हसदेव अरण्य को लेकर क्या मर चूकी है हमारीं आत्मा…बच्चों को क्या मुंह दिखाऐंगे…देखे खास कार्यक्रम
नवीन देवांगन । हसदेव अरण्य याने लाखों पेड़ पौधे, जैव विविधताओं से भरा पूरा छत्तीसगढ़ के सरगुजा इलाके का विशालकाय हसदेव जंगल… देश भर के बच्चें क्या …जवान क्या …बूढ़े का व्यापारी क्या…. व्यापारी वो वाले नहीं…छोटे मोटे व्यापारी भी जो अब इसके बारें में अच्छे से जानने समझने लगे है…हसदेव की चर्चा यहां कटने वाले लाखों पेड़ो के चलते… देश यहां तक विदेशों में भी है, पिछले कई सालों से इसको लेकर हर स्तर पर विरोध, चर्चा, परिचर्चा, रैली, आयोजन ,प्रदर्शन ,आम लोगो से जो बन सका अपने स्तर पर होता ही चला आ रहा है, जिनमें सबसे ज्यादा भागीदारी यहां के मूल निवासी याने इन इलाकों के ग्रामीँणों और आदिवासियों की रही है, जो अपने जंगल को बचाने के लिए रात दिन भूखे प्यासे डटे हुए है, क्योंकि उन्हें मालूम है उन्हें अहसास है कि यही जंगल उनके लिए सब कुछ है…हां सब कुछ….जंगल क्यों काटे जा रहे है , अमूमन यह सब को मालूम है, इसे कैसे बचाया जाए इसकी चिंता राजनीतिज्ञों को छोड़कर सभी आमजन को घेरे हुए है….इलाके के ग्रामीणों, आदिवासियों…देश भर के आमजनों के प्रयासों विरोध के बावजूद इस जंगल को बचाया नहीं जा पा रहा है, इसी कारण को आज जानने समझने की छोटी सी कोशिश करेंगे, इस पर ज्यादा बात न करके हम उन पीड़ितों की बात सूनेंगे उन राजनीतिज्ञों की बात सूनेगे समझेंगे जो हसदेव बचाने के भ्रमजाल में आम लोगो को अब तक भरमाए हुए है
हसदेव जंगल कटने के नफा तो नहीं पर हर वह नुकसान के बारें में आपको पता ही होगा जिसे हमारी आने वाली पीढ़ी को झेलनी है आज इस पर ज्यादा चर्चा नहीं….चर्चा इसपर लाजमी होगा कि आखिर तमाम दावे वादों के बीच रोज ब रोज जंगल धीरे धीर करके कटता ही क्यों जा रहा है, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार रही तब उनके अपने दावे ..वादे… शिकायते ..और तमाम तरह के आरोप थे, अब जब यहां बीजेपी की सरकार है तो इनके भी अपने अपने दावे ..वादे… शिकायते ..और आरोप ….राजनीति के चुल्हे पे पके पकाए अमूमन तैयार ही मिलते है…फिलहाल इस पर चर्चा इसलिए क्योंकि कुछ दिन पहले ही हसदेव के परसा कोल ब्लाक में जंगल कटाई का विरोध कर रहे ग्रामीणों और पुलिस के बीच खूनी संघर्ष देखने को मिला, दोनो तरफ से लोग घायल हुए, पुलिस वाले भी, ग्रामीण आदिवासी भी…पर जंगल में पेंड़ो पर आरी चलने की आवाज़ इस संघर्ष के बीच भी रुकी नहीं, वह बदस्तूर चलती रही और आज भी चल ही रही है, लोग कटे पेड़ देख मातम मना रहे है और इसी मातम में खीर पूड़ी खाने सफेद चोला ओढ़े तथाकथित नेता जी लोग अपनी एसी वाली लाल पीली बत्ती भारी भरकम गाड़ी में सायं सायं सायरन बजाते कैमरों का लाव लश्कर लेकर यहां पहुंच रहे है, कह तो रहे है कि वे राजनीति करने नहीं लोगों के आंसू पोछने आए है… ढांढस बंधाने आऐ है सात्वनां देने आए है और तो और जंगल को बचाने आए है…अब लोग इनकी बातों पर कितना ऐतबार करते है यह इस इलाके में जा कर जाना और समझा जा सकता है, फिलहाल इस हिंसा के बाद हसदेव जंगल बचाने वाले कई तरह के तमाम संगठनों ने इसे लेकर तरह तरह के आरोप लगाए है
