापित किया जाता था। इस तकनीक की बनी बुद्ध प्रतिमा के उदाहरण छत्तीसगढ़ के सिरपुर व राजिम और बिहार के बोधगया में देखा जा सकता है।
पुरावशेष पांडुवंशी काल के
अधिकारियों ने बताया कि स्थल निरीक्षण करनें पर यहाँ अन्य प्रतिमाओं के होने की भी जानकारी प्राप्त हुई है। जो कि निकट ही में स्थित मंदिर में तथा मंदिर के बगल में बने चबूतरे पर स्थापित हैं। प्रतिमाओं में भूमिस्पर्श मुद्रा में बुद्ध, उपासक, अज्ञात स्थानक प्रतिमा, योगिक ध्यानी मुद्रा में बुद्ध, ललितासन मुद्रा तारा, स्थानक बोधिसत्त्व के साथ ही 4 शिवलिंग, 4 खण्डित पायदार सीलबट्टे, 1 प्रणाल युक्त प्रतिमा पीठ, कुछ खण्डित प्रतिमाएँ व स्थापत्य खंड प्राप्त हुए हैं। देखने पर उक्त स्थल के पुरावशेष पांडुवंशी काल के (6वीं से 9वीं शताब्दी ई.) प्रतीत हो रहा है।