Chhattisgarh : सावधान ! ये ‘नरक’ मार्ग है… चलना है तो जान की कीमत लगा कर…राजधानी का यह हाल तो प्रदेश का…?
Chhattisgarh : केशव पाल रायपुर – शासन-प्रशासन की लोकलुभावन वादों और दावों को ठेंगा दिखाती ये तस्वीर पिछले कई सालों से लोगों को मुफ्त में दर्द दे रहा है लेकिन इनकी आह हमदर्दों को तनिक भी सुनाई नहीं देती। सड़क में गढ्ढे हैं, कि गढ्ढे में सड़क है ये लोगों को भी मुश्किल में डाल देता है। दरअसल यह तिल्दा विकासखंड के मोहरेंगा से कठिया-मोहरा पहुंच मार्ग है। यह सड़क इतना जर्जर हो चुका है कि पैदल चलने लायक भी नहीं बचा है। प्रशासनिक अनदेखी के चलते बद से बदतर हो चुके इस रोड को देख सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि, प्रशासन और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि जनमुद्दों को लेकर कितने गंभीर हैं। मरम्मत के अभाव में जगह-जगह गिट्टियां झांकने लगी है फिर भी जिम्मेदार है कि, इधर झांकने तक नहीं आते। क्षेत्र को राजधानी से जोड़ने वाले इस 20 किलोमीटर तक के सड़क में हर दो कदम पर इतने जानलेवा गढ्ढे हो चुके हैं कि इनकी गिनती भी नहीं की जा सकती ।
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बेबस राहगीर हिचकोले खाते मौत का सामना करते हुए यह खतरनाक सफर रोज तय करते हैं। बता दें कि, दर्जन भर से ज्यादा गांवों की आबादी वर्षों से इसी खस्ताहाल सड़क से रेंग रही है। सफर के दौरान कोई बाइक समेत गिरकर चोटिल हो रहे हैं तो कई लोगों की चारपहिया दलदल में फंस जा रही है। बताते चलें कि, कीचड़ से भरे गढ्ढे बारिश सीजन में तालाब में तब्दील हो जाते हैं। इससे सबसे ज्यादा हलाकान स्कूली बच्चे और दैनिक मजदूर हैं। क्योंकि उन्हें हर रोज दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सड़क को पक्का बनाने ग्रामीणों ने कई बार गुहार लगाई, अर्जियां भी भेजी, आंदोलन हुए, प्रदर्शन भी किए। बावजूद मांग को हर बार अनसुना कर दिया गया। मिला तो सिर्फ़ आश्वासन का झुनझुना। मजेदार बात तो यह है कि, रोड को पक्का बनाने की घोषणा दो साल पहले मंच से की गई थी फिर भी आज तक नहीं बन सका। बता दें कि, इसी बदहाल सड़क से चौबीसों घंटे सीमेंट कंपनियों की मालवाहक गाड़ियां गुजरती है, जिससे जगह-जगह डबरीनुमा गढ्ढे बन गए हैं। धूल खाना और कीचड़ में नहाना स्थानीय लोगों की आदत सी बन गई है। परंतु प्रशासन और पीडब्ल्यूडी की बलिहारी है कि जिनके द्वारा पुनर्निर्माण तो दूर मरम्मत तक नहीं कराई जाती। 20 किलोमीटर के सड़क पर बने 500 से ज्यादा बेडौल गढ्ढे लोगों को मौत बांट रहें हैं। नजर हटी की दुर्घटना घटी। भारी वाहनों से टूट चुके सड़क पर राहगीरों को गढ्ढों के बीच सड़क खोजना पड़ता है। उखड़कर क्षतिग्रस्त हो चुके इस पक्के मार्ग पर पैदल चल पाना भी हिम्मत का काम है। सूबे की सरकार बदल चुकी है, लेकिन गांवों की सूरत जस की तस बनी हुई है । बहरहाल, नई सरकार से लोगों को ढेर सारी उम्मीदें है। आशा है नई सरकार जल्द ही इस नरक मार्ग से लोगों को मुक्ति दिलाकर दशकों की बहुप्रतीक्षित मांग को पूरा करेंगी।
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