छत्तीसगढ़रायपुर संभाग

तीन दिवसीय ‘श्री गुरू पूर्णिमा महोत्सव’ का समापन : मां आदि श्री बोले- ‘घर-घर में महाभारत हो रही है, जबकि रामायण होनी चाहिए’

केशव पाल @ तिल्दा-नेवरा | सद्गुरु धाम आश्रम गौरखेड़ा में चल रहे तीन दिवसीय श्री गुरू पूर्णिमा महोत्सव का गुरूवार को समापन हुआ। सदविप्र समाज के तत्वावधान में आयोजित महोत्सव में 27 से 29 जून तक मां आदि श्री के मुखारविंद से रामकथा प्रवाहित हुई। वहीं स्वामी श्री कृष्णानंद महराज जी का आशीर्वचन प्रवचन सुन श्रोता भावविभोर हुए। आखिरी दिवस ब्रम्हदीक्षा और गुरू पूर्णिमा महोत्सव का आयोजन हजारों भक्तों की उपस्थिति में हुआ। उल्लेखनीय है कि, प्रतिवर्ष यहां इस प्रकार का भव्य आयोजन होता है। महोत्सव के दौरान तीन दिनों तक दिव्य प्रवचन और श्रीराम नाम संकीर्तन भक्ति ज्ञान गंगा में भक्त गोता लगाते रहे। इस दौरान स्वामी कृष्णानंद महाराज जी ने व्यास गद्दी से विस्तारपूर्वक व्याख्यान देते हुए पूर्णिमा का महत्व बताते हुए कहा कि, इस पृथ्वी पर 12 पूर्णिमा होते हैं और सभी पूर्णिमा का अलग-अलग महत्व है। जैसे बुद्ध पूर्णिमा, नानक पूर्णिमा, कबीर पूर्णिमा। उसी प्रकार गुरु पूर्णिमा का भी विशेष महत्व है। यह किसी एक व्यक्ति के नाम से नहीं अपितु यह पर्व गुरु के नाम से जाना जाता है। जब वर्षा होती है तो पत्ते से जड़ तक तृप्त हो जाते है। उसी प्रकार गुरुदेव शिष्य के सिर से लेकर पैर तक जन्मों जन्म के मलावरण को साफ कर देते हैं। जिससे शिष्य का जीवन पूर्ण प्रकाशित हो जाता है। माता-पिता के त्याग को समझाते हुए उन्होंने आगे कहा कि, आज का मानव मंदिरों में जाकर सिर झुका लेता है। प्रणाम कर लेता है। लेकिन घर जाकर अपने माता-पिता को प्रणाम नहीं करते और न ही सेवा करते हैं। जबकि प्रथम गुरु तो मां होती है। जिस प्रकार गेहूं के एक दाना से बहुत दाना उत्पन्न होता है। पृथ्वी अपने लिए कुछ भी नहीं छुपाती हजार गुना कर देती है। उसी प्रकार माता-पिता है जो अपने लिए कुछ नहीं छुपाते सब कुछ अपने बच्चों को दे देते हैं। उन्होंने कहा कि, हम अपने शिष्यों को घर छोड़ देने या परिवार छोड़ने नहीं कहते। आप अपने परिवार को भी पालिए व एक-दूसरे के सहयोग से समाज को भी। एक हाथ से व्यापार करे तो एक हाथ से समाज की सेवा भी करें। त्रिदिवसीय महोत्सव के अंतिम दिन महाभंडारा के साथ पूर्णाहुति हुआ। जिसमें हजारों भक्तों ने साधना शिविर में भाग लिया। साथ ही महाभंडारे का प्रसाद भी ग्रहण किया। महोत्सव में दूर-दूर से भी भक्त आश्रम पहुंचे हुए थे। अंतिम दिन ब्रम्हदीक्षा लेने बड़ी संख्या में भक्त शामिल हुए। इस दौरान आचार्य मनीष अग्रवाल, हेमंत साहू, प्रथम प्रचारक डिगेश्वर साहू, महेन्द्र वर्मा, प्रांताध्यक्ष प्रदीप नायक, आचार्य संतोष शर्मा, कमल शर्मा, भुवनेश्वर साहू, योगेश वर्मा, छाया वर्मा, माधुरी वर्मा, सत्या पटेल, रीता भीमकर, सुनिता वर्मा, कुलेश्वरी पुष्पलता नायक, लक्ष्मी बघेल, कृष्णा वर्मा, सक्षम, नूतन, शंकर साहु, यादराम साहू, कैलाश, तुलाराम वर्मा, केशांत वर्मा, दिनेश ध्रुव, जशवीर कैवर्त, जितेंद्र पटेल सहित सदविप्र समाज के लोग, भक्त व भारी संख्या में दूरदराज सहित आसपास के ग्रामीण उपस्थित रहे।

वृक्ष भी परमात्मा का ही प्रतीक है : स्वामी श्री कृष्णानंद महराज

NEWS 36 से विशेष बातचीत में स्वामी श्री कृष्णानंद महराज जी ने कहा कि, विज्ञान का अर्थ है विशेष ज्ञान। नॉलेज मतलब बहुत तरह का ज्ञान जिसे हम इकट्ठा कर लेते हैं। अनुभव वह होता है जो अपने अंदर से निकलता है। मंदिर में जाकर जिसे हमने बनाया है। हम हाथ जोड़ते हैं, प्रार्थना करते हैं। परंतु घर में जिन्होंने हमें बनाया है उनको हम न हाथ जोड़ते हैं न प्रार्थना करते हैं। पर्यावरण पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि, वृक्ष भी परमात्मा का ही प्रतीक है। लोगों को पेड़ लगाकर उनकी रक्षा करनी चाहिए। इससे ही पर्यावरण बचेगा। जब-तक हम वृक्ष के प्रति, धरती के प्रति, वायुमंडल के प्रति सजग नहीं होंगे तब-तक परमात्मा का ठीक-ठीक पूजा नहीं कहलाएगा।

घर-घर में महाभारत हो रही है, जबकि रामायण होनी चाहिए

एक सवाल के जवाब में मां आदि श्री ने कहा कि, लोगों ने एक माइंडसेट बनाया लिया गया है कि, जिनके बाल सफेद हो रहें हैं केवल वही सत्संग में जाता है। सत्संग के प्रति जागरूक करने का काम बच्चों के माता-पिता का है। बचपन से ही जिस परिवार में बच्चे सत्संग में आते हैं। गुरू के दरबार में आते हैं। शीश झुकाना जानते हैं। वे सत्संग का लाभ, उनके महत्व समझते हैं। इसके बजाए उन लोगों के जिनके घर में कभी कोई किसी गुरू के दरबार में गया नहीं। युवाओं को मार्गदर्शन की जरूरत है। हमारे घर में, हमारे बच्चों में, हमारे परिवारजनों में जितने भी धर्म ग्रंथ है। उनका सहीं-सहीं प्रचार नहीं हुआ है। इसलिए आज घर-घर में महाभारत हो रही है। जबकि घर-घर में रामायण होनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि, पारिवारिक संबंधों में गठबंधन है जो आज टूटता जा रहा है वो इसलिए कि, कहीं न कहीं हम अपने ग्रंथ का सहीं प्रचार नहीं कर रहें हैं। आज हमारे ग्रंथ को व्यवसाय की तरह देखा जा रहा है। धनोपार्जन की विधि समझी जा रही है। ऐसे में बहुत कम लोग हैं जो धर्म ग्रंथों का सहीं प्रचार कर लोगों को जोड़ने का काम कर रहें हैं।

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