अंग्रेजी प्रारूप में फसल बीमा के लिए किसानों को नहीं उलझाए ,निजी बीमा कंपनियों को फायदा पहुँचाने की है साजिश : भारतीय किसान यूनियन

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत खरीफ मौसम की मुख्य फसलों धान सिंचित एवं धान असिंचित तथा अन्य फसल मक्का, कोदो, कुटकी, रागी, सोयाबीन, मूंगफली, तुअर, मूंग एवं उड़द के लिए फसल बीमा कराने का अंतिम तारीख 31 जुलाई 2025 थी जिसे 14 अगस्त 2025 तक बढ़ा दी गई है और इसके लिए सरकार पूरी तरह निजी बीमा कंपनियों को फायदा पहुँचाने में लगा हुआ है.
भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) छत्तीसगढ़ के महासचिव तेजराम विद्रोही ने कहा कि ऋणी किसानों ने खाद व नगद लेते समय ही फसल बीमा के लिए सहमति अथवा असहमति का फार्म हिंदी प्रारूप में भर चुके थे अब सरकार ने यह फरमान जारी किया है कि फार्म अंग्रेजी प्रारूप में पुनः भरा जाए और किसानो से उनके मोबाइल पर ओटीपी के माध्यम से इसे पुष्ट किया जाए यदि किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाता है तो फसल बीमा अनिवार्य सहमति मान ली जाएगी, जो एक प्रकार से दबाव पूर्ण बीमा कराने और निजी बीमा कंपनियों को फायदा पहुँचाने की साजिश है।
उन्होंने आगे कहा कि एक तरफ सरकार हिंदी को प्रोत्साहन देने की बात करती है वही दूसरी ओर जो किसान हिंदी में फार्म भर चुके थे उन्हें अंग्रेजी में फार्म भरने के नाम पर उलझाया जा रहा है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत खरीफ मौसम की मुख्य फसलों धान सिंचित एवं धान असिंचित तथा अन्य फसल मक्का, कोदो, कुटकी, रागी, सोयाबीन, मूंगफली, तुअर, मूंग एवं उड़द के लिए सरकार और उनके वित्तीय अमलों द्वारा किसानों पर फसल बीमा के लिए क्यों दबाव बनाया जा रहा है? क्या इसलिए कि बीमा की राशि किसानों से उनकी खेत की रकबे के आधार पर ली जाती है और ज़ब बीमा क्लेम देना होता है तब नुकसान का आंकलन ग्राम को इकाई मानकर किया जाता है जहाँ पर 75% से अधिक नुकसान होने की स्थिति में 25% तक ही क्षतिपूर्ति प्रदान की जाती है। फसल बीमा के प्रति किसानों की रूचि नहीं होने का सबसे बढ़ा कारण यह है कि ज़ब फ़सल बीमा उनके खेत के रकबा का होता है तो नुकसानी का आंकलन भी खेत में लगे फसल की क्षति के आधार पर किया जाना चाहिए जो कि होता नहीं है और दूसरा कारण यह कि सभी बीमा कंपनिया निजी क्षेत्र के हैं जो बैठे बिठाए आसानी से सरकार और किसानों से बीमा राशि प्राप्त कर मालामाल हो रहे हैं उनको देना कुछ नहीं बस पाना ही पाना है। इसलिए फसल बीमा कराना किसानों कि स्वेक्षा है उन पर किसी प्रकार दबाव न बनाया जाए और जिन किसानों का फसल बीमा हुआ है उनकी क्षतिपूर्ति की मूल्यांकन के लिए ग्राम को इकाई न मानकर खेत को इकाई माना जाए।