जमीन का गाइडलाइन दर नहीं बढ़ने देने के पीछे कांग्रेस की बहुत बड़ी साज़िश थी – ओपी चौधरी

वित्त मंत्री ने आरोप लगाया कि पिछली कांग्रेस सरकार ने शराब, कोयला और महादेव सट्टा के काले धन को जमीन में खपाने के लिए गाइडलाइन दरें बढ़ने नहीं दीं, जबकि नई सरकार का दावा है कि आठ साल बाद दरों में तार्किक सुधार कर बाजार मूल्य के करीब लाया गया है।
छत्तीसगढ़ में जमीनों की नई गाइडलाइन दरें लागू होने के बाद राजनीति गरमा गई है। प्रदेश के कई शहरों में रजिस्ट्री महंगी होने का विरोध हो रहा है, तो वहीं राज्य सरकार इसे पारदर्शिता और राजस्व सुधार के लिए जरूरी कदम बता रही है।
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वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने जमीन गाइडलाइन रेट पर उठ रहे सवालों का कड़ा जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि पिछली कांग्रेस सरकार ने सत्ता में रहते हुए जानबूझकर गाइडलाइन दरों को नहीं बढ़ाया, ताकि शराब, कोयला और महादेव सट्टा से आने वाले काले धन को कम दरों पर जमीन में खपाया जा सके।
ओपी चौधरी के मुताबिक, आठ साल बाद गाइडलाइन दरों में किए गए संशोधन का मकसद सरकारी रेट और वास्तविक बाजार मूल्य के बीच के बड़े अंतर को कम करना है। सरकार का तर्क है कि जब जमीन की रजिस्ट्री सरकारी गाइडलाइन से काफी ऊंचे दाम पर होती है, तो एक तरफ राजस्व को नुकसान होता है और दूसरी तरफ होम लोन लेने वाले मध्यमवर्गीय खरीदार को बैंक से पूरी राशि नहीं मिल पाती।
नई गाइडलाइन के लागू होने के बाद कई इलाकों में दरें 20 प्रतिशत से लेकर कई गुना तक बढ़ गई हैं, जिससे रजिस्ट्री पर लगने वाला टैक्स भी बढ़ा है। रियल एस्टेट सेक्टर से जुड़े लोगों और व्यापारिक संगठनों का कहना है कि अचानक हुई भारी वृद्धि से जमीन खरीदना आम आदमी के लिए मुश्किल हो जाएगा और प्रॉपर्टी बाजार पर सीधा असर पड़ेगा।
कांग्रेस ने इस फैसले को जनविरोधी करार देते हुए आरोप लगाया है कि नई गाइडलाइन दरें कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण हैं और इससे जमीन, मकान और दुकानों की कीमतें अनियंत्रित रूप से बढ़ जाएंगी। पार्टी के नेताओं का कहना है कि सरकार को इतना बड़ा फैसला लेने से पहले व्यापक मंथन और स्टेकहोल्डर्स से चर्चा करनी चाहिए थी।
सरकार का दावा है कि राज्यभर में सात महीने तक सर्वे कर, अलग-अलग इलाकों की जमीन का फिजिकल वेरिफिकेशन करवाया गया, जिसके आधार पर नए रेट तय किए गए हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि सड़क के एक ही हिस्से में अलग-अलग गाइडलाइन रेट जैसी विसंगतियों को खत्म कर, एकरूपता और पारदर्शिता लाने की कोशिश की गई है, जिससे भविष्य में जमीन माफिया के खेल पर भी रोक लगेगी।
विवाद के बीच सरकार ने संकेत दिए हैं कि फीडबैक के आधार पर जरूरत पड़ने पर कुछ कैटेगरी या इलाकों में स्लैब घटाने और व्यावहारिक समाधान निकालने पर भी विचार किया जा सकता है। हालांकि फिलहाल सत्तापक्ष गाइडलाइन दरों में मौजूदा संशोधन को सुधारात्मक और लंबी अवधि में जनता के हित में उठाया गया कदम बता रहा है, जबकि विपक्ष इसे बड़े आंदोलन का मुद्दा बनाने की तैयारी में है।






