कोयला खनन मामला : हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति को हाईकोर्ट से झटका, याचिका खारिज

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन के खिलाफ दायर याचिका पर आज हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने ग्राम घठबार्रा के निवासियों और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सामुदायिक वन अधिकारों के उल्लंघन का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है। कोर्ट के अनुसार ग्रामसभा की बैठकों में सामुदायिक अधिकारों पर कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ और 2008 व 2011 की बैठकों में केवल व्यक्तिगत भूमि और पट्टों की चर्चा हुई थी। इसलिए यह दावा आधारहीन है।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि वर्ष 2016 में जिला समिति ने वन अधिकार कानून 2006 के तहत ग्रामवासियों के सामुदायिक अधिकार रद्द कर दिए थे और 2022 में फेज-2 कोल ब्लॉक खनन की मंजूरी भी ग्रामसभा की सहमति के बिना दी गई थी। सरकार की ओर से कोर्ट में तर्क दिया गया कि संघर्ष समिति कोई वैधानिक संस्था नहीं है और कोल माइंस स्पेशल प्रोविजन एक्ट, 2015 कानून के अनुसार खनन प्रक्रिया पूरी तरह वैध है।
हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार के 2012 और 2022 के आदेशों को भी सही ठहराया, जिनके तहत पारसा ईस्ट एवं केते बासन कोल ब्लॉक में खनन की मंजूरी दी गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पूरी प्रक्रिया के रिकॉर्ड में सामुदायिक वन अधिकारों का कोई वैधानिक दावा या प्रमाण नहीं है। अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद याचिका अस्वीकार कर दी और खनन परियोजना को वैध ठहराया है।