‘लखमा’ को किसने दिया ‘चकमा’…अनपढ़ मंत्री के साथ कौन कर गया खेला…देखे पूरी पड़ताल
नवीन देवांगन । साल 2024 जाते जाते ठंड के मौसम में भी छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फिजा को गरमा गया….बात उस शराब घोटाले की जिसकी जद में जो भी आया… सीधे अंदर गया…. और अब तक बाहर नहीं आ सका,… चाहे आईएएस हो या रसूखदार… जेल की चार दीवारी में सभी कैद है,…. इस बीच लगभग 2000 करोड़ रु के इस शराब घोटाले में जांच के तार जैसे ही… पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा उर्फ दादी तक पहुंची….. उसके बाद जितनी मुंह उतनी बाते होने लगी….ईडी के बुलावे पर भी लखमा या उनके सहयोगियों के बयान देने नहीं पहुंचने पर बीजेपी मौके की नजाकत को देखते हुए कांग्रेस को घेरने में कोई कसर नही छोड़ रही है….. इधर कवासी लखमा अपने अनपढ़ होने को हथियार बना कर सारे आरोप अधिकारियों के पाले में डाल रहे है…पर इससे क्या वे साफ पाक हो कर बच सकते है….
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छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित शराब घोटाले में अब आखिरी में जाकर ईडी ने पिछली भूपेश सरकार के आबकारी और उद्योग मंत्री रहे कवासी लखमा और उनके करीबी लोगों पर छापे मारे….. कवासी लखमा याने दादी जो सुदुर आदिवासी इलाके याने बस्तर से ताल्लूक रखते है… पांच बार से कोंटा के विधायक चुने गए ….. जब 15 साल का वनवास काट कांग्रेस जब सत्ता में आई तो लखमा को मंत्रिमंडल में जगह मिली…. वह भी मलाईदार माने जाने वाले आबकारी और उद्योग की…हालांकि उस समय भी उनके अनपढ़ होने के बावजूद इतने महत्वपूर्ण विभाग को देने के मंशा के पीछे… कई तरह के सवाल उठते रहे… जिसका जवाब शायद अब लोगो को धीरे धीरे मिलने लगा है….खैर दो हजार करोड़ से अधिक का शराब घोटाला बताते हुए ईडी ने मामला अदालत में पेश कर दिया है…..और इस मामले में गिरफ्तार कई दिग्गजों को जमानत भी नहीं मिल रही है। इनमें कई IAS अफसर तो कई रसुखदार और चर्चित चेहरे शामिल है… कवासी लखमा ने अपने खुद के बेटे, और सहयोगियों के ठिकानों पर पड़े छापों पर कहा कि वे बेकसूर हैं, और उन्हें आबकारी विभाग को चलाने वाले अफसर अरूणपति त्रिपाठी गुमराह करते रहे… जहां कहते थे, वहां वे आंखमूंद कर दस्तखत कर देते थे…यहां पर हम बता दे कि यहां सिर्फ आबकारी विभाग की बात कर रहे है…. उद्योग विभाग में भगवान न करे ऐसा कुछ हुआ हो ….या आने वाले समय में हमें वहां की भी कारगुजारियां देखने और सूनने को मिले…. क्योंकि उद्योग विभाग याने एक तरह का मलाईदार विभाग….यहां एक वाक्या आपसे शेयर करना जरुरी है, जब लखमा मंत्री बने उसी दिन उनके बंगले में एक चमचमाती कार खड़ी मिली, लोग अंजान थे यह बेशकिमती कार आखिर है किसकी , जिसके बारें में बंगले के लोगों को भी मालूम नहीं था, आनन फानन में पता किया गया तो किसी उद्योगपति द्वारा प्रेम स्वरुप दिया गया उपहार निकला….. बंगले के लोगों के कान खड़े हो गए…. और आनन फानन में उस बेशकिमती कार को बंगले में साई़ड लगा कर …..पुराने चादर तिरपाल से जैसे तैसे ढक कर एक तरह से छुपा दिया गया ताकि किसी मीडिया वाले की नजर न पड़ जाऐ ….नही तो लेने के देने पड़ सकते थे…. खैर मामला जैसे तैसे सेट हो गया जैसा कि हमेशा सेट हो ही जाता है…
बात करे लखमा कि… तो यह बात जगजाहिर है कि कवासी लखमा कभी बचपन में प्रायमरी स्कूल भी नही गए, उनके जन्मतारीख भी पक्का पक्का किसी को नहीं पता… वे लिखना-पढऩा नहीं जानते पर… जैसे तैसे दस्तखत करना सीख ही लिया, साथ ही साथ मीडिया वालों के सवालों के जवाब में नो कमेंस बोलने की कला इजाद कर ही ली…अपने बिगड़े बोल या कहे बडबोलेपन के चलते कवासी लखमा हमेशा सुर्खियों में बने रहते है…. उनके यह बिगड़े बोल भले हमेशा उन्हें सुर्खियों में बनाए रखते थे…. पर पार्टी के वरिष्ठ लोग दीवालों के पीछे इसे लेकर अपना माथा पिटते नहीं थकते थे…किसी आदिवासी नेता की समझबूझ पर कोई शक नहीं किया जा सकता लेकिन उसकी पढऩे-लिखने की क्षमता अगर बहुत सीमित है तो उसे सरकारी या संवैधानिक फाइलों की जिम्मेदारी देने वाले लोगों से सवाल तो बनते ही है…. और ऐसा ही सवालों के जवाब अब कांग्रेस को देने होंगे
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अब लोग खुली जुबान में कहने लगे है कि आबकारी और उद्योग जैसा मालदार और खतरनाक समझा जाने वाला विभाग देना मतलब सीधे-सरल आदिवासी नेता के कंधे पर बंदूक की तरह रखकर चलाया जा रहा था…….सीन में तो लखमा थे पर खेल पीछे से कोई और खेल रहा था…..लोग अब यह समझने की कोशिश कर रहे है कि विधानसभा में लखमा के विभागों का जवाब हमेशा तत्कालिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खास माने जाने वाले मों अकबर ही क्यों दिया करते थे ?
