छत्तीसगढ़ी व्याकरण के सर्जक , काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू, 11 सितम्बर स्मरण दिवस म सूरता
आलेख – सुशील भोले
छत्तीसगढ़ी भाखा ह आज अंतर्राष्ट्रीय अगास म पांखी लगाके उड़ान भरत हे, त एकर नेंव म 11 सितम्बर सन् 1884 के काव्योपाध्याय के उपाधि ले सम्मानित होय हीरालाल जी चंद्रनाहू के दूरदर्शी सोच अउ कारज ह पोठ बुता करे हे, कहिबो त कुछू अनफभिक नइ होही.
हीरालाल जी वो बखत छत्तीसगढ़ी व्याकरण के रचना करिन जब हिन्दी के घलो कोनो सर्वमान्य व्याकरण प्रकाशित नइ हो पाए रिहिसे. एकरे सेती सन् 1881 ले 1885 तक म लिखे उंकर ए व्याकरण ल सन् 1890 म अंगरेजी म अनुवाद कर के छत्तीसगढ़ी अउ अंगरेजी म समिलहा छपवाने वाला विश्वप्रसिद्ध व्याकरणाचार्य सर जार्ज ए ग्रियर्सन ह हीरालाल जी के आभार व्यक्त करत लिखे रिहिन हें- “हीरालाल जैसे विद्वानों के कारण ही हम भिन्न-भिन्न भाषाओं के बीच सेतु बनाने के अपने प्रयास में सफल हो पाते हैं.”
हीरालाल जी के जनम रायपुर के तात्यापारा म सन् 1856 म महतारी राधाबाई अउ सियान बालाराम चंद्रनाहू जी के घर होए रिहिसे. वइसे उंकर मूल गाँव धमतरी जिला के कुरूद तहसील के गाँव राखी (भाठागांव) आय. इहाँ एक बात ल जानना जरूरी हे, के हीरालाल जी के जन्म अउ निधन के निश्चित अउ प्रमाणित तिथि के जानकारी अभी नइ मिल पाए हे. हमर अपन समिति ‘नव उजियारा साहित्य एवं सांस्कृतिक संस्था ‘ के माध्यम ले गजब खोजबीन करेन, फेर सफल नइ हो पाएन. अइसने उंकर मूल फोटो घलो नइ मिल पाइस. तब सब इतिहासकार, साहित्यकार अउ सामाजिक विद्वान मन के सलाह अउ सुझाव म एक मानक रेखाचित्र (ए लेख संग संलग्न हे) बनवाए रेहेन. सौभाग्य ले आज इही रेखाचित्र ह सरकारी, गैरसरकारी, साहित्यिक अउ सामाजिक सबो जगा के आयोजन म चलत हे. वइसने जन्म अउ निधन के प्रमाणित जानकारी नइ मिले के सेती वोमन ल जेन 11 सितम्बर 1884 के ‘काव्योपाध्याय’ के उपाधि मिले रिहिसे, तेने तिथि ल सबो विद्वान मन के सर्वसम्मति निर्णय ले ‘स्मरण दिवस’ के रूप म मनाथन, हीरालाल जी के सुरता करथन, उंकर छत्तीसगढ़ी खातिर करे गे कारज के सेती आभार व्यक्त करथन.
हीरालाल जी के प्राथमिक शिक्षा रायपुर म ही होए रिहिसे. सन् 1874 म उन जबलपुर ले मेट्रिक पास करिन तब सिरिफ 19 बछर के उमर म सन् 1875 म ही उन रायपुर जिला म सहायक शिक्षक के पद म नियुक्ति पागे रिहिन हें. हीरालाल जी लइकई ले ही पढ़ाकू मनखे रिहिन, एकरे सेती उन खुद के प्रयास ले ही उर्दू, उड़िया, बांग्ला, मराठी अउ गुजराती भाषा सीख गये रिहिन अउ उन जम्मो भाखा म वो बखत उपलब्ध रेहे मुख्य पोथी मनला पढ़ डारे रिहिन.