सरगुजा की अपनी अलग बोली है एक अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान है…. पहनावा है… गीत है… संगीत है,….. हाय रे सरगुजा नाचे गीत तो आपने सुना ही होगा कभी इसके बोल पे मदमस्त हो कदम ताल भी मिलाए जरुर होंगे, पर अब लोग रुआंसे हो कहने लगे है….. हाय रे …सरगुजा नई बांचे….खैर बात सरगुजा कि तो यहां के राजघराने से आते है टीएस सिंहदेव याने यहां के लोगो के बाबा याने टीएस बाबा…जिन पर दूसरे राजनेताओं से इतर यहां के लोगों ने विश्वास जताया था कि बाबा दबंग है हमारे महराज है… हमारा जल जंगल जमीन बचा ही लेंगे…बाबा याने टीएस सिंहदेव समय समय पर इसे लेकर मुखर भी रहे…जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार राज कर रही थी तो बाबा मंत्री और डिप्टी सीएम के पद में आसीन थे,इन सब के बीच वे समय समय पर यहां के ग्रामीण आदिवासियों के बीच पहुंचते रहते थे ढ़ाढस बंधाते रहते थे, किसी कीमत पर जंगल न कटने की बात दोहराते रहते थे, फर्जी ग्राम सभा जो इन ग्रामीणों के बीच अभी सबसे बड़ा मुद्दा है उसकी जांच का समर्थन करते दिखते थे अब जो वीडियो आप देखने वाले है वह है जून 2022 का जब बाबा कांग्रेस सरकार में मंत्री थे तब उन्होंने वादा किया था कि किसी भी हाल में जंगल कटने नहीं देंगे
हसदेव अरण्य मामले को लेकर बाबा लोगो के बीच… लोगो के साथ तो खड़े दिखे पर इसका परिणाम कुछ नहीं निकलता देख शायद लोगों में धीरे धीरे गुस्सा अंदर ही अंदर बढ़ता चला गया… हो सकता है इसी के परिणाम बाबा को चुनाव में देखेने को मिले होंगे, और वे अपने चित परिचित सरगुजा सीट गंवा बैठे जहां के राजघराने से वे आते थे ….इतना ही नहीं शायद इसका गुस्सा सरगुजा संभाग के उन चौदह सीटों पर देखने को मिली जिसमें से कांग्रेस एक भी जगह अपना परचम नहीं लहरा पाई…खैर यह फिलहाल शोध का विषय है, लोगो का कहना है कि बाबा अब जब विपक्ष में आ गए है तो इसे लेकर ज्यादा मुखर दिख रहे है, जंगलो की कटाई का दोषारोपण विपक्ष की राजनीतिक मजबूरीयों के चलते सत्ता पक्ष याने मौजूदा भाजपा की सरकार पर मढ़ रहे है
नो गो एरिया, पेशा कानून का विशेषाधिकार की धज्जियां यहां खुलेआम उड़ते हुए आसानी से देखी जा सकती है, फर्जी ग्राम सभा का मुद्दा सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है पता नहीं जिसकी जांच कभी होगी भी की नही…इस बीच जंगलों में बड़े बड़े पेड़ो के गिरने की आवाजें इस बियाबान जंगल में रहने वाले तमाम तरह के जीव जंतूओं जानवरों के बीच सिरहन पैदा करती ही रही, हाथी तो लगभग बेघर से ही हो गए, उनके लिए लेमरू प्रोजेक्ट लाया गया जिसका क्या हुआ, न किसी को पता न किसी को इसकी खबर…खैर इस पर विस्तार से बात फिर कभी…इन खदानों के जरिए बिजली बनाने वाली कंपनियों के दावे सून कर आपको आश्चर्य होगा, इनके अनुसार पेड़ तो काटे जा रहे है पर उससे ज्यादा इस इलाकों में इनके द्वारा पेड़ लगाए भी जा रहे है, इन कंपनियों की माने तो अब तक लाखों पेड़ लगाए जा चुके है, जिन्हें आप वहां तो नहीं पर इनके द्वारा तमाम छत्तीसगढ़ में लगाए गए बड़े बड़े होर्डिंगों में तस्वीर के रुप में बस देख सकते है, हमारें मित्र मीडियाकर्मी देवेश तिवारी जो शुरु से हसदेव मसले को लेकर काफी मुखर रहते है उन्होंने इन होर्डिंगो और लाखों पेड़ पौधे लगाने के दावों की पड़ताल की जिसमें कई मजेदार बात निकल कर सामने आई
तो देखा आपने बड़े बड़े कंपनी के बड़े बड़े झोल…हसदेव बचाने को लेकर कांग्रेस सरकार के समय विधानसभा में बकायदा अशासकीय संकल्प भी लाया गया, पर इसका भी नतीजा क्या निकला…लोग पूछ रहे है भाई…क्या इससे पेड़ कटना रुक गया….क्या इसकी गारंटी मिल गई की अब आगे से पेड़ ..जंगल नहीं काटे जाऐगे…तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विधानसभा में इस अशासकीय संकल्प का जिक्र करते हुए कहा था कि लेमरु कारीडोर के अंतर्गत जो भी कोल आबंटन एरिया है उसे निरस्त करने की मांग उन्होंने केंद्र से की है
बीच बीच में तत्कालिन सीएम भूपेश बघेल कोयला खनन को सुचारु बिजली आपूर्ति के लिए जरुरी बताते हुए लोगो को भौचक्का कर देते थे, वे कई मौको पर कहते दिखते थे कि बिजली गर नहीं चाहिए तो कोयला खनन बंद कर देते है…पर वे यह नहीं बताते थे कि बिजली किसके लिए चाहिए क्योंकि छत्तीसगढ़ तो बिजली सरपल्स राज्य था और आगे भी रहेगा
