रायपुर संभाग

नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ का मंचन : अहसासों की बारिश में भींगे दर्शक… प्रस्तुति देख भावुक हुए… छलक उठी आँखें

केशव पाल, NEWS 36 @ रायपुर | कहानी में मिलन भी था और बिछोह भी। बिछोह भी ऐसा जो फिर कभी मिलन में न बदल सका। फिर भी प्रेम तो अमर होता है चाहे अपने प्रिय का साथ मिले या ना मिले। इसी तरह से कालीदास और मल्लिका का भी प्रेम अमर हो गया। कुछ यही दिखाया गया नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ में। रंग श्रृंखला नाट्य मंच और इम्पल्स एक्टिंग अकादमी की ओर से शनिवार को राजधानी के जनमंच में ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक का मंचन किया गया। मोहन राकेश लिखित नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ का मंचन हीरा मानिकपुरी के निर्देशन में हुआ। दर्शक हर सीन को सांसें थामें पूरी तन्मयता से देख रहे थे। अंबिका के संघर्ष और पुत्री मल्लिका के लिए चिंता, कालिदास का उज्जैन का राजकवि बनना और फिर मल्लिका का आर्थिक चुनौतियों भरा जीवन शुरू होना जैसे सभी सीन अच्छे डायलॉग्स के साथ प्रभावी बन पड़े। नाटक की पृष्टभूमि महाकवि कालिदास और उनके जीवन काल के इर्द-गिर्द घूमता है। नाटक में कालिदास और मल्लिका की प्रेमकथा का मंचन कलाकारों की ओर से किया गया। मंचन के दौरान कई बार दर्शक भावुक भी हुए। नाटक में कालिदास के जीवन को सार्थक करने और उन्हें बुलंदियों पर ले जाने के लिए मल्लिका ने काफी त्याग किया। मल्लिका का जीवन पीड़ा के चरमोत्कर्ष पर पहुंच जाता है और कालिदास यह कहते हुए कि समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता उसे छोड़कर चल देता है। इस समय मल्लिका की विलख ने दर्शकों को भावुक कर दिया। मल्लिका माँ की मृत्यु के पश्चात असहाय एवं विवश होकर विलोम से विवाह कर लेती है। उधर कालिदास विद्रोही शक्तियों का सामना न कर पाने के कारण काश्मीर छोड़ देते हैं और मल्लिका के पास आतें हैं। नाटक के माध्यम से यथार्थ एवं भावना के द्वन्द द्वारा इस जीवन दर्शन को स्पष्ट किया गया कि जीवन में भावना महत्वपूर्ण है पर यथार्थ से मुँह मोड़कर जीवन केवल भावना से नहीं चल सकता। नाटक मल्लिका का कालिदास के लिए समर्पित होना और उसके लिए अपना पूरा जीवन ही न्यौछावर करने की अटल प्रेम को दिखाता है। नाटक कवि कालिदास के ग्राम से शुरू होता है जहाँ उसकी प्रेयसी मल्लिका का घर है और मल्लिका की माँ अम्बिका है।

नाटक में दिखा इंसानी फितरत के हर रंग

नाट्य मंचन में इंसान की फितरत के हर रंग देखने को मिला। चाहे वो प्यार हो या अहंकार अथवा ईर्ष्या या फिर राजशाही की हनक। नाटक में दिखाया गया कि, कलिदास ने एक छोटे से गाँव में रह कर ही महाकाव्य ऋतुसंहार की रचना कर दी। उज्जैन के महाराज ने भी इसे बहुत पसंद किया। उन्होंने अपने अधिकारियों को गाँव भेज कवि को यहाँ आने का न्योता दिया। कालिदास मल्लिका से प्रेम तो करता है लेकिन किसी तरह के बंधन में नहीं बंधना चाहता है, और मल्लिका भी उसे कभी मजबूर नहीं करना चाहती। क्योंकि वो उसे बाँध कर नहीं रखना चाहती।

पात्रों की भूमिका में ये रहे…

अंबिका-अंजू कुजूर, मल्लिका-शैव्या सहारे, मातुल-उमेश चौहान, कालिदास-धनराज साहू, राजपुरुष-सत्यम जंघेल, निक्षेप-प्रियांशु शर्मा, प्रियंगु-मनीषा साहू, विलोम-विवेक निर्मल।

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