आज अगर कवासी लखमा शराब के काले कारोबार में फंसे दिख रहे हैं, तो उनके बचाव में कोई नहीं आ रहा है….. और न तो दिख रहा है …. लोग तो कहने भी लगे कि एक सीधे सादे आदिवासी को ऐसी मुसीबत में डालने की जवाबदेही औरों की भी होनी चाहिए…. अब यह बात तो जगजाहिर हो चुका है कि त्रिपाठी और अनवर ढेबर जैसे लोग…. जहां चाहे वहां कवासी लखमा का अंगूठा लगवा लेते या हस्ताक्षर करवा लेते थे और…. इसी से उन्होंने बड़ा सामराज्य खड़ा कर दिया
ईडी के इस दलील को भी अच्छे से कान खोल कर सुन और समझ लेना चाहिए कि मुख्यमंत्री के करीबी और रायपुर मेयर के बड़े भाई अनवर ढेबर ही छत्तीसगढ़ के आबकारी मंत्री की तरह काम करते थे….. इस पेशे से जुडे़ लोग भी अब दबी जुबान में कहने लगे है कि ढेबर ही शराब का पूरा कारोबार एकतरफा कंट्रोल करता था…. और अब जब छापा पड़ रहा है, तो एक अनपढ़ और आदिवासी मंत्री भी इसकी जद में आ चुका है …. ईडी ने 21 सौ करोड़ रूपए से अधिक का शराब घोटाला मामले में अदालत में कहा है कि कवासी लखमा को हर महीने 50 लाख रूपए दिए जाते थे…., पर लखमा इसे सिरे से खारिज करते हुए कह रहे है कि उन्हें फूटी कौड़ी भी नहीं मिला….. उनसे सिर्फ मोटे मोटे फाईलों पर हस्ताक्षर करवा लिया जाता था… पर गौर करने वाली बात यह है ….कि यह बात वो मीडिया और माईक के समाने कह रहे है …न कि ईडी दफ्तर में….ईडी दफ्तर में बुलावे के बाद भी वे नहीं पहुंचे और अपने इलाके याने सुकमा में डेरा डाल के बैठ गए, जिसके चलते भाजपा के लिए एक मौका कांग्रेस को घेरने का और मिल गया
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कवासी लखमा बेहद गरीबी से उठकर आए एक आदिवासी नेता के रुप में स्थापित हुए….. नक्सल प्रभावित इलाके में उनकी पैठ का कोई सानी नहीं….. यह उस इलाके के लोग अच्छी तरह से जानते है…. शायद यही कारण है कि झीरम कांड के बाद तमाम तरह के सवाल.. जवाब… शंका…आशंका जन्म लेने लगे थे,…… बावजूद इसके कवासी लखमा सफेद कुर्ता पहन राजनीति के दांव पेंच में माहिर हो गए थे, उन्हें अनपढ़ कहे जाने पर तमाम तरह के सवाल उठते थे पर अब उन सभी सवालों पर कवासी लखमा ने खुद को अनपढ़ कहकर…. खुद पर सवाल खड़ा करते हुए विराम लगा दिया
लोगो के बीच अब यह चर्चा होने लगी है कि सार्वजनिक रूप से इस पर बहस होनी चाहिए… कि कम पढ़े-लिखे, कम जानकार, या कवासी लखमा की तरह के लगभग अनपढ़ लोगों के कंधे पर जुर्म की बंदूक रखकर चलाना क्या जायज है?…. यह बात इसलिए भी अधिक चर्चा के लायक है कि आने वाली किसी सरकार में हो सकता है कि फिर किसी अनपढ़ नेता को इसी तरह ठेके पर रखा जाए, और जेल जाने के वक्त मामले से कन्नी काट उसे जेल जाता चुपचाप देखा जाए …. फिलहाल कवासी लखमा बुरे फंस गए है…. इनसे उबर पाने का रास्ता फिलहाल उन्हें नहीं सुझ रहा…. इसलिए दबे पांव सुकमा का रास्ता पकड़ लिए…लोग अब खुलेआम कहने लगे है करोड़ो के इस खेल में कवासी लखमा को एक प्यादे के जैसा इस्तेमाल किया गया…. और अब उस प्यादे को बचाने न हाथी आ रहे है न वजीर और न ही राजा…फिलहाल ईडी अब इस मामले को लेकर चार्जशीट दायर कर सकती है जिसके चलते हो सकता है कि पूर्व मंत्री और आदिवासी नेता कवासी लखमा भी सलाखों के पीछे दिखे