श्री कांवड़ शिवमहापुराण कथा पंचम दिवस : कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा बोले- ‘गले के विष से कान का विष ज्यादा खतरनाक’
केशव पाल @ तिल्दा-नेवरा | हाई स्कूल दशहरा मैदान तिल्दा-नेवरा में चल रही श्री कांवड़ शिवमहापुराण कथा के पांचवें दिन अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा सीहोर वाले के श्रीमुख से कथा श्रवण कर भक्त भावविभोर हो उठे। प्रतिदिन लाखों की संख्या में शिवभक्त कथा रसपान करने पहुंच रहे हैं। वहीं भक्तों की बैठक व्यवस्था, पार्किंग, भोजन सहित सुविधा और सुरक्षा की दृष्टि से पुख्ता इंतजाम किया गया है। कथा के पांचवें दिन शनिवार को कथा व्यास पंडित प्रदीप मिश्रा ने व्यास गद्दी से कहा कि, देव और महादेव में बड़ा अंतर है। देव को पुकारने पर देव दर्शन देते हैं। लेकिन महादेव दर्शन देने के लिए नहीं आते बल्कि जो उसे पुकारे उन्हें दर्शन के लायक बना देता है। ऐसा बना देता है कि लोग उनका ही दर्शन करने आते हैं। उन्होंने कहा कि, भगवान शिव की भक्ति, शिव का भजन भक्त को उस मंजिल तक ले जाता है जिसके बारे में वे कभी सोंचे भी न हो। उन्होंने आगे कहा कि, लोगों की शब्दों, अपशब्दों और तानों को अगर सहना आ गया तो आप में चमक बढ़ जाती है। दुनिया का काम ही है ताने देना, अपशब्द कहना। हमें इसे ध्यान न देकर अपने कर्म में ध्यान देना चाहिए। कथावाचक ने कहा कि, अपने ही मुख से अपनी बड़ाई और अपनी पड़ोसी की बुराई कभी नहीं करनी चाहिए। जब कर्ज अधिक हो जाए तो हार मत मानना। मरने का प्लान कभी मत बनाना। मर गए तो जन्म लेकर फिर आना पड़ेगा और अपना फल भोगना पड़ेगा। शरीर दिया है तो मेहनत करो। आज जो भगवान शिव को जल चढ़ा रहा है उसे कभी भीख मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि उनका हाथ भगवान शिव पकड़े हैं। उन्होंने कहा कि, रोग, बीमारी या कोई तकलीफ हो तो डॉक्टर को जरूर दिखाओ। जो डॉक्टर कहे वो करो। दवाई लो, जांच कराओ। लेकिन जब-जब भी डॉक्टर के पास जाओ तो मन में श्री शिवाय नमोस्तुभ्यं जरूर बोले। अपने भीतर की शिव भक्ति को जागृत करे। डॉक्टर रूपी शंकर और औघड़दानी शिव आपके जीवन को नूतनता दे सकता है। उन्होंने आगे कहा कि, शिवमहापुराण कथा में ग्रंथ, संत और भगवंत तीनों का समावेश होता है। शिवमहापुराण कथा में जितने भी जीव भगवान की भक्ति करने आते हैं। उन्हें ऊर्जा और एक अद्भुत आनंद प्राप्त होती हैं। मेहनत करने वाले का साथ महादेव देता है। उनकी हर मनोकामना पूर्ण करता है। बस मेहनत और भरोसे में कमी नहीं होना चाहिए। शिवमहापुराण कथा आपके बल को याद दिलाती है।
तकलीफ अपनों को होती है, दूसरों को नहीं
कथा व्यास ने व्यास पीठ से कहा कि, जितना तकलीफ अपनों को होती है। उतनी दुनिया के लोगों को नहीं होता है। कांवड़ ले जाने वाले, मंदिर जाने वाले, बेल पान चढ़ाने वाले भक्तों को अपने ही ताना मारते हैं। उसे भला बुरा कहते है। उन्होंने आगे कहा कि, हम मन को खूंटे से बांधकर रखे हुए हैं। परिवार, रिश्ता, धन, मोह, माया। मंदिर जाए तो हमेशा इस खूंटे से छूटकर जाना चाहिए। आप कितना सुंदर हो। आपके पास कितना वैभव है। कितना धन है ये सोचकर कभी मंदिर मत जाना। जब भी मंदिर जाओ तो उसी तरह जाना जिस तरह एक बेटी अपने बाप से मिलने जाती है। कथा व्यास ने कहा कि, ताना मिलने लगे तो समझ जाना कि प्रभु की कृपा शुरू हो गई है। जितनी आपको अपशब्द, ताने, आड़ा टेढ़ा शब्द, गालियां मिलेगी। आप उतनी ही सीढ़ी चढ़ते शिवत्व को पा लोगे और महादेव के करीब आ जाओगे।
गले के विष से कान का विष ज्यादा खतरनाक
कथावाचक ने कहा कि, गले का विष जितना नहीं मारता। उससे ज्यादा कान का विष मारता है। गले का विष एक व्यक्ति को मारेगा लेकिन कान का विष पूरे परिवार को मार देता है। तुम्हारा परिवार ऐसा है, तुम्हारे रिश्ते ऐसे है। पति, पत्नी, सास, ससुर ऐसे है। ये सब चुगली परिवार को बर्बाद कर देता है। इसलिए गले के विष से कान का विष ज्यादा खतरनाक है।