इस बीच आम जनों को आज तक यह समझ नहीं आ पा रहा है कि हसदेव जंगल कटाई के असल गुनाहगार आखिर कौन है…कांग्रेस….या….भाजपा……इसे बचाने के लिए कौन उनके साथ खड़ा है….कांग्रेस या भाजपा….इसकी कटाई से आखिरकार कौन रोक सकता है कांग्रेस… या… भाजपा….ऐसा इसलिए क्योंकि यहां कि जनता ने दोनो सरकारों में जंगलों की अंधाधून कटाई देखते आई है जो अभी भी बदस्तूर जारी है, कांग्रेस से पूछा जाए तो इसके लिए कसूरवार भाजपा है और गर भाजपा से पूछा जाए तो इसके वे पूरा का पूरा ठिकरा कांग्रेस के सर फोड़ देती है
राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग ने इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी किया है..पर राज्य सरकार का अपने ही आयोग का आदेश लागू करने का मूड नहीं है। लोग कहने लगे है कि अब तो छत्तीसगढ़ और केंद्र दोनों ही जगह भाजपा की सरकार है. लोगों की सांस, लाखों पेड़ों के विनाश, पर्यावरण का सौदा रद्द किया जा सकता है. चुनाव से पहले भाजपा ने अपनी ‘गारंटी’ में छत्तीसगढ़ के हसदेव को भ्रष्टाचार बताया था. क्योंकि वह जानती थी कि फर्जी ग्रामसभा के आधार पर अनुमति दी गई है.छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में फर्जी ग्रामसभा के आधार पर परसा खदान में आज पेड़ों की कटाई शुरु हुई. इधर राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग ने आज इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी किया है. अब लोग पुछ रहे है कि क्या आदिवासी मुख्यमंत्री अपने ही आयोग का आदेश लागू करवा पाएंगे ?
जंगल की कटाई को लेकर हाल ही मे हुए हिंसक झडप के बाद यह मसला फिर गरमा गया है, विपक्ष इसे मौके के रुप में भूनाने में जूट गई है तो सत्तापक्ष मामला के ठंडे होने का इंतजार एसी बंद कमरों में बैठ कर दूर दूर से ही सुई पटक सन्नाटा लिए हुए इसे देखते हुए अनदेखा कर रही है, हिंसक झड़प के बाद ड्रोन कैमरों से साऊथ के एक्शन फिल्मों की तरह फिल्माकंन करते हुए कैमरामैनों की फौज लिए पीसीसी चीफ अपना विपक्ष धर्म निभाते हुए लोगों के घांव पे मरहम लगाने पीड़ित लोगों के बीच पहुंच गए, दिलासा देते रहे, भाजपा याने सत्तापक्ष को जी भर कर कोसते रहे, आदिवासी मुख्यमंत्री के बारें में न जाने क्या क्या कहा….बस यहीं नहीं कहा कि वे इस जंगल को आखिर बचाऐंगे कैसे…या जब उनकी सरकार सत्ता में थी तब भी पेड़ कटाई क्यों अनवरत चलती रही
बात उन लोगों की जिनकी आत्मा इन्ही जंगलों पर बसी है उनकी पूरी जिंदगी इन्हीं जंगलों के इर्द गिर्द चलती है उनके बाप दादा पूरखों की विरासत है ये जंगल, कोयला बिजली की लच्छेदार राजनीतिक बातें उनकी समझ में नहीं आती न ही कभी आऐंगी क्योंकि इन्ही जंगलो से उनकी सांसे चलती है वे सोच कर सिहर उठते है जब ये जंगल नहीं रहेंगे तो उनकी सांसों उनकी फेफड़ो को कंपन कौन देगा…शायद इसी लिए हर परिस्थिति में भूखे प्यासे रह… चाहे कड़ाके की ठंड हो या भरी गर्मी या फिर मुसलादार बारिश हर मौके पर वे अपने इस जंगल को बचाने पिछले कई सालों से डटे हुए है पूंजीवाद के इस यूग में उन्हें अभी भी आस है वे अपना खून पसीना बहा एक न एक दिन इस जंगल को बचाने में सफल होंगे
इतना सब देखने सूनने के बाद भी मै दांवे के साथ कह सकता हूं आप को अभी तक यह समझ नहीं आ रहा होगा की भाई जब सब चाहते है चाहे भाजपा हो या कांग्रेस या अन्य कोई दल कि हसदेव के जंगल की कटाई बंद हो, आदिवासियों मूलनिवासियों के हक पर डाका डालना बंद हो, फर्जी ग्रामसभा के खेल से पर्दा उठे…फलाना फलाना…बावजूद इसके आखिर जंगल कटने से रुक क्यों नहीं रहा है….सबसे बड़ा सवाल तो यही है….अंत में एक गाना बरबस ही याद आ रहा है ….खन खन की सूनो खनखार…है दुनिया कालाबाजार…..रे पैसा बोलता है ….रे पैसा बोलता है…..