धर्म संवाद : कृष्ण-रूक्मिणी विवाह प्रसंग सुन भावविभोर हुए श्रोता, बाल कलाकारों पर हुई पुष्प वर्षा, मंगल गीत भी गाए, भक्ति गीतों पर जमकर लगाए ठुमके
केशव पाल @ तिल्दा-नेवरा | समीपस्थ ग्राम मढ़ी में स्व.फूलबती पैकरा की स्मृति में चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत महापुराण सप्ताह ज्ञान यज्ञ के सप्तम दिवस शनिवार को भागवत भूषण पंडित नंदकुमार शर्मा निनवा वाले ने व्यास पीठ से श्रीकृष्ण बाल लीला, कंस वध और रूक्मिणी विवाह की कथा का भावपूर्ण चित्रण किया।कहा कि, हमारा मन ही मथुरा है और यह तन ही गोकुल है। यदि भगवान को पाना चाहते हो तो मन को मथुरा बना लो। जिसका मन पवित्र हो जाता है वह मथुरा बन जाता है। भगवान को वही पाता है जो मलिनता को दूर कर लेता है। पांच कर्मेन्द्री, पांच ज्ञानेन्द्री दस इन्द्रियों से बना हुआ यह शरीर ही गोकुल है। धन्य होना चाहते हो तो तन और मन को परमात्मा को समर्पित कर दो। इस दौरान श्रीकृष्ण-रूक्मिणी का वेश धारण किए बाल कलाकारों पर कथा श्रवण करने आए भागवत प्रेमियों ने जमकर पुष्प वर्षा की। साथ ही विवाह के मंगल गीत गाते हुए नृत्य भी किए। इस मौकें पर बाजे-गाजे के साथ निकाले गए कृष्ण-रूक्मिणी विवाह की आकर्षक झांकी ने श्रद्वालुओं का मन मोह लिया। तो वहीं संगीतमय कृष्ण भजनों पर रसिक श्रोताओं ने खूब ठुमके लगाए। कथा के मध्य भगवान श्रीकृष्ण की धूमधाम के साथ बारात निकाली गई। बारात में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु बाराती बनकर झूमते नाचते हुए कथा पंडाल पहुंचे। इस दौरान भक्त भगवान श्री कृष्ण की महिमा पर आधारित भजनों की मीठी तान पर थिरकते हुए बैंड बाजों की मधुर धुन के साथ चल रहे थे। इस अवसर पर वरमाला धूमधाम से संपन्न हुआ। श्रद्वालुओं ने श्रीकृष्ण और रूक्मिणी के पैर धोकर पूजा-अर्चना की और मंगला आरती गाकर विवाह संपन्न कराया। वहीं भगवान को उपहार भी भेट किए। इस दौरान श्रद्धालुओं ने नृत्य करते हुए जयकारे लगाए तो माहौल धर्ममय हो गया। पंडाल में सारा जनमानस भाव विभोर होकर झूम उठे। वहीं सजीव झांकियां भी सजाई गई थी। जो सभी को खूब आनंदित किया। कथा के दौरान भक्तिमय संगीत ने श्रोताओं को आनंद से परिपूर्ण किया। कृष्ण-रूक्मिणी की वरमाला पर जमकर फूलों की बरसात हुई।
कृष्ण-रूक्मिणी विवाह प्रसंग सुन भावविभोर हुए श्रोता
कथावाचक आचार्य शर्मा ने कृष्ण-रूक्मिणी विवाह प्रसंग पर बोलते हुए कहा कि, श्रीकृष्ण के साथ हमेशा देवी राधा का नाम आता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं में यह दिखाया भी था कि राधा और वह दो नहीं बल्कि एक हैं, लेकिन देवी राधा के साथ श्रीकृष्ण का लौकिक विवाह नहीं हो पाया। देवी राधा के बाद भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय देवी रूक्मिणी हुईं। रूक्मिणी और कृष्ण के बीच प्रेम कैसे हुआ इसकी बड़ी अनोखी कहानी है। इसी कहानी से प्रेम की नई परंपरा की शुरुआत भी हुई। देवी रूक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी। रूक्मिणी अपनी बुद्धिमता, सौंदर्य और न्यायप्रिय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थीं। रूक्मिणी का पूरा बचपन श्रीकृष्ण के साहस और वीरता की कहानियां सुनते हुए बीता था। जब विवाह की उम्र हुई तो इनके लिए कई रिश्ते आए लेकिन उन्होंने सभी को मना कर दिया। उनके विवाह को लेकर माता-पिता और भाई चिंतित थे। बाद में रूक्मिणी का श्री कृष्ण से विवाह हुआ।
ये रहे उपस्थित
कथा श्रवण करने बड़ी संख्या में रसिक श्रोतागण कथा पंडाल पहुंच धर्म लाभ अर्जित कर रहे हैं। इस अवसर पर नुमान पैकरा, विरेंद्र पैकरा, गजेंद्र पैकरा, योगेंद्र पैकरा, रूखमणी पैकरा, दुर्गा पैकरा, राजेश्वरी पैकरा, ममता पैकरा, जितेंद्र पैकरा, लोकेश पैकरा, डॉ. यशवंत पैकरा, यामिनी पैकरा, युक्ति पैकरा, ईश्वरी पैकरा सहित बड़ी संख्या में श्रद्वालु उपस्थित थे।