Bastar Goncha Festival : बस्तर में गोंचा महापर्व की धूम, 32 फीट ऊंचे रथ में होंगे भगवान जगन्नाथ
Bastar Goncha Festival : भगवान जगन्नाथ के महापर्व रथ यात्रा को बस्तर में गोंचा कहते हैं। यह पर्व यहां 615 वर्षों से मनाया जा रहा है। इन दिनों शहर के छह गर्भगृह वाले भगवान जगन्नाथ मंदिर में 615 वां गोंचा महापर्व प्रारंभ हो चुका है। जिसमें बस्तर राजपरिवार के सदस्यों से लेकर वनांचल में रहने वाले आदिवासी तक शामिल होंगे। 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व के बाद बस्तर में मनाया जाने वाला गोंचा पर्व दूसरा बड़ा महापर्व है, लगभग 27 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में अद्भुत रस्मो की अदायगी की जाती है ,जिसे देखने सिर्फ प्रदेश से ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों से और विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक बस्तर पहुंचते हैं.
वही इस पर्व का सबसे आकर्षक और महत्वपूर्ण रस्म रथ यात्रा के लिए रथ बनाने की प्रक्रिया बस्तर के आदिवासी ग्रामीणों ने शुरू कर दी है, जगदलपुर शहर के सिरहासार भवन में ग्रामीणों के द्वारा लकड़ी से करीब 32 फीट ऊंचा रथ तैयार किया जा रहा है, इस रथ को बेड़ाउमर गांव के कारीगर हरदेव यादव के नेतृत्व में 10 सदस्यों की टीम रथ निर्माण कार्य मे जुट गए है, इस रथ में भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र की लकड़ी से बनी प्रतिमा को विराजित कर शहर भ्रमण करवाया जाएगा, जिसे रथयात्रा कहा जाता है.
बस्तर में 615 सालों से मनाया जा रहा गोंचा का पर्व
बस्तर में लगभग 615 सालों से गोंचा महापर्व मनाया जा रहा है, शताब्दियों से चली आ रही इस परंपरा को आज भी बस्तरवासी बड़े धूमधाम से निभाते हैं, परंपरा के अनुसार बस्तर गोंचा पर्व के नए रथ का निर्माण बड़े उमरगांव के आदिवासी कारीगरों के द्वारा किया जाता है.
इस रथ को करीब 15 दिनों में कारीगरों द्वारा पूरी तरह से तैयार कर लिया जाता है और उसके बाद इसकी साज-सज्जा की जाती है, बस्तर में रियासत काल से ही रथ यात्रा का बड़ा महत्व है,बस्तर के इतिहासकारों के मुताबिक बस्तर के तत्कालीन महाराजा को रथपति की उपाधि जगन्नाथ पुरी के महाराजा के द्वारा दी गयी थी इसलिए बस्तर में गोंचा पर्व के दौरान धूमधाम से रथ यात्रा निकाली जाती है.
6 जुलाई को होगा नेत्रोत्सव
बस्तर गोंचा पर्व समिति के सदस्य ओमकार पांडे ने बताया कि पर्व की सारी तैयारियां पूरी हो गई है, 6 को नेत्रोत्सव पूजा विधान और 7 जुलाई को गोंचा रथ यात्रा पूजा विधान की तैयारी जारी है, गोंचा पर्व विधान में नए रथ सहित तीन रथों पर भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र स्वामी के 22विग्रहो को रथारूढ़ कर शहर में भृमण कराया जाएगा और 9 दिनों तक सिरासार भवन (जनकपुरी) में भगवान के सभी विग्रहों को स्थापित किया जाएगा, जहां अद्भुत रस्मो की अदायगी करने के साथ ही देश के कोने कोने से आने वाले श्रद्धालु भगवान के दर्शन कर सकेंगे. वहीं गोंचा पर्व समिति द्वारा इस साल इस पर्व को और आकर्षक बनाने की तैयारी भी की जा रही है ,बताया जा रहा है कि उड़ीसा के कलाकार भी गोंचा पर्व के दौरान अपनी प्रस्तुति देंगे.
रियासत कालीन जेवरात
भगवान जगन्नाथ को प्रतिवर्ष गोंचा के अवसर पर रियासत कालीन चांदी के आभूषणों से अलंकृत किया जाता है । प्रतिवर्ष इन्हें जिला कोषालय से निकाला जाता है और गोंचा निपटने के बाद सुरक्षा के बीच पहुंचा दिया जाता है। इधर अरण्यक ब्राह्मण समाज भी अपने भगवान के लिए 14 किलो वजनी चांदी के आभूषण तैयार करवाया है। इनसे ही भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की विभिन्न मूर्तियों को अलंकृत किया जाता है। कुछ भक्त भी भगवान को आभूषण अर्पित किए हैं, जो समाज के संरक्षण में है।
7 दिवसीय महाभंडारा भगवान जगन्नाथ के प्रसाद को पाने के लिए लोग लालायित रहते हैं इसलिए प्रतिवर्ष 360 ब्राह्मण समाज अमनिया नामक महा भंडारा आयोजित करता है। सात दिनों तक चलने वाले इस महा भंडारा को करीब 150 गांवों में रहने वाले ब्राह्मण समाज के लोग संपन्न कराते हैं। वे ही अपने साथ काफी मात्रा में खाद्य सामग्री लेकर आते हैं और स्वयं इन्हें पका कर भक्तों को बांटते हैं।
सिरहा शहर में अनुष्ठान
गोंचा पर्व के अंतर्गत शहर के ऐतिहासिक सिरहासार भवन को जनकपुर के रूप में संवारा जाता है। यहां भगवान जगन्नाथ आठ दिनों तक विश्राम करते हैं। इस दौरान सिरहासार में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के साथ मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं। यहीं पर प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष सप्तमी के दिन भगवान को छप्पन भोग अर्पित किया जाता है।
तुपकी से भगवान को सलामी रथयात्रा वैसे तो पूरी दुनिया में मनाया जाता है लेकिन बस्तर में इसे गोंचा जाता है और भगवान जगन्नाथ के इस महापर्व के दिन बांस से निर्मित तुपकी चला तथा विशेष प्रकार की आवाज कर भगवान को सलामी दी जाती है इस तरह गोंचा और तुपकी एक दूसरे के पर्याय हो चुके हैं। खासकर बच्चों को तुपकी के कारण ही गोंचा महापर्व का इंतजार रहता है। श्रीगोंचा और बाहूड़ा गोंचा के दिन तुपकी चलाई जाती है।
13 वेशों में भगवान जगन्नाथ शहर के भगवान जगन्नाथ मंदिर की अपनी अलग विशेषता है। यहां भगवान जगन्नाथ के 13 वेशों को स्थापित किया गया है जो काफी दर्शनी है। यह मूर्तियां कोरापुट स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर के एक भक्त के प्रयास से स्थापित हो पाया है। भगवान जगन्नाथ मंदिर आने वाले भक्त आह्लादित होते हैं।