आखिर बार बार क्यों खड़ा हो जाता है रामसेतु विवाद, रामसेतु को लेकर कांग्रेस और भाजपा के क्या क्या है दावें
रामसेतु के अस्तित्व को लेके देश में फिर राजनीतिक बयानबाजी शुरु हो गई है भारत और श्रीलंका को जोड़ने वाले इस पुल को लेकर तरह तरह के दावे हैं और तरह तरह की कहानियां हैं. भारत में रामसेतु पर विवाद और राजनीति खूब हुई है. एक बार फिर से रामसेतु राजनीतिक दलों की जंग का अखाड़ा बन गया है. आईए जानते है रामसेतु से जुड़े दावों और विवादो को
हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, इस सेतु को भगवान राम ने बनवाया था. कहते हैं कि जब लंका के राजा रावण ने मां सीता का हरण कर लिया था तो भगवान राम ने वानर सेना की मदद से इस सेतु का निर्माण कराया था. इस सेतु के जरिये पूरी वानर सेना लंका पहुंची थी और राक्षसों का संहार करके माता को मुक्त कराया था. अंग्रेज इसे एडम ब्रिज कहते हैं तो मुस्लिमों के अनुसार इसे आदम ने बनवाया था. वैज्ञानिक इन कहानियों पर विश्वास नहीं करते, वे इसे प्राकृतिक घटना मानते हैं.
सेतुसमुद्रम से शुरू हुआ विवाद
भारत में रामसेतु को लेकर असली विवाद 2005 में शुरू हुआ. तत्कालीन मनमोहन सरकार ने सेतुसमुद्रम शिपिंग नहर परियोजना को हरी झंडी दे दी थी. इस परियोजना के तहत इस सेतु को तोड़कर एक मार्ग तैयार करना था जिससे बंगाल की खाड़ी से आने वाले जहाजों को श्रीलंका का चक्कर नहीं लगाना पड़े. इससे समय, दूरी और ईंधन सबकुछ बचाने का मकसद था. हालांकि, हिंदू संगठनों ने इसका विरोध किया और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया.
वाजपेयी सरकार ने दी थी मंजूरी
बता दें कि सेतुसमुद्रम परियोजना को वाजपेयी सरकार में मंजूरी दी गई थी. 2004 में वाजपेयी सरकार ने इसके लिए 3,500 करोड़ रुपये का बजट रखा था. हालांकि, चुनावों में एनडीए सरकार की विदाई हो गई और कांग्रेस की ओर से मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनें. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने जब इसे आगे बढ़ाने पर काम किया तो बीजेपी ही विरोध में खड़ी हो गई. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया.
रामसेतु काल्पनिक है- कांग्रेस
2008 में यूपीए सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर रामसेतु को काल्पनिक करार देते हुए कहा गया, “वहां कोई पुल नहीं है. ये स्ट्रक्चर किसी इंसान ने नहीं बनाया. यह किसी सुपर पावर से बना होगा और फिर खुद ही नष्ट हो गया. इसी वजह से सदियों तक इसके बारे में कोई बात नहीं हुई और न कोई सुबूत है.” कांग्रेस की ओर से दाखिल किए गए इस हलफनामे का खूब विरोध हुआ था, जिसके बाद कांग्रेस पार्टी ने इसे वापस लिया और कहा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है.
सस्पेंड हुए थे ASI के दो अधिकारी
सर्वोच्च अदालत में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने एक हलफनामे में रामसेतु के अस्तित्व को खारिज कर दिया था. इस बात पर देश में इतना हंगामा हुआ कि न केवल हलफनामा वापस ले लिया गया, बल्कि एएसआई के दो अधिकारियों को भी निलंबित कर दिया गया. 2014 में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि रामसेतु को तोड़ा नहीं जाएगा. हालांकि, इस परियोजना को नए विकल्प खोजने के लिए जारी रखा गया था.
जितेंद्र सिंह के बयान पर विवाद
संसद में रामसेतु पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के बयान पर राजनीति शुरू हो चुकी है. एक बार फिर से रामसेतु के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है. दरअसल सदन में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने हरियाणा से निर्दलीय सांसद कार्तिकेय सिंह के एक प्रश्न का जवाब देते हुए कहा, “इसकी खोज में हमारी कुछ सीमाए हैं. वजह यह है कि इसका इतिहास 18 हजार साल पुराना है और अगर इतिहास में जाएं तो ये पुल करीब 56 किलोमीटर लंबा था. टेक्नोलॉजी के जरिये कुछ हद तक हम सेतु के टुकड़े, आइलैंड और एक तरह के लाइम स्टोन के ढेर की पहचान कर पाए हैं. हम यह नहीं कह सकते हैं कि ये पुल का हिस्सा हैं या उसका अवशेष हैं.” जितेंद्र सिंह के इस बयान पर कांग्रेस ने हमला किया है.
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