12 साल जंगल में जंग लड़ने वाले नक्सली की आपबीती: ‘खूनखराबा, गोली, सब बेकार था…’, दिल छू लेने वाली कहानी आई सामने

छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके से एक ऐसी कहानी सामने आई है, जो न सिर्फ सोचने पर मजबूर करती है बल्कि यह भी दिखाती है कि हिंसा और नफरत किसी रास्ते का हल नहीं हो सकती। 12 साल तक जंगल में बंदूक उठाकर जंग लड़ने वाले एक पूर्व नक्सली ने जब आत्मसमर्पण किया, तो उसकी जुबान से निकले शब्दों ने सबका दिल छू लिया खूनखराबा, गोली, सब बेकार था… हमने सिर्फ अपने लोगों को खोया।”
12 साल तक चला बंदूक का खेल, फिर आई समझ
इस नक्सली ने बताया कि वह महज 17 साल की उम्र में संगठन से जुड़ गया था। नक्सली नेताओं ने उसे ‘क्रांति’ और ‘न्याय’ के नाम पर बंदूक थमाई। लेकिन सालों तक जंगलों में भटकने और साथी लड़ाकों को मरते देखने के बाद उसे एहसास हुआ कि यह रास्ता गलत है।
“हमने हथियार उठाकर सोच लिया था कि बदलाव लाएंगे, लेकिन हर गोली के साथ एक और घर उजड़ता गया,” उसने कहा।
मुख्यधारा में लौटकर मिला सुकून
आत्मसमर्पण करने के बाद इस नक्सली ने बताया कि अब वह शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहता है। वह सरकार की पुनर्वास योजना के तहत खेती और छोटी नौकरी करने की योजना बना रहा है। उसने कहा, “अब मुझे समझ आया कि असली ताकत हथियार में नहीं, शिक्षा और एकता में है।”
सरकार का भी बढ़ाया सहयोग
राज्य सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए पुनर्वास योजना चलाई हुई है। उन्हें आर्थिक मदद, घर और रोजगार के अवसर दिए जा रहे हैं। अधिकारी का कहना है कि पिछले कुछ महीनों में कई नक्सली हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में लौटे हैं। आंखें खोल देने वाली आपबीती उसकी यह कहानी उन युवाओं के लिए एक संदेश है जो बंदूक के रास्ते पर जाने का सोचते हैं। उसने कहा — “हम सोचते थे कि हम आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन असल में हम अपने ही लोगों को नुकसान पहुंचा रहे थे।”






