छत्तीसगढ़रायपुर संभागसरगुजा संभाग

छत्तीसगढ़ के इस इलाके में जापानी इंसेफेलाइटिस का संभावित खतरा, सुअरों में पुष्टि के बाद 23 इंसानों के सैंपल लिए गए

सरगुजा जिले के सूअरों में जापानी इंसेफेलाइटिस की पुष्टि होने के बाद स्वास्थ्य विभाग अलर्ट मोड में है. मंगलवार को इन जानवरों के संपर्क में आने वाले लोगों के भी सैंपल लिए गए हैं. स्वास्थ्य विभाग की टीम ने सकालो सूअर फार्म में काम करने वाले कर्मचारियों के साथ ही आस पास के कुल 23 लोगों के सैंपल लिए है. अब इस सैंपल को जांच के लिए रायपुर भेजा जाएगा. रायपुर में इस वायरल के इंसानों में फैलने के मामलों की जांच की जाएगी.

120 सुअरों के सैंपल में 61 पॉजिटिव
अक्टूबर महीने के पहले दिन ही सरगुजा जिले में जानलेवा वायरल जापानी इंसेफेलाइटिस की पुष्टि हुई थी. पशु चिकित्सा सेवा ने जापानी इंसेफेलाइटिस के संदेह पर सरगुजा जिले के अंबिकापुर, लुंड्रा, बतौली, सीतापुर, मैनपाट क्षेत्र से 120 सूअरों के सैंपल लिए थे. सैंपल को जांच के लिए आईसीएआर निवेदी बेंगलुरु भेजा गया था. इस दौरान जांच में कुल 61 सैंपल में जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस की पुष्टि हुई है.

जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद पशु चिकित्सा विभाग की ओर से स्वास्थ्य विभाग को अलर्ट कर चेतावनी जारी की गई. साथ ही एसओपी का पालन करते हुए सावधानी बरतने के निर्देश दिए गए. सबसे बड़ी बात यह है कि यह वायरल मच्छर के काटने से फैलता है. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग ने मंगलवार को सतर्कता बरतते हुए इंसानों के भी सैंपल लिए हैं.

सीएमएचओ के निर्देश पर मलेरिया विभाग की टीम ग्राम सकालो पहुंची और सूअर फार्म सहित आस पास के लोगों के कुल 23 सैंपल लिए गए. वर्तमान में सरगुजा जिले में इसके जांच की सुविधा नहीं है. अधिकारियों का कहना है कि इन सैंपल को जांच के लिए रायपुर एम्स भेजा जाएगा और वहां से जांच रिपोर्ट आने के बाद स्पष्ट होगा.

जाने क्या है जापानी इंसेफेलाइटिस (Japanese Encephalitis; JE)
जापानी इंसेफेलाइटिस (Japanese Encephalitis; JE) एक वायरल रोग है, जो मुख्य रूप से एशिया के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में पाया जाता है। यह रोग जेई वायरस के संक्रमण से होता है, जिसका मुख्य वाहक क्यूलेक्स प्रजाति के मच्छर होते हैं। यह मच्छर संक्रमित सूअर या जल पक्षियों से वायरस ग्रहण करके मनुष्यों में फैलाते हैं।

लक्षण
प्रारंभिक लक्षणों में तेज बुखार, सिरदर्द, उल्टी, चक्कर आना और कमजोरी शामिल हैं। रोग के गंभीर रूप में भ्रम, बेहोशी, दौरे और यहां तक कि कोमा हो सकता है। बच्चों में यह बीमारी अधिक गंभीर हो सकती है और मृत्यु दर भी ज्यादा होती है।

रोकथाम
मच्छरों के प्रजनन स्थलों को समाप्त करना चाहिए, जैसे कि जमा पानी की सफाई।व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए मच्छरदानी, रिपेलेंट्स और पूरी बाजू के कपड़ों का इस्तेमाल लाभकारी है। जेई का टीका (वैक्सीन) उपलब्ध है, जो बचाव के लिए सबसे प्रभावी तरीका है। भारत सहित कई एशियाई देशों में टीकाकरण अभियान चलाए जाते हैं।

इलाज
जापानी इंसेफेलाइटिस का कोई विशेष एंटी-वायरल उपचार नहीं है। इलाज मुख्य रूप से लक्षणों के आधार पर किया जाता है – जैसे बुखार कम करना, दौरे रोकना और सांस की तकलीफ का इलाज। रोगी को आईसीयू में भर्ती करने की आवश्यकता पड़ सकती है।

भारत में स्थिति
भारत के कई राज्यों, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, असम और पश्चिम बंगाल में यह रोग महामारी का रूप ले चुका है। सरकारी स्तर पर टीकाकरण और जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता और मच्छर नियंत्रण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष
जापानी इंसेफेलाइटिस एक गंभीर बीमारी है, जिसकी रोकथाम टीकाकरण और मच्छर नियंत्रण से संभव है। सामान्य जागरूकता, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और सरकारी प्रयासों से हम इस बीमारी पर नियंत्रण पा सकते हैं। बच्चों की सुरक्षा के लिए टीकाकरण अनिवार्य किया जाना चाहिए।

महत्वपूर्ण तथ्य:
जेई वायरस सूअर और पक्षियों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है।
मानव-से-मानव संक्रमण नहीं होता है, बल्कि मच्छर ही मुख्य वाहक हैं।
जल्दी पहचान और इलाज से रोगी के जीवन की रक्षा संभव है।

ख़बर को शेयर करें

news36Desk

news36 Desk में अनुभवी पत्रकारों और विषय विशेषज्ञों की पूरी एक टीम है जो देश दुनिया की हर खबर पर पैनी नजर बनाए रखते है जो आपके लिए लेकर आते है नवीनतम समाचार और शोधपरक लेख

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button