आज योग निद्रा से जागेंगे श्री हरि: गन्नें का मंडप सजाकर किया जाएगा विवाह, चातुर्मास का होगा समापन, अब गूंजेगी शहनाइयों की गूंज
केशव पाल तिल्दा-नेवरा | चार माह की निद्रा के बाद देव देवउठनी एकादशी पर जागेंगे। इस अवसर पर घर-घर गन्ने का मंडप सजाकर तुलसी विवाह किया जाएगा और इसी के साथ मांगलिक कार्यों की भी शुरुआत हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि, इस खास मौके पर बिना मुहूर्त देखे वैवाहिक कार्यक्रम होते हैं। देवउठनी एकादशी को लेकर मान्यता है कि, यह इतना शुभ दिन है कि विवाह के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं पड़ती। लिहाजा, इसे अबूझ और सबसे बड़ा मुहूर्त माना जाता है। देवउठनी एकादशी पर लोगों ने भगवान विष्णु और लक्ष्मी के साथ तुलसी पूजा कर इस पर्व को मनाया जाता है। महिलाएं एकादशी का व्रत रख परिवार के सुख, समृद्धि की कामना करते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित रमेश तिवारी ने बताया कि, इस दिन भगवान विष्णु के योग निद्रा से बाहर आते ही सृष्टि में तमाम सकारात्मक शक्तियों का संचार होने लगता है। भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार का दायित्व संभालते हैं। धार्मिक ग्रंथों में वर्णित उल्लेख के अनुसार, प्रत्येक वर्ष की आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे देवशयनी या हरिशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है, से जगत के पालनकर्ता श्री हरि विष्णु चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवोत्थान एकादशी के दिन जागते हैं। हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इसे देवोत्थान एकादशी, हरि प्रबोधनी एकादशी और देवउठनी ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं इसीलिए इसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु जब निद्रा में होते हैं तब हिंदू धर्म में होने वाले तमाम तरह के शुभ कार्यों पर चार महीने की रोक लग जाती है। मान्यताओं के अनुसार देवोत्थान एकादशी पर जगत के पालनहार की विशेष पूजा कर उन्हें नींद से जगाया जाता है और इसी दिन चातुर्मास व्रत समाप्त हो जाता है। साथ ही सभी मांगलिक कार्य जैसे- विवाह, मुंडन, जनेऊ, गृह प्रवेश, यज्ञ जैसे कार्यों की शुरुआत हो जाती है। एकादशी के बाद से शहनाइयों की गूंज भी सुनाई देगी। घरों व मंदिरों में वैवाहिक कार्यक्रमों की धूम रहेगी। ग्यारस पूजन के दौरान बनाए जाने वाले मंडप के लिए गन्ने का बाजार भी एक दिन पहले ही सज गया था। बाजार में तीस रुपए से लेकर साठ रुपए जोड़ी में गन्ने बिक रहे थे। इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप के साथ माता तुलसी का विवाह भी किया जाता है। जिसे तुलसी विवाह भी कहा जाता है। घरों घर बनाए गए गन्ने के मंडप के नीचे भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह पूर्ण अनुष्ठान तथा मंत्रों के साथ संपन्न कराया जाएगा।
देवउठनी एकादशी पर सजेगा गन्नें का मंडप
देवउठनी एकादशी पर जगह-जगह गन्ने का मंडप सजाकर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाएगी। एकादशी से शादी- विवाह समेत सभी मंगल कार्यों की भी शुरुआत हो जाएगी। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी तिथि को तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसी विवाह का आयोजन करने पर एक कन्या दान के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। साथ ही इस दिन सूर्यास्त से पहले तुलसी का पौधा दान करने से भी महा पुण्य मिलता है।ज्योतिषियों के अनुसार, तुलसी विवाह करने से सहस्त्र अश्वमेध और राजसूय यज्ञ का पुण्य फल मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है और उनके चरण चिन्ह को भी घरों में अंकित किया जाता है।
यह कथा है प्रचलित
कार्तिक कथा के अनुसार तुलसी पूर्व जन्म में जलंधर नामक दैत्यराज की पत्नी वृंदा थी। भगवान विष्णु ने जलंधर का वध अपनी योग माया से किया। इसके बाद पति वियोग में वृंदा सती हो गई और वहां तुलसी के पौधे का जन्म हुआ। तुलसी की पतिव्रत धर्म व त्याग से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर उसे आशीष दिया। जो तुम्हारा विवाह कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को मुझसे करवाएगा उसे परम पुण्य की प्राप्ति होगी। ज्योतिषियों के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी के दिन गन्ने की नई फसल की कटाई का काम शुरू करने की परंपरा है। गन्ने को मीठे का शुद्ध स्रोत माना जाता है। प्रसाद के रूप में इसे चढ़ाने से जीवन में मधुरता रहती है और सभी शुभ कार्य शीघ्रता से निर्विघ्न संपन्न होते हैं।