आजादी की लड़ाई में कुर्रा-बंगोली से जुड़े थे कई सेनानी : ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में शामिल हुए थे निरंजन सिंह नायक, महीनों तक जेल में भी रहे
केशव पाल @ तिल्दा-नेवरा | ‘जिंदगी मिलती रहे मर-मर के मुझको लाख बार और मैं होता रहूँ हर बार कुर्बाने वतन।’ आज 77वां स्वतंत्रता दिवस देशभर में मनाया जा रहा है। महान स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान से भारत को स्वतंत्र कराने के लिए संघर्षों, आंदोलनों, लड़ाइयों और विद्रोहों की एक श्रृंखला हुई। स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई और अपने प्राणों की आहुति दी। देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए चलाए गए स्वतंत्रता संग्राम में कई ग्रामीणों का भी योगदान रहा। जिन्होंने आजादी के महासंग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। तिल्दा ब्लॉक का ग्राम कुर्रा और बंगोली ऐसा गांव है जहां से बड़ी संख्या में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए। यह गांव स्वतंत्रता सेनानियों की भूमि है जिन्होंने भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने में योगदान दिया। इन्हीं में से एक थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. निरंजन सिंह नायक। कुर्रा निवासी इस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने भी भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी और देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई। सन् 1942 के देशव्यापी ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में शामिल होकर आवाज बुलंद की। इतना ही नहीं अंग्रेजों के यातनाओं को सहते हुए रायपुर के केन्द्रीय जेल में महीनों तक बंद भी रहे। कुर्रा में जन्म लिए निरंजन का शिक्षा भी कुर्रा में ही हुआ। यह वह दौर था जब पूरे भारत में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन हिलोरें ले रहा था। छत्तीसगढ़ में भी गांव-गांव में इस आंदोलन का गहरा प्रभाव था। तब यहां के लोग अंग्रेजों की दासता से मुक्ति के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों से भी मुक्ति के लिए आंदोलित थे।
बंगोली में जुड़े थे गांधी जी के साथ
महात्मा गांधी जब छत्तीसगढ़ आए उस समय यात्रा के दौरान वे बंगोली में भी ठहरे थे। गांधी जी के आगमन से वहां के युवा काफी उत्साहित थे। नवयुवकों को जब यह पता चला तो इस लड़ाई में कुर्रा-बंगोली के भी कई युवा गांधी जी के साथ जुड़ गए। निरंजन सिंह नायक भी गांधी जी के साथ जुड़ गए और आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पैदल यात्रा की और देश के लिए जेल भी गए।
कुर्रा-बंगोली से कई सेनानी हुए थे शामिल
सन् 1942 के ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन से लेकर देश की आजादी के लिए चले विभिन्न आंदोलन में कुर्रा और बंगोली से कई सेनानी जुड़ते गए और स्वतंत्रता की लड़ाई में अपना योगदान दिया। इसके चलते कारावास से लेकर जुर्माना तक भी इन सेनानियों को भुगतना पड़ा।