इस बार मकर संक्रांति 14 नहीं 15 जनवरी को : सूर्य करेगा राशि परिवर्तन, खरमास होगा समाप्त, दिन बड़ा और रातें होगीं छोटी, सूर्य, शनि और शुक्र का बनेगा संयोग
केशव पाल @ तिल्दा-नेवरा | इस बार मकर संक्रांति को लेकर कन्फ्यूज की स्थिति है। 14 जनवरी को मनाएं या 15 जनवरी को। इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी रविवार को मनाया जाएगा। सूर्य मकर राशि में 14 जनवरी की रात्रि में गोचर करेगा। इसलिए उदया तिथि पर 15 जनवरी को संक्रांति मनाया जाएगा। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं। इस दिन मकर राशि में सूर्य प्रवेश कर जाते हैं। ज्योतिषियों के अनुसार, मकर संक्रांति की शुरुआत 14 जनवरी को रात 08 बजकर 43 मिनट पर होगी। मकर संक्रांति का पुण्य काल मुहूर्त 15 जनवरी को सुबह 06 बजकर 47 मिनट पर शुरू होगा और इसका समापन शाम 05 बजकर 40 मिनट पर होगा। वहीं, महापुण्य काल सुबह 07 बजकर 15 मिनट से सुबह 09 बजकर 06 मिनट तक रहेगा। सूर्य मकर राशि में 14 जनवरी की शाम आ रहे हैं। ऐसे में मकर राशि में शनि सूर्य का संयोग बनेगा। साथ ही शुक्र भी सूर्य और शनि के साथ मकर राशि में होंगे। ऐसे में सूर्य, शनि और शुक्र का संयोग रहेगा। भारतीय ज्योतिष में सूर्य को नवग्रहों का स्वामी माना जाता है। मान्यता है कि सूर्य अपनी नियमित गति से राशि परिवर्तन करता है। सूर्य के इसी राशि परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है। इस तरह साल में 12 संक्रांति तिथियां पड़ती हैं। जिनमें से मकर संक्रांति सबसे महत्वपूर्ण है। हिंदू धर्म और ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। कहा जाता है कि इसी दिन से उत्तरायण शुरू हो जाता है। हिन्दू गणना में मकर संक्रांति के दिन को बहुत शुभ और विशेष माना जाता है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। मकर संक्रांति के दिन ग्रहों के राजा सूर्य धनु राशि को छोड़कर अपने पुत्र शनि की राशि में आते हैं।
फिर से बजने लगेंगी शहनाई
इस पर्व के साथ ही करीब एक महीने से जारी खरमास समाप्त होता है और रूके हुए सभी शुभ और मांगलिक कार्य एक बार फिर से शुरू हो जाते हैं। मकर संक्रांति के अवसर पर तिल और गुड़ के लड्डू बनाने की परंपरा है। ज्योतिषियों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन है और दक्षिणायन देवताओं की रात्रि है। दक्षिणायन की तुलना में उत्तरायण में अधिक मांगलिक कार्य किए जाते हैं। सूर्य जब कर्क राशि में प्रवेश करते हैं तो दक्षिणायन शुरू हो जाता है और सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तो उत्तरायण प्रारंभ हो जाता है। इस बार मकर संक्रांति का आयुध गदा है। वहीं, वाहन व्याघ्र यानि कि बाघ है और उपवाहन अश्व यानी कि घोड़े हैं। इसके अलावा, रविवार के दिन जो दिशा शुभ होगी वह पश्चिम है।
मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व
मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर फेंका था। भगवान की जीत को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। इसके बाद बसंत ऋतु का आगमन आरंभ हो जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव के घर जाते हैं। ऐसे में पिता और पुत्र के बीच प्रेम बढ़ता है। इस दिन भगवान सूर्य और शनि की अराधना शुभ फल देने वाला होता है।
उत्तरायण होना शुरू होगा
इस दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ उत्तरायण होना शुरू हो जाता है। इसलिए ही इस दिन को उत्तरायण भी कहते हैं। इस दिन से दिन बड़े और रातें छोटी होना शुरू हो जाती हैं। शीत ऋतु का प्रभाव कम होने लगता है। इस दिन शनि देव के लिए प्रकाश का दान करना भी बहुत शुभ होता है। इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की भी परंपरा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन प्राण निकलने से व्यक्ति का पुनर्जन्म होने के बजाए सीधे ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि भीष्म पितामह ने 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहने के बाद प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण का इंतजार किया था।
दान-पुण्य और स्नान का महत्व
ज्योतिषियों के अनुसार मकर संक्रांति पर सूर्य और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन भगवान को तांबे के पात्र में जल, गुड़ और गुलाब की पत्तियां डालकर अर्घ्य दिया जाता है। गुड़, तिल और मूंगदाल की खिचड़ी का सेवन कर इन्हें गरीबों को बांटा जाता है। इस दिन गायत्री मंत्र का जाप करना भी बड़ा शुभ बताया गया है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने, तिल-गुड़ खाने तथा सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व है। इस दिन दान में वस्त्र, धन और धान का दान भी किया जाता है। साथ ही इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक इस दिन श्रीहरि के माधव रूप की पूजा और भगवान सूर्य की पूजा तथा व्रत आदि करने से उपासक को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। साथ ही इस दिन तर्पण करने से पितरों को भी मुक्ति मिलती है। इस दिन गंगा, यमुना आदि पवित्र नदियों में पवित्र गंगा स्नान, व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्त्व है। इस दिन किया गया दान अक्षय फलदायी होता है।