डीजीपी को लेकर दाऊ का रक्तचाप हाई !…केंद्र से दो नामों पर सहमति

छत्तीसगढ़ राज्य में नए डीजीपी को लेकर भारतीय जनता पार्टी में विचार मंथन चल रहा है…. और ऐसी खबर निकल के आ रही है कि इस विचार मंथन से लगभग एक नाम को फाइनल माना जा रहा है ……जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे…., दूसरी ओर आईपीएस लॉबी में भी डीजीपी नियुक्ति को लेकर लाबिंग की कोशिशें तेज हो चुकी है।…. रायपुर से लेकर दिल्ली तक अब इसी की चर्चा है और लगातार कोशिशें जारी हैं।…. प्रदेश में चर्चा यह है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की चिंता नए डीजीपी को लेकर बढ़ती जा रही है… और बताया यह जा रहा है कि इस मसले को लेकर वह पूरी ताकत के साथ दिल्ली से लेकर रायपुर तक आईपीएस जीपी सिंह को डीजीपी बनने से रोकने के लिए जी जान से लगे हुए हैं और ऐडी चोटी का जोर लगा रहे…. भूपेश बघेल जानते हैं कि वह अगर यह नहीं करेंगे तो जीपी सिंह डीजीपी बनते ही उनके लिए कई मुसीबते खड़ी होने लगेगी,….छत्तीसगढ़ की राजनीति में थोड़ी बहुत रुचि रखने वालों को इसके पीछे के कारणों का पता ही होगा
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आपको याद हो कि भूपेश शासनकाल में आईपीएस अधिकारी जीपी सिंह को बहुत सारे प्रकरण बनाकर गिरफ्तार करने की तमाम कोशिश में भूपेश बघेल सरकार की नाकाम रही, कांग्रेस सरकार में जो तमाम प्रकरण और केस जीपी सिंह पर लगाए गए थे सुप्रीम कोर्ट से खारिज होने के बाद और प्रशासनिक अनुमति के बाद आईपीएस जीपी सिंह को शासन ने न केवल बहाल किया…. साथ ही प्रमोशन भी दे दी…. अनुभव और वरिष्ठता के आधार पर राज्य के लिए डीजीपी चयन होने वाली प्रक्रिया में तीन आईपीएस के साथ उनका भी नाम शामिल है। ऐसे में छत्तीसगढ़ कांग्रेस से जूडे कई बड़े नेताओं की दिली इच्छा है की चाहे कोई भी डीजीपी बन जाए लेकिन आईपीएस जीपी सिंह किसी हालत में डीजीपी ना बने …चर्चा तो यह है कि डीजीपी के लिस्ट से जीपी सिंह का नाम हटवाने को लेकर राहुल गांधी तक मसले को लेकर चर्चा हो रही है, छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट के छत्तीसगढ़ दौरे के दौरान भी इस मसले को लेकर बंद कमरे में कई वरिष्ठ कांग्रेसी गंभीर चर्चा कर चुके है
डीजीपी बनने के लिए 30 साल की सेवा जरूरी है। इससे पहले स्पेशल केस में भारत सरकार डीजीपी बनाने की अनुमति दे सकती है। छोटे राज्यों में आईपीएस का कैडर छोटा होता है, इसको देखते हुए भारत सरकार ने डीजीपी के लिए 30 साल की सर्विस की जगह 25 साल कर दिया है।
फिलहाल स्थायी डीजीपी की रेस में ये तीन नाम शामिल है जिसमें आईपीएस अरुण देव गौतम- आईपीएस पवन देव, आईपीएस जीपी सिंह के नाम है, चर्चा यह है कि कांग्रेस की किस्मत इस बार साथ दे रही है और जीपी सिंह के जगह आईपीएस अरुण देव गौतम का नाम लगभग फाइनल हो गया है
केंद्र से दो नामों पर सहमति
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार द्वारा भेजे गए चार वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के नामों के पैनल में से दो नामों पर अपनी सहमति दे दी है। अब डीजीपी पद के लिए अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता के नामों को हरी झंडी दी गई है। इससे यह लगभग स्पष्ट हो गया है कि प्रदेश का अगला डीजीपी इन्हीं दो अधिकारियों में से एक होगा।
राज्य सरकार ने पहले चार वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों – अरुणदेव गौतम, पवन देव, जीपी सिंह और हिमांशु गुप्ता – का पैनल केंद्र को भेजा था। लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसमें से जीपी सिंह और पवन देव के नामों को हटाते हुए दो अधिकारियों – अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता – के नामों को उपयुक्त माना है। अब राज्य सरकार को इन्हीं दोनों नामों में से एक को छत्तीसगढ़ पुलिस के नए डीजीपी के रूप में नियुक्त करना होगा। वर्तमान में अरुणदेव गौतम ही प्रदेश के कार्यवाहक डीजीपी के रूप में पदस्थ हैं।
कौन हैं अरुणदेव गौतम?
अरुणदेव गौतम एक वरिष्ठ और अनुभवी भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी हैं। वह लंबे समय से छत्तीसगढ़ पुलिस में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। वर्तमान में वह डीजीपी के तौर पर कार्यरत हैं और कानून व्यवस्था को बनाए रखने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में उनके कुशल नेतृत्व और रणनीतिक निर्णयों की काफी सराहना की गई है।
हिमांशु गुप्ता की प्रोफाइल भी मजबूत
वहीं दूसरी ओर, हिमांशु गुप्ता भी एक सुलझे हुए अधिकारी माने जाते हैं। प्रशासनिक दक्षता और पुलिसिंग के विभिन्न क्षेत्रों में उनके अनुभव को देखते हुए उनका नाम भी केंद्र द्वारा चुने गए पैनल में शामिल किया गया है। उनकी छवि एक सख्त और संवेदनशील अफसर की रही है। राज्य सरकार के सामने अब अंतिम निर्णय की चुनौती अब जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दो नामों को मंजूरी दे दी है, तो राज्य सरकार को इन दोनों में से किसी एक नाम को अंतिम रूप से डीजीपी पद के लिए चुनना होगा। सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री कार्यालय और गृह विभाग जल्द ही इस पर अंतिम फैसला ले सकते हैं। चूंकि अरुणदेव गौतम पहले से ही इस पद पर कार्यरत हैं, इसलिए उन्हें प्राथमिकता मिलने की संभावना अधिक मानी जा रही है