छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में किन्नर करते है नवरात्रि में देवी की पहली पूजा, चढ़ाते है चुनरी
छत्तीसगढ़ के बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के सिंहड्योढ़ी स्थित मंदिर में मध्यरात्रि को 12 से 1 बजे के बीच किन्नरों ने देवी दंतेश्वरी को चुनरी चढ़ाकर पूजा अर्चना की। नवरात्रि पर मंदिर के कपाट खुलने के बाद भक्त देवी की पूजा अर्चना करते हैं, लेकिन बस्तर की संस्कृति और परंपरा अपने आप में अनूठी है। यहां रात 12 बजे किन्नरों ने नवरात्रि में देवी की पहली पूजा की। उनके द्वारा लाए गए चुनरी को देवी को चढ़ाई गई। यह परंपरा आज की नहीं, बल्कि रियासतकाल से चली आ रही परंपरा है।
किन्नर समाज ने की पहली पूजा
नवरात्र के पहले दिन किन्नर समाज के लोग बग्गी पर सवार होकर शृंगार यात्रा निकालते हैं. मां के भजन गाते हुए मां दंतेश्वरी के दरबार में पहुंचते हैं. सुबह करीब 4 बजे जैसे ही देवी दंतेश्वरी का दरबार खुलता है. किन्नर समाज के लोग उनका सबसे पहले दर्शन करते हैं. सालों से ये परंपरा चली आ रही है. सबसे पहले मां को किन्नरों की ओर से ही चुनरी भी चढ़ाई जाती है.
श्रृंगार यात्रा में ओडिशा से भी आते हैं किन्नर
मां दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी कृष्ण कुमार पाढ़ी ने बताया कि, बुधवार की रात लगभग 12 बजे देवी मां के दर्शन सबसे पहले किन्नरों ने की। इसके साथ ही किन्नर समाज ने सबसे पहले मां को श्रृंगार सामान अर्पित किया। हर साल किन्नरों के श्रृंगार यात्रा में जगदलपुर के अलावा पड़ोसी राज्य ओड़शिा से भी बड़ी संख्या में किन्नर यात्रा में शामिल होने के लिए बस्तर पहुंचते हैं। उन्होंने बताया इस रिवाज के पीछे मुख्य उद्देश्य यह भी है कि व्यापारियों व बस्तरवासियों पर किसी तरह की कोई समस्या ना आए और किसी की गोद खाली ना रहे। इसलिए वे हर साल देवी मां दंतेश्वरी से प्रार्थना करने पहुंचते हैं।
पहले किन्नर समाज को कोई इज्जत नहीं मिलती थी, इसीलिए रानी की दासी रानी फूलमती बाई ने यह प्रथा शुरू किया था. उनकी मौत होने के बाद यह प्रथा समाप्त हो गई थी. इसे बस्तर में पिछले 15 साल पहले शुरू किया गया है. उसके बाद लगातार ये परम्परा निभाया जा रहा है. इस पूजा के पीछे उनका उद्देश्य होता है कि सभी व्यापारियों और बस्तरवासियों पर किसी तरह की कोई समस्या ना आए और किसी की गोद खाली ना रहे, इसलिए दंतेश्वरी देवी से वे प्रार्थना करने पहुंचते हैं. यह बस्तर और दंतेवाड़ा में किया जाता है.