शरीर का अभिमान रहेगा तब-तक आत्मा की आवाज सुनाई नहीं देगी : पंडित नंदकुमार शर्मा
केशव पाल @ तिल्दा-नेवरा | हमारे धर्म को हमारी संस्कृति को ठोकर देने वालों की कमी नहीं है। चाहे कोई खंडन करे या मंडन करे। हमे इस पर ध्यान नहीं देना है। क्योंकि हमारा धर्म है, हमारी संस्कृति है। परंपरा को निरंतर आगे बढ़ाते रहने पर ही हमारा जीवन दिव्य और धवल होता है। परंपरा को बनाए रखने और उस पर विश्वास बनाए रखने के लिए ही समय-समय पर चमत्कारिक घटनाएं होती रहती है। उक्त बातें ग्राम मढ़ी में स्व.फूलबती पैकरा की स्मृति में पैकरा परिवार द्वारा आयोजित हो रही संगीतमय श्रीमद् भागवत महापुराण सप्ताह ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन गुरूवार को भागवत भास्कर पंडित नंदकुमार शर्मा निनवा वालें ने कही। कथा व्यास ने गजेंद्र मोक्ष, वामन अवतार और हरिश्चंद्र कथा पर सविस्तार व्याख्यान दिया तो भक्त भावविभोर हो उठे। व्यास गद्दी से भगवताचार्य ने कहा कि, गोबर में भी भगवान है। अन्यथा गोबर से गौरी गणेश नहीं बनता। मिट्टी में भी भगवान है। पत्थर में भी भगवान है। हर जगह भगवान है। इसलिए उस सर्व परमात्मा पर विश्वास रखते हुए अपनी संस्कृति पर भरोसा रखना चाहिए। धन और विद्या पाने के बाद उसे बांटने का प्रयास करो, बहाने का प्रयास करो। धन को पाने के बाद अगर उसे धर्म के रास्ते में नहीं बांटा जाए तो धन का दूषित होने में देर नहीं लगती। उसी प्रकार विद्या का उपयोग कर दूसरे की कमी को पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए। बांटने से इसमें कमी नहीं आती बल्कि बढ़ने लगती है। इसमें निर्मलता आती है। जिस प्रकार तालाब चारो ओर से घिरा होता है इसलिए उसका जल गंदा होने में देर नहीं लगती। लेकिन नदी बहती रहती है इसलिए उसमें शुद्ध जल प्रवाहित होती रहती है। उन्होंने कहा कि, दुनिया में न कोई गरीब है न अमीर है। न राजा है न रंक है। न कोई देने वाला है न कोई लेने वाला। सब बराबर है।बस देखने की दृष्टि में ही अंतर है। आगे उदाहरण देकर बताया कि, एक जगह हरिश्चंद्र का नाटक हो रहा था। पर्दा खुल गया। राज मुकुट पहने हरिश्चंद्र स्टेज में आ गया। चार लोग चिथड़ा पहने राजा के पास आए और कहा महाराज की जय हो। हम गरीब पर कृपा हो महाराज। राजा दान दे रहा है। नाटक समाप्त हो गया। सब अंदर चले गए। पोशाक उतार दिए। बाद में एक आदमी आया और मैनेजर से कहा मजा गया जी। मैं हरिश्चंद्र को माला पहनाना चाहता था लेकिन थोड़ी देर हो गई। मुलाकात करा दीजिए। मैनेजर ने कहा पर्दा बंद तो हरिश्चंद्र बंद। अब कहां मिलेगा। वह व्यक्ति अंदर गया तो हरिश्चंद्र साधारण कपड़ा पहने बैठा था। उन्होंने पूछा हरिश्चंद्र कौन है। मै हूँ लेकिन पाठ के समय था हमेशा थोड़ी रहेगा। व्यक्ति ने फिर पूछा आप लोग गरीब थे क्या केवल पाठ कर रहे थे तब गरीब थे। जवाब आया हमेशा थोड़ी रहेंगे। यह संसार भी रंगमंच की तरह है। भगवान ने कुछ देने के लिए भगवान बनाया है तो कुछ लेने के लिए गरीब। बाद में सब बराबर हो जाते हैं।
कथा व्यास ने आगे कहा कि शरीर का अभिमान रहेगा तब-तक आत्मा की आवाज सुनाई नहीं देगी।अभिमान के कारण जीव पतन की ओर चला जाता है। संसार में रहो पर संसार तुम पर न रहे। इसलिए भगवान का नाम हमेशा लेते रहना चाहिए। चाहे जैसे भी हो। मन न हो फिर भी नाम लो तभी मन निर्मल होगा। यही जीवन का प्रसाद है। संसार से एक दिन सभी को जाना है गुरू को भी शिष्य को भी। मरे हुए तन का भी बड़ा कीमत है। इसलिए इनका बराबर संस्कार होता है। जीते जी नहीं होता उतना संस्कार होता है। तभी पीतांबर से ढका जाता है। ताकि इनकी दुर्गति न हो। उन्होंने आगे कहा कि बिना गुरू के कोई तर नहीं सकता।ज्ञानी को भी गुरू बनाना होता है। बिना वैराग्य आए ज्ञान ज्यादा दिन नहीं टिकता। भक्ति बिना सुख नहीं मिलता और गुरू बिना ज्ञान सार्थक नहीं होती। एक बार एक विवाहिता ससुराल से मायके गई। चार दिन बाद जब वह ससुराल आई तो दरवाजे पर उसके पति और ससुर खड़े थे। सवाल था सबसे पहले किसके पैर छुए। तो उन्होंने पहले ससुर का पैर छुए क्योंकि ससुर नहीं होते तो पति नहीं होते। उसी प्रकार गुरू नहीं होते तो भगवान नहीं होता। इसलिए सबसे पहले गुरू को प्रणाम करो। गुरू के द्वारा भगवान नाम का दान दिया जाता है। उन्होंने कहा कि, तीन लोग कभी अपने वचन को संभाल कर नहीं बोलते। बावला, जिन्हें भूतप्रेत ने डस लिया हो और मतवाला। क्षण मात्र की कुसंगति जीवन को बर्बाद कर देती है। चारों युगो को मंदिरा देवी ने बिगाड़ दी है। बाजार में अमृत भी मिलता है और जहर भी। अपने विवेक पर निर्भर करता है हमें क्या लेना है। बनना और बिगड़ना अपने हाथ में है। इसलिए कुसंगति से बचना चाहिए ताकि इंसान के साथ हमारी इंसानियत भी बच जाए। 30 अप्रैल से 8 मई तक आयोजित हो रही कथा में बड़ी संख्या में रसिक श्रोतागण कथा रसपान करने पहुंच रहें हैं।