छत्तीसगढ़ में अनोखी विरासत : देवता के आदेश पर एक सप्ताह पहले मनाई जाती है दिवाली

आमतौर पर देशभर में दिवाली का पर्व तय तारीख पर मनाया जाता है, लेकिन धमतरी जिले के सेमरा (भखारा) गांव में यह उल्लास एक हफ्ते पहले ही नजर आने लगता है। इस गांव की खासियत है कि यहां दीपावली ही नहीं, बल्कि होली, पोला और हरेली जैसे सभी बड़े त्योहार बाकी जगहों से सात दिन पहले मनाए जाते हैं। इसकी जड़ें सदियों पुरानी आस्थाओं और मान्यताओं में छुपी हैं।
रहस्यमयी परंपरा की शुरुआत
ग्रामीणों का विश्वास है कि इस परंपरा की शुरुआत ‘सिरदार देवता’ के आदेश से हुई थी। माना जाता है कि सिरदार देवता ने अपने भक्तों को स्वप्न में आदेश देकर सभी त्योहार एक सप्ताह पहले मनाने के लिए प्रेरित किया था। तब से गांव के लोग आज तक इसी व्यवस्था का पालन करते आ रहे हैं।
ऐतिहासिक कथा
स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि एक समय इलाके में एक चमत्कारी और प्रजावत्सल राजा सिरदार रहते थे। एक दिन शिकार करते समय दुखद घटना से उनकी मृत्यु हो गई। गांव के बैगा–ओझा को सपने में उनके शव का स्थान ज्ञात हुआ और वही सपना बाद में गांव के मुखिया ने भी देखा। आखिरकार राजा का अंतिम संस्कार उसी स्थान पर कर वहां ‘सिरदार देव’ का मंदिर स्थापित किया गया, जो आज भी गांव की आस्था का केन्द्र है।
मंदिर की मान्यता
इस मंदिर में केवल पुरुषों को ही पूजा की अनुमति है, महिलाओं के प्रवेश पर अब भी रोक है। ग्रामीण इसकी वजह शायद पूरी तरह नहीं जानते, लेकिन आस्था के साथ परंपरा को निभा रहे हैं।
त्योहारी उल्लास और एकजुटता
दिवाली के दौरान गांव की चौपालें, गलियां दीयों से जगमगाती हैं, बच्चे पटाखे छोड़ते हैं और घर-घर मिठाइयाँ बनती हैं। पास-पड़ोस के गांवों से भी लोग इस खास परंपरा को देखने पहुंचते हैं। आधुनिकता के इस दौर में भी गांव वाले सिरदार देव के आदेश और अपने अलग अंदाज को पूरे उत्साह व श्रद्धा से निभा रहे हैं, जिससे यह त्योहार उनके लिए सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि एकता और खुशहाली का प्रतीक है।[