उन्हारी फसलों की खेती से मोहभंग : सरसों और गेहूं में किस्मत अजमा रहें किसान, चना, मटर का रकबा घट गया, तिंवरा भाजी भी नसीब नहीं
केशव पाल, NEWS 36 @ तिल्दा-नेवरा | बदलते वक्त के साथ खेती में बदलाव आ गया है। किसानों का अब परंपरागत उन्हारी खेती की जगह नये फसलों की ओर रूझान बढ़ा है। यही कारण है कि, किसान धान के साथ-साथ उन्हारी फसल के रूप में चना, मूंग, तिंवरा, मटर, अरहर, तिल, गेहूं की जगह अन्य फसल की पैदावार ले रहे हैं। हालांकि इस बदलाव के कई कारण है। अंचल में पहले धान कटाई के बाद खेतों में तिंवरा, मटर व चनें की खेती बड़े पैमाने पर होती थी लेकिन पिछले दस सालों से यह खेती पूरी तरह बंद हो गई है। इसका सबसे बड़ा कारण मवेशियों की उत्पात, बंदरों की दहशत, लागत ज्यादा मुनाफा कम, रखवाली की समस्या व सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं हो पाना है। लिहाजा किसान अब तिंवरा भाजी, चना भाजी के साथ-साथ तिंवरा मटर की सब्जी खाने के लिए तरस गए हैं। एक जमाना वो भी था जब धान कटाई के बाद खेतों में तिंवरा, चना और मटर की फसलें लहलहाती थी। अब इस जमीन पर धुल उड़ रही है। रबी फसल अब सिर्फ़ गेहूं और सरसों तक की सिमटकर रह गई है। ग्रीष्मकालीन रबी फसल की खेती बहुत कम किसानों ने लिया है तो वहीं कुछ किसानों ने इसके बदले वैकल्पिक फसलों में किस्मत अजमा रहें है। रबी फसल की खेती में कमी आने का ये भी मुख्य कारण रहा है जिसमें बिजली कटौती, लो वोल्टेज, मवेशियों की उत्पात, बंदरों का आतंक और सिचाई का पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं होना आदि शामिल हैं। क्षेत्र में पहले बड़े पैमाने पर किसानों द्वारा रबी सीजन में विभिन्न प्रकार की फसलें हजारों एकड़ खेतों में ली जाती थी। धान और गेहूं के साथ-साथ दलहन-तिलहन की भी फसलें लेकर किसान अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करते थे। लेकिन कुछ वर्षों से रबी सीजन में धान का रकबा लगातार घटता जा रहा है। तो वहीं दलहन तिलहन की फसलें भी नहीं के बराबर ली जा रही है। इसके बदले किसानों का रूझान इस बार सरसों, भुट्टा और अन्य फसलों की ओर बढ़ा है। क्षेत्र में इस बार सैकड़ों एकड़ खेतों में सरसों की खेती की जा रही है। लेकिन रबी सीजन का मुख्य फसल धान और गेहूं की खेती घटकर बहुत ही कम हो गई है। इतना ही नहीं क्षेत्र के किसान पिछले दस सालों से चना, तिंवरा, मसूर, बटरी और जिलो की खेती करना पूरी तरह बंद कर दिया है। किसानों का कहना है कि बार-बार बिजली कटौती और लो वोल्टेज की समस्या से फसलों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता इसलिए वे रबी फसल लेना बंद कर रहे है। इसके अलावा मवेशियों की चरने और बंदरों के उत्पात से भी फसलें बर्बाद हो जाती है। किसानों ने बताया कि गर्मी आते ही क्षेत्र के जलाशय व नहर पूरी तरह सूख जाती है। जिससे सिचाई करने में असुविधा होती है। लगातार गिरते भू-जल स्तर से बोर सूख रहे हैं धार भी पतली हो रही है। इसलिए तंग आकर वे रबी फसल लेना छोड़ रहे हैं।
सरसों की खेती में अजमा रहे किस्मत
किसान धान की कटाई के बाद अब रबी फसल की तैयारी में जुट गए हैं। अधिकांश किसान इस बार भी चना, तिंवरा की फसल लगाने में रूचि नहीं दिखा रहे हैं। बंदरों की बहुतायत के चलते अधिकांश किसान तिंवरा, मटर व चनें की खेती से मुंह मोड़ लिए हैं। अब सिर्फ़ गेहूं, सरसों, भुट्टे व गन्ने की ही खेती हो रही है। इस बार भी बड़े पैमाने पर किसान सरसों की बुवाई किए हैं। पिछले बार भी इसकी पैदावार अच्छी हुई थी।
तिंवरा भाजी भी अब नसीब नहीं
गेहूँ, जौ, आलू, चना, मसूर, अलसी, तिंवरा, मटर व सरसों रबी की प्रमुख फसलें मानी जाती हैं। कृषि के क्षेत्र में तेजी से बदलाव आया है। यही वजह है कि किसान अब दलहन, तिलहन की फसलों में बदलाव कर दिए हैं। किसानों ने इस साल गेहूं और तिलहनी फसलों की बुवाई से काफी रकबा कवर किया है। लेकिन दलहनी फसलों की बुवाई इस साल कुछ कम हुई है। गेहूं के अलावा चना, सरसों और गन्ना की गिनती भी रबी सीजन की प्रमुख नकदी फसलों में होती है। अरहर, चना, मटर, मसूर रबी सीजन के दलहन फसलें है। सरसों रबी सीजन के तिलहन फसल है। अब गेहूं का भी रकबा घट गया है। इस बार सरसों के रकबे में बढ़ोतरी के साथ गेहूं और चने के रकबे में गिरावट हुई है। अब तो किसान तिंवरा भाजी का स्वाद लेना भी भूल गए हैं। इसलिए बाजारों में इनकी कीमत आसमान छू रही हैं।