और जब…राजा हरिश्चंद्र कथा का मार्मिक वर्णन करते हुए खुद भी रो पड़े कथा व्यास
केशव पाल @ तिल्दा-नेवरा | जीने की तैयारी तो सब करते है लेकिन मरने की तैयारी कोई नहीं करता। हमें मरने की तैयारी करनी चाहिए। धन का उपयोग सही जगह करना चाहिए। दान से धन घटता नहीं बल्कि बढ़ता है। मानव का पहला कर्तव्य है सत्संग करना। जहां निंदा हो वहां न ही जाना चाहिए न ही निंदा सुनना चाहिए। भगवान को पाना है तो दास बनो, छोटा बनो लेकिन हम बड़ा बनना चाहते हैं। संसार में संतान और धन मुश्किल से मिलता है। उक्त बातें ग्राम मढ़ी के नवदुर्गा स्थल ठाकुरदेव चौक में निर्मलकर परिवार व मोहल्ले वासियों की ओर से चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत महापुराण सप्ताह ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन रविवार को भगवताचार्य पंडित रमाकांत दुबे खौना वाले ने कही। कथा प्रसंग में कथा व्यास ने हरिश्चंद्र कथा, गंगा अवतार, राम जन्म, कृष्ण जन्म कथा पर विस्तारपूर्वक व्याख्यान दिया। व्यास गद्दी से कथा व्यास ने राजा हरिश्चंद्र कथा की विस्तार से बताते हुए खुद भी रो पड़े वहीं भक्तों की आंखें भी नम हो गई। उन्होंने कहा कि राजा हरिश्चंद्र जिन्होंने सत्य को धरती पर उतारा था। दूसरे राजा अंबरीष ने एकादशी के महत्व को धरती पर लाया था तथा तीसरे राजा भगीरथ ने धरती पर गंगा को लाया था और चौथे राजा दशरथ ने भगवान श्रीराम को धरती पर लाया था। पृथ्वी पर भक्ति और भगवान का हमेशा संबंध रहा है। राजा हरिश्चंद्र दरिद्र हो गए। हरिश्चंद्र अपने पुत्र रोहित व पत्नी के साथ भिक्षा के लिए दर-दर की ठोकर खाने के बाद भी अपने सत्य की राह नहीं छोड़ी। राजा हरिश्चंद्र को श्मशान में चंडाल का काम करना पड़ा था। सर्प दंश से पुत्र की मत्यु हो गई लेकिन वे सत्य को नहीं छोड़े। अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने राजा हरिश्चंद्र को सत्यवादी की उपाधि दी। भगवताचार्य ने कहा कि रात्रि में महाराजा हरिश्चंद्र ने स्वप्न देखा कि कोई तेजस्वी ब्राह्मण राजभवन में आया है। महाराजा हरिश्चंद्र ने स्वप्न में ही इस ब्राह्मण को अपना राज्य दान में दे दिया, जगने पर महाराज इस स्वप्न को भूल गए। दूसरे दिन महर्षि विश्वामित्र इनके दरबार में आए। उन्होंने महाराज को स्वप्न में दिए गए दान की याद दिलाई। ध्यान करने पर महाराज को स्वप्न की सारी बातें याद आ गई और उन्होंने इस बात को स्वीकार कर लिया। ध्यान देने पर उन्होंने पहचान कि स्वप्न में जिस ब्राह्मण को उन्होंने राज्य दान किया था, वे महर्षि विश्वामित्र ही थे। विश्वामित्र ने राजा से दक्षिणा मांगी, क्योंकि यह धार्मिक परंपरा है कि दान के बाद दक्षिणा दी जाती है। राजा ने मंत्री से दक्षिणा देने के लिए राजकोष से मुद्रा लाने को कहा, विश्वामित्र बिगड़ गए। उन्होंने कहा कि जब सारा राज्य तुमने दान में दे दिया है, तब राजकोष तुम्हारा कैसे रहा, यह तो हमारा हो गया। उसमें से दक्षिणा देने का अधिकार तुम्हें कहां रहा। महाराजा हरिशचन्द सोचने लगे। विश्वामित्र की बात में सच्चाई थी, लेकिन उन्हें दक्षिणा देना भी आवश्यक था। वे यह सोच ही रहे थे कि विश्वामित्र बोले तुम हमारा समय व्यर्थ ही नष्ट कर रहे हो, तुम्हें यदि दक्षिणा नहीं देनी है तो साफ कह दो, मैं दक्षिणा नहीं दे सकता। दान देकर दक्षिणा देने में आनाकानी करते हो, मैं तुम्हें शाप दे दूंगा। बाद में कथा की आरती व प्रसाद वितरण किया गया। वहीं कथा के दौरान भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। कथा के दौरान जैसे भगवान का जन्म हुआ तो पूरा पंडाल नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की के जयकारों से गूंज उठा। इस दौरान लोग झूमने-नाचने लगे। भगवान श्रीकृष्ण की वेश में नन्हें बालक के दर्शन करने के लिए लोग लालायित नजर आ रहे थे। भगवान के जन्म की खुशी पर महिलाओं द्वारा अपने घरों से लगाए गए गुड़ के लड्डूओं से भगवान को भोग लगाया गया। इस दौरान भक्तों ने पुष्पवर्षा कर स्वागत किया। कथा व्यास ने कहा कि, जब धरती पर चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई, चारों ओर अत्याचार, अनाचार का साम्राज्य फैल गया तब भगवान श्रीकृष्ण ने देवकी के आठवें गर्भ के रूप में जन्म लेकर कंस का संहार किया। इस अवसर पर उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न बाल लीलाओं का वर्णन किया। कथा के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।15 से 23 फरवरी तक आयोजित हो रही भागवत कथा का श्रवण करने गांव सहित आसपास गांव से भी बड़ी संख्या में रसिक श्रोतागण कथा पंडाल पहुंच रहे है। कथा का समय दोपहर 01 से शाम 05 बजे तक है। परायणकर्ता पंडित कुलेश्वर दुबे धमतरी वाले हैं। वहीं परीक्षित के रूप में शेखर पाल-हेमा पाल बैठें हैं।