अब खत्म हो जाऐगा छत्तीसगढ़ और ओड़िसा के बीच महानदी जल विवाद !

छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच महानदी जल विवाद लंबे समय से तनाव का कारण बना हुआ है। लेकिन, अब सौहार्दपूर्ण बातचीत के जरिए हल होने की दिशा में बढ़ रहा है। ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए छत्तीसगढ़ के साथ आपसी संवाद और केंद्र सरकार के सहयोग पर जोर दिया है। भुवनेश्वर के लोक सेवा भवन में आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में सीएम माझी ने इस दिशा में ठोस कदम उठाने की प्रतिबद्धता जताई।
विवाद की उत्पत्ति और कारण
प्रमुख कारण: विवाद का मूल कारण छत्तीसगढ़ द्वारा नदी के ऊपरी क्षेत्रों में कई बड़े बांधों और बैराजों का निर्माण है, जिससे ओडिशा के हिस्से में बहने वाले पानी की मात्रा कम हो गई है। ओडिशा का आरोप है कि छत्तीसगढ़ के इन प्रोजेक्ट्स के कारण उसके निचले इलाकों, खासतौर से हीराकुंड बांध में जल संकट गहरा गया है।
विवाद की पृष्ठभूमि
महानदी छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के फरसिया गांव से निकलती है और ओडिशा में बंगाल की खाड़ी में समाहित होती है, दोनों राज्यों के लिए जीवनरेखा है। यह नदी 900 किलोमीटर की यात्रा करती है, जिसमें 357 किलोमीटर छत्तीसगढ़ और 494 किलोमीटर ओडिशा में पड़ता है।
महानदी का बेसिन 132,100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है, जिसमें छत्तीसगढ़ और ओडिशा के अलावा झारखंड, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल हैं। ओडिशा का आरोप है कि छत्तीसगढ़ ने नदी के ऊपरी हिस्से में कई बांध और बैराज बनाए, जिससे गैर-मानसून महीनों में ओडिशा को पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
सीएम माझी की पहल
मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने बैठक में स्पष्ट किया कि केंद्रीय जल आयोग (CWC) के तहत चल रही प्रक्रिया धीमी गति से आगे बढ़ रही है। उन्होंने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार की सहायता और CWC की तकनीकी विशेषज्ञता के साथ दोनों राज्य आपसी बातचीत के जरिए इस विवाद को हल कर सकते हैं। माझी ने कहा, “ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बीच भाषाई और सांस्कृतिक समानताएं हैं। यह विवाद आपसी सहमति से सुलझाया जा सकता है, जो दोनों राज्यों के हित में होगा और आपसी रिश्तों को मजबूत करेगा।”
इसके पहले, फरवरी 2025 में राजस्थान में आयोजित अखिल भारतीय राज्य जल संसाधन मंत्रियों के सम्मेलन और मार्च 2025 में भुवनेश्वर में विश्व जल दिवस के अवसर पर माझी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस मुद्दे पर चर्चा की थी। दोनों नेताओं ने विवाद को बातचीत के जरिए सुलझाने की इच्छा जताई थी। माझी ने पिछले साल नवंबर में भी इस मुद्दे पर साय के साथ दो बार चर्चा की थी, जिससे इस दिशा में सकारात्मक माहौल बना है।
छत्तीसगढ़ का पक्ष
छत्तीसगढ़ का तर्क है कि चूंकि महानदी का उद्गम उसके ही इलाके में है, उसे अपनी जरूरतों के लिए पानी प्रयोग करने का अधिकार होना चाहिए। साथ ही, राज्य ने उद्योग और सिंचाई के लिए जल संरक्षण की दलील दी है।
ओडिशा की चिंता
ओडिशा सरकार का कहना है कि मानसून के बाद अधिकांश समय उसकी निचली जलधारा सूखी रह जाती है, जिससे सिंचाई, पीने के पानी और पारिस्थितिकी पर गंभीर असर होता है।
न्यायिक हस्तक्षेप और ट्रिब्यूनल
विवाद के बढ़ने पर ओडिशा ने 2016 में केंद्र सरकार से शिकायत की थी। इसके बाद 2018 में केंद्र सरकार ने महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर कर रहे हैं। इस ट्रिब्यूनल को तीन वर्षों में समाधान देने के निर्देश दिए गए, जिसे जरूरत पड़ने पर दो वर्ष बढ़ाया जा सकता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि दोनों राज्यों को संवाद एवं तकनीकी साक्ष्यों के आधार पर, जल बंटवारे का व्यावहारिक और न्यायसंगत हल ढूंढ़ना होगा। ट्रिब्यूनल का निर्णय और दोनों सरकारों की राजनीतिक इच्छाशक्ति, इस लंबे विवाद का समाधान तय करेंगे।
महानदी विवाद केवल दो राज्यों का प्रशासनिक मामला नहीं, बल्कि लाखों लोगों के जीवन, कृषि, उद्योग एवं पर्यावरण के भविष्य से जुड़ा सवाल है। पारदर्शी संवाद, वैज्ञानिक पड़ताल और व्यावहारिक समाधान की जरूरत है, ताकि दोनों राज्यों के लोगों को न्याय मिल सके और महानदी फिर से ‘महान’ बन सके।