बारूद फैक्ट्री हादसा : बिना किसी जांच के एनओसी होता रहा जारी, आसपास का पानी बन गया था जहर, नही होता था स्टॉक मेंटेन,आखिर अब तक क्यों नहीं हुई FIR …जानिए फैक्ट्री हादसा की इनसाइट स्टोरी
बारूद फैक्ट्री हादसा : बेमेतरा के बारूद फैक्ट्री हादसा के 48 घंटे गुजर चुके है रेस्क्यू ऑपरेशन कल देर शाम को ही बंद कर दिया गया है शासन के अनुसार अभी 8 लोग लापता बताए जा रहे है जबकि अभी भी फैक्ट्री के सामने धरने पे बैठे और परिजनों की माने तो यह आकंड़ा कही ज्यादा है, धमाके के बाद कंपनी (स्पेशल ब्लास्ट लिमिटेड कंपनी) के उपर सवाल उठने शुरु हो गए है, बताया जा रहा है कि किसी भी तरह के सुरक्षा मानकों का प्रयोग नहीं किया गया था और न ही किसी भी मजदूरों के पास हेलमेट और सेफ्टी शूज थे, ना ही कोई ड्रेस कोड. इस फैक्ट्री में सिर्फ एक पानी की टंकी है, जबकि नियम के तहत हर बारूद यूनिट के पास एक बड़ी पानी की टंकी होनी चाहिए. जिस तरह से यहां पर बारूद फैक्ट्री में काम चल रहा था. उस हिसाब से यहां पर दो बड़े खुद के फायर स्टेशन होने चाहिए थे. अगर अचानक कोई हादसा हो जाए तो उसके लिए यहां पर खुद की फायर ब्रिगेड और मशीनरी होनी चाहिए, लेकिन यहां पर हादसे के बाद दूसरी जगह से फायर ब्रिगेड और चैन माउंटेन मशीन मंगाई गई. बारूद फैक्ट्री में किसी भी तरह का कोई स्टॉक मेंटेन नहीं हो रहा था, कि कितना अमोनियम नाइट्रेट किस यूनिट में है, इसके साथ ही सोडियम फास्फेट का भी, फैक्ट्री की अलग-अलग यूनिट में एक्सप्लोसिव का स्टॉक भरा हुआ है, जो कभी भी खतरा बन सकते है। हालांकि ये स्टॉक कितना होगा इसकी जानकारी अफसरों को भी नहीं है।
फैक्ट्री मालिक संजय चौधरी लापता
स्पेशल ब्लास्ट लिमिटेड विस्फोटक बनाने वाली देश की बड़ी 18 फैक्ट्रियों में शामिल है। यह प्रदेश की सबसे बड़ी एक्सप्लोसिव फैक्ट्री भी है। जानकारी के मुताबिक बारूद फैक्ट्री का संचालन संजय चौधरी नाम का शख्स करता है, लेकिन हादसे के बाद से ही वह लापता है। पीड़ित मजदूरों के परिजन फैक्ट्री मालिक के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, लेकिन पुलिस ने संजय चौधरी के खिलाफ कोई FIR ही दर्ज नहीं की है और ना ही उसे ढूंढ़ने की कोई कोशिश की गई।
कंपनी के स्थापना के बाद से होती रही है घटनाएं
1994 में ग्राम पिरदा में स्पेशल ब्लास्ट लिमिटेड कंपनी की स्थापना हुई थी। इसके बाद से वहां पर आए दिन कुछ न कुछ घटनाएं होती रहती हैं। हादसे के बाद जिस तरह से मजदूरों के रिकार्ड को गायब किया गया है, उससे कंपनी प्रबंधन की भूमिका सबसे अधिक संदेह के दायरे में है। आशंका जताई जा रही है कि प्रबंधन मजदूरों की वास्तविक संख्या को छिपाने का प्रयास कर रहा है। वहीं कंपनी में सुरक्षा के प्रबंध को लेकर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं।
कुछ ग्रामीणों ने ये भी दावा किया कि सिर्फ 50 एकड़ पर फैक्ट्री के लिए अनुमति दी गई है, लेकिन नियम विरुद्ध तरीके से 200 एकड़ से अधिक के क्षेत्रफल पर कंपनी का संचालन किया जा रहा है। हालांकि शासन ने इस घटना की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं। न्यायिक जांच में ही स्थिति स्पष्ट हो सकेगी।
फैक्ट्री के आसपास का पानी बन गया था जहरीला
बारूद फैक्ट्री को बंद करने के लिए गांव के लोग कई बार प्रशासन को आवेदन दे चुके थे, लेकिन लगातार प्रशासन की तरफ से एनओसी जारी किया जाता रहा, बिना किसी जांच के एनओसी जारी करना शक के घेरे में आता है कि कहीं न कही प्रशासन और प्रबंधन के बीच मिलीभगत रही होगी. बारूद फैक्ट्री में उसे होने वाले जहरीले कैमिकल से आसपास के इलाके में पानी पूरी तरह से दूषित हो गया है, जो पीने लायक नहीं है. यहां के मजदूर खुद ही यहां के पानी को नहीं पीते, इस पानी का उपयोग करने से शरीर में कई तरह की बीमारियां हो जाती है, और इस पानी को अगर जो पीता है धीरे-धीरे गंभीर बीमारी से पीड़ित हो जाता है. इसके बावजूद कलेक्टर प्रशासन की तरफ से इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई.
अब तक FIR दर्ज नहीं होने पर उठ रहे है सवाल
बारूद फैक्ट्री में ब्लास्ट के बाद एक मौत हो गई और 8 लोग अब भी लापता है, लेकिन घटना के तीसरे दिन भी अभी तक किसी भी तरह की कोई FIR दर्ज नहीं की गई, ना ही कंपनी प्रबंधन और डायरेक्टर को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई. कंपनी के कुछ कर्मचारियों का आरोप है कि बारूद फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों को किसी भी तरह की कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती थी, ना ही उन्हें सुरक्षा प्रयोग के बारे में बताया जाता था और उनसे 12 घंटे मजदूरों से काम कराया जाता था.
कंपनी का चेक तहसीलदार के देने पे सवाल ?
सरकार ने 5 लाख मुआवजा दे दिया, वहीं प्रबंधन की तरफ से मृतक परिवार के लोगों को 5 लाख मुआवजा देने की बात कही गई है, खुद तहसीलदार इसका चेक लेकर पहुंच रहे हैं, जबकि सरकार की तरफ से अभी किसी को चेक नहीं दिया गया है. क्या प्रशासन और प्रबंधन मिली भगत में कोई खेल हो रहा है. क्या कंपनी का चेक लेकर तहसीलदार पीड़ितों के घर पहुंच रहे हैं क्या यही नियम है.
शरीर के चीथड़े DNA जांच के लिए भेजे गए
ब्लास्ट की वजह से शवों के चीथड़े उड़ गए थे। रेस्क्यू के दौरान फैक्ट्री परिसर में यहां काम करने वाले मजदूरों के शरीर के टुकड़े मिले हैं। जिन्हें इकट्ठा किया गया है। अब इनकी DNA जांच की जाएगी। DNA जांच के आधार पर ही पता चलेगा, कौन किसका परिजन है? DNA रिपोर्ट के आधार पर श्रमिकों के शवों को उनके परिजनों को सौंपा जाएगा। हालांकि अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि फैक्ट्री के भीतर कितने मजदूर थे।