‘मतभेद हो सकते हैं, मनभेद कभी नहीं’, भाजपा और संघ के रिश्तों पर खुलकर बोले RSS प्रमुख मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भाजपा और संघ के रिश्तों को लेकर बड़ा बयान जारी किया है। मोहन भागवत ने कहा है कि “बीजेपी और संघ में मतभेद हो सकते हैं, मनभेद कभी नहीं। मोहवन भागवत ने ये भी कहा है कि केंद्र और राज्य की सभी सरकारों के साथ संघ का समन्वय रहता है। किसी विषय पर संघ सलाह दे सकता है लेकिन निर्णय बीजेपी का है। उन्होंने कहा कि हम तय करते तो इतना समय लगता क्या।” आपको बता दें कि बीते कुछ समय से ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं संघ और भाजपा के बीच तनाव चल रहा है।
जब संघ ने की राजीव गांधी की मदद
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा- “जयप्रकाश नारायण 1948 में मशाल लेकर संघ को जलाने चले थे लेकिन इमरजेंसी के बाद आकर बोले कि परिवर्तन की आशा आप लोगों से है। प्रणव मुखर्जी भी हमारे मंच पर आए थे। हमारे संघ के स्वयंसेवक कई दलों के अच्छे काम के लिए भी सहयोग करते हैं। राजीव गांधी जब NSUI के अध्यक्ष थे और उनके नागपुर अधिवेशन में खाने को लेकर हंगामा हो गया और हमसे मदद मांगी गई तो हमने अपने में से मदद कराया।
BJP अध्यक्ष के चुनाव पर क्या बोले भागवत?
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा- “मैं शाखा चलाने में माहिर हूं, भाजपा सरकार चलाने में माहिर है। हम एक-दूसरे को सिर्फ सुझाव दे सकते हैं।” भाजपा के नए अध्यक्ष के फैसले में हो रही देरी पर आरएसएस प्रमुख भागवत ने चुटकी लेते हुए कहा, “आप अपना समय लें, हमें कुछ कहने की जरूरत नहीं है।”
संस्कृत को अनिवार्य बनाने की जरूरत नहीं- भागवत
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शिक्षा के मुद्दे पर भी बात की। उन्होंने कहा- “धार्मिक विश्वास कुछ भी हो सकता है लेकिन शिक्षा की सामाजिक मान्यताएं एक होनी चाहिए और मदरसा हो मिशनरी, सब जगह पढ़ाया जाना चाहिए। अंग्रेजी भी पढ़नी चाहिए। हर भाषा की अपनी लंबी परंपरा है जिसमें अच्छे साहित्य हैं। शिक्षा की मुख्य धारा को गुरुकुल पद्धति की तरफ मोड़ना चाहिए। इसी तरह की पढ़ाई फिनलैंड में होती है जो शिक्षा की व्यवस्था में दुनिया में सबसे अच्छी है और आठवीं तक मातृभाषा में पढ़ाई होती है। संस्कृत का कामचलाऊ ज्ञान भारत को समझने वाले सभी व्यक्ति को होना चाहिए। लेकिन अनिवार्य बनाने की