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रायपुर : पोरा के दिन होथे जांता, पोरा अउ बईला के पूजा, तीजा म महिला मन पति के लंबा आयु बर रखथे उपास

केशव पाल – छत्तीसगढ़ के जनजीवन म तिहार अउ उत्सव के अड़बड़ महत्व हे। परंपरा के जीवंत रूप म अनोखा रंग ल समेटे तीजा-पोरा तिहार जिनगी म उमंग अउ उत्साह के नवा लहर ल जनम देथे। अनेक तरह के ऐतिहासिक, पौराणिक अउ धार्मिक मान्यता ल सहेजे समेटे एक इही अइसन तिहार आय जेमा जिनगी के सुख-दुख, आशा, विश्वास अउ जन-जन के आस्था ह अभिव्यक्ति पाथे।
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भादो महीना के अमावस्या तिथि के पोरा तिहार मनाय जाथे। पोरा खरीफ फसल के निंदाई गुड़ाई पूरा होय के बाद फसल के बाढ़े के खुशी म मनाय जाथे। ए दिन किसान मन बैला के पूजा कर ओकर प्रति कृतज्ञता अउ आभार व्यक्त करथे। किसानी ले जुड़े पोरा तिहार के दिन म धान के बाली म दूध भरना शुरू हो जाथे। यानी अन्न के देवी इही दिन म गर्भवती होथे। पोरा के दिन माटी के बने खिलौना, नंदिया बैला, जांता, पोरा मन के पूजा होथे। ए दिन संझा बेरा गांव के युवती अउ महिला मन गांव के बाहिर मैदान या चौराहा म जिहां नंदी बैला या साहड़ा देव के प्रतिमा स्थापित रहिथे उंहा पोरा पटके ल जाथे। पोरा म रोटी पीठा भर के पटके के परंपरा हे। एहा एक प्रकार ले खुशी के इजहार करे के तरीका आय। ठेठरी अउ खुरमी ल शंकर-पार्वती के प्रतीक घलो माने जाथे। अइसे मान्यता हे कि शादी के बाद महिला मन जब ससुराल चले जाथे त मइके म बचपन म खेलइया जम्मो खेलकुद छूट जाथे इही पाय के ओमन ल तीजा पोरा तिहार मनाय बर मइके लाने जाथे ताकि ओमन अपन संगवारी मन संग बचपन ल सुरता करत खिलौना ल खेलत खुशी मना सकय। इही बहाना जुन्ना संगवारी मन संग मुलाकात घलो हो जाथे। ए दिन लइका मन नंदिया बैला म चक्का लगा के ओला दौडा़थे। त उंहे घर-घर म बने छत्तीसगढ़ी पकवान रिश्ता म मिठास घोलत घलो नजर आथे।

पोरा ल गर्भाही तिहार के रूप म घलो मनाय जाथे। गर्भाही के मतलब गर्भधारण करना होथे। भादो अमावस्या के आत-आत धान के पौधा म दूध भर जाथे। गर्भाही तिहार के मतलब इही हे कि जब बेटी मन गर्भधारण करथे तब मइके ले सधौरी लेके जाय जाथे।ठीक उही तरह ले पोला के दिन कृषक मन खेत म चीला चढ़ाथे। पोरा परब के पौराणिक महत्व के बात करन त अइसे किवदंती हे कि ए दिन भगवान कृष्ण ल ओकर ममा कंस ह मारना चाहत रहिस। कंस ह कई राक्षस मन ले कृष्ण ऊपर हमला कराइस। लेकिन सबो नाकाम रहिस। इही म एक राक्षस रहिस पोलासुर जेकर भगवान कृष्ण ह वध कर दे रहिस। इही समय ले भादो अमावस्या ल पोरा के नाम ले जाने जाथे।

हरतालिका तीज भादो महीना के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि के मनाय जाथे। एला तीजा घलो कहे जाथे। ए दिन विवाहित महिला मन अपन पति के लंबा उमर बर उपास रखथें। ए दिन भगवान शिव अउ माता पार्वती के पूजा करे जाथे। तीजा के पहिली दिन महिला मन घर-घर जाके करू भात अर्थात् करेला साग म भात खाथे। अउ ओकर बिहान दिन तीजा उपास रहिथे। ओकर बाद अगला दिन फरहार करके व्रत ल तोड़थे। इही दिन गणेश चतुर्थी घलो पड़थे। ए दिन तिजहारिन अउ उपसहिन मन नवा-नवा लुगरा के संग श्रृंगार करे नजर आथे। अइसे मान्यता हे कि पार्वती ह बचपन ले ही भगवान शिव ल वर के रूप म प्राप्त करना चाहत रहिस। एकर बर ओहा 12 बछर तक कठोर तपस्या करे रहिस। एक दिन नारद ह पार्वती ल कहिस कि भगवान विष्णु के संग आपके विवाह तय होगे हे। त एला सुनके माता पार्वती निराश होगे रहिस अउ एकांत जगह म जाके अपन तपस्या फेर शुरू कर दे रहिस। पार्वती सिर्फ भगवान शिव ले ही विवाह करना चाहत रहिस अउ ओला प्रसन्न करे बर माटी के शिवलिंग के निर्माण करिस। वो दिन हस्त नक्षत्र म भाद्रपद शुक्ल तृतीया के दिन रहिस। माता पार्वती वो दिन व्रत रखके भगवान शिव के स्तुति करे रहिस। तब भगवान शिव माता पार्वती के तपस्या ले प्रसन्न होके ओकर मनोकामना ल पूरा करे के वरदान दिस। पुराण म वर्णन मिलथे कि हरतालिका तीज के दिन ही माता पार्वती के तपस्या ले खुश होके भगवान शिव ह ओला अपन पत्नी स्वीकार करे रहिस।

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