सन् 1881 म उंकर लिखे ‘शाला गीत चंद्रिका’ नवल किशोर प्रकाशन नई दिल्ली ले छप के आइस, कुछ विद्वान प्रकाशन संस्था ल लखनऊ के बताथें. इही कृति खातिर बंगाल के राजा सौरेन्द्र मोहन टैगोर (ठाकुर) उनला सम्मानित करे रिहिन हें. हीरालाल जी के एक अउ अमर कृति ‘दुर्गायन’ खातिर सन् 1884 म राजा सौरेन्द्र मोहन टैगोर उनला स्वर्ण पदक देके सम्मानित करे रिहिन हें. ‘दुर्गायन’ म हीरालाल जी दुर्गा सप्तशती के दोहा मनला प्रस्तुत करे रिहिन हें. इही कृति खातिर बंगाल संगीत अकादमी कलकत्ता द्वारा उनला “काव्योपाध्याय’ के उपाधि ले सम्मानित करे गे रिहिसे. काव्योपाध्याय के उपाधि ल वो बखत के सबले प्रतिष्ठित उपाधि माने जावत रिहिसे. हीरालाल जी के मूल नाम हीरालाल चंद्रनाहू रिहिसे, एकरे सेती उन अपन नाम हीरालाल चंद्रनाहू ही लिखंय, फेर काव्योपाध्याय के उपाधि मिले के बाद उन हीरालाल काव्योपाध्याय लिखे लागिन. फेर हमर मनके जिहाम तक सुझाव हे, के अब उंकर नॉंव ल ‘काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू’ लिखे जाना चाही. काबर ते उपाधि ल हमेशा नाम के पहिली लिखे जाथे, नाम के बाद नहीं. जइसे- भारतरत्न फलाना, पद्मभूषण फलाना या पद्मश्री फलाना आदि आदि… नाम के बाद वो मनखे के सरनेम या उपनाम ल ही लिखे के परंपरा हे, उपाधि ल नहीं.
आगू चलके हीरालाल जी ल धमतरी के एंग्लो वर्नाकुलर टाऊन स्कूल म प्रधान पाठक के नौकरी मिलगे रिहिसे. एकर पहिली कुछ दिन उन बिलासपुर म घलो पढ़ावत रिहिन हें. हीरालाल जी एक योग्य अउ समर्पित शिक्षक होए के संगे-संग अग्रणी सामाजिक कार्यकर्ता घलो रिहिन हें, एकरे सेती उनला धमतरी नगर पालिका के अध्यक्ष बने के सम्मान घलो मिले रिहिसे.
हीरालाल जी लइका मन खातिर बाल मनोविज्ञान ऊपर आधारित हिन्दी म ‘बालोपयोगी गीत’ अउ अंगरेजी म ‘रायल रीडर भाग-1 अउ रायल रीडर भाग-2 लिखिन. बालोपयोगी गीत संगीतबद्ध रिहिसे, तेकरो खातिर उनला बंगाल संगीत अकादमी डहार ले सम्मानित करे गे रिहिसे.
हीरालाल जी के लिखे छत्तीसगढ़ी व्याकरण ह सबले जादा प्रसिद्ध होइस. एकर कतकों भाषा म अनुवाद होए हे. विश्वप्रसिद्ध व्याकरणाचार्य सर जार्ज ए ग्रियर्सन ह वो बखत पूरा भारत के लगभग सबोच भाषा मनके सर्वेक्षण करवाए रिहिन हें, तब ए बेरा म उनला सिरिफ छत्तीसगढ़ी भर के व्याकरण ह वैज्ञानिक दृष्टिकोण ले व्यवस्थित देखे बर मिले रिहिसे. एला देख के उन अतेक प्रभावित होइन, के हीरालाल जी के सम्मान करत उंकर नाम ल लिखत ‘एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल’ शोध पत्रिका के खंड 49 भाग 1 म अनुवाद अउ संपादित कर छपवाए रिहिन हें. एकर सेती हीरालाल जी के संगे-संग छत्तीसगढ़ी भाखा ल घलो अंतर्राष्ट्रीय स्तर म चिन्हारी मिलिस.
आगू चलके हीरालाल जी के छत्तीसगढ़ी व्याकरण म थोर-बहुत संशोधन करके लोचन प्रसाद पाण्डेय जी ह राय बहादुर हीरालाल जी के मार्गदर्शन म विस्तारित करत मध्यप्रदेश शासन के माध्यम ले छपवाए रिहिन हें. हमर रायपुर के इतिहासकार प्रभूलाल मिश्रा अउ डा. रमेन्द्रनाथ मिश्रा मन घलो उंकर व्याकरण ऊपर आधारित एक ग्रंथ लिख के छपवाए हें.
हीरालाल जी सामाजिक अउ साहित्यिक गतिविधि मन म अतेक जादा मगन राहंय, के अपन सेहत डहार जादा चेत नइ कर पावत रिहिन हें. एकरे सेती उन सन् 1890 के अक्टूबर महीना म सिरिफ 34 बछर के उमर म ही ए दुनिया ले बिरादरी ले लेइन. फेर अतकेच नान्हे उमर उन छत्तीसगढ़ी भाखा अउ साहित्य खातिर जेन बड़का अउ पोठ बुता करे हें, वो ह अतुलनीय हे. उंकरे भरोसा आज छत्तीसगढ़ी ल अंतर्राष्ट्रीय स्तर म चिन्हारी मिले हे. उंकरेच भरोसा हम छाती ठोक के छत्तीसगढ़ी ल भाषा आय कहिके बता सकथन. उंकर सुरता ल नमन करत सरकार डहार ले अभनपुर के महाविद्यालय मन के नाम ल उंकर सुरता म रखे गे हावय.
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811