देव दीपावली: कार्तिक पूर्णिमा के साथ प्रदेश में मेला-मड़ई संस्कृति की हुई शुरूआत, श्रद्वालुओं ने आस्था की डूबकी लगाकर किया दीपदान, पिकनिक स्पॉट रहे गुलजार
केशव पाल @ तिल्दा-नेवरा | कार्तिक पूर्णिमा के साथ प्रदेश में मेला-मड़ई संस्कृति की शुरूआत हो गई। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर शुक्रवार को जगह-जगह पारंपरिक पुन्नी मेला का आयोजन किया गया। अब छत्तीसगढ़ के मंदिर देवालय, पवित्र नदी तटों और पर्यटन स्थलों में मेला-मड़ई लगना शुरू हो जाएगा। दीपावली से मड़ई और कार्तिक पूर्णिमा से मेला की शुरूआत होती है जो महाशिवरात्रि तक चलती है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर क्षेत्र में अनेक जगहों पर मेला लगा जहां पर्यटक पिकनिक भी मनाते नजर आए।
बता दें कि, हिन्दू शास्त्र के अनुसार कार्तिक महीनें की शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। धर्मशास्त्र के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, यज्ञ, हवन, दीपदान, जप-तप, अर्घ्य, तर्पण, पूजन और कीर्तन का खास महत्व बताया गया है। ज्योतिषियों के मुताबिक इस दिन किए जाने वाला दान-पुण्य और धार्मिक कार्य विशेष फलदायी होता है। कार्तिक महीनें की आखिरी दिन पूर्णिमा तिथि होती है। इस दिन चंद्रमा के साथ-साथ भगवान विष्णु का भी पूजा करते है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन से हिन्दू धर्म का नौंवा महीना अगहन की शुरुआत होती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर राक्षस का अंत किया था। इसी खुशी में देवताओं ने दीप जलाकर खुशी मनाया था। इसी कारण इसे देव दीपावली भी कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी बताया गया है। इसे देवताओं की दीपावली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन ब्रम्हमुहूर्त में पवित्र नदी में स्नान, पूजन और कर्मकांड का खास विधान है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने इस दिन आसमान के नीचे शाम के समय घरों,मंदिरों,पीपल के पेड़ और तुलसी के पौधा के पास दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा उत्सव पांच दिनों का होता है। यह प्रबोधिनी एकादशी के दिन से शुरू होकर पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है।
एक महीनें तक कार्तिक नहानें की परंपरा
पुराने समय से ही यहां पूरे एक महीनें तक कार्तिक नहानें की परंपरा है। जो शरद पूर्णिमा के दिन से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। इसी कारण इनके समापन के अवसर पर इस दिन लोग सामूहिक रूप से पिकनिक मनाते हुए इस दिन को यादगार बनाते है और सामाजिक समरसता का संदेश देतें है। हर साल की भांति इस साल भी कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर जगह-जगह ऐतिहासिक कार्तिक पुन्नी मेला का आयोजन किया गया। क्षेत्र के प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल सोमनाथ धाम लखना, मां बंजारी धाम खपरी मढ़ी, खल्लारी मंदिर अड़सेना और बोहरही धाम पथरी आदि जगह सुबह से ही पर्यटकों से गुलजार रहा। दूर-दूर से सपरिवार पहुंचे श्रद्वालुओं ने सुबह के समय पुण्य स्नान कर आस्था की डूबकी लगाई और दीपदान कर स्थानीय मंदिरों में जलाभिषेक और पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना की। प्रसिद्ध सोमनाथ धाम में खारून और शिवनाथ नदी के संगम स्थल पर पर्यटक नौकाविहार का भी आनंद उठाए। क्षेत्र के नदी तट, कोल्हान नाला तट, बरौण्डा-अड़सेना बाँध, बंगोली डैम सहित अन्य कई छोटे-बड़े पिकनिक स्पॉट पर भी लोग पिकनिक मनातें नजर आए।
आस्था की डूबकी लगाई, दीपदान भी किया
इस दिन दूर-दूर से पहुंचे श्रद्वालुओं ने पुण्य स्नान कर आस्था की डूबकी लगाई और दीपदान कर जलाभिषेक की। इस दौरान भक्तों ने मंदिरों में पूजा-अर्चना कर मत्था टेके और आशीर्वाद प्राप्त कर सुख-समृद्धि की कामना की। उल्लेखनीय है कि, धर्म-कर्म का पवित्र महीना कार्तिक लोकसंस्कृति का अनूठा रंग समेटे हुए है। धर्म, आध्यात्म और आस्था के अद्भुत संगम का बेजोड़ उदाहरण कार्तिक पूर्णिमा अपन बहुरंगी छटा के साथ राज्य की सांस्कृतिक सम्पन्नता का जीवंत उत्सव है। इस दिन सुबह से ही पिकनिक स्पॉटों सहित मंदिरों में भी भक्तों की खासी भीड़ उमड़ पड़ी। इस दिन विभिन्न स्थानों में कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान सहित सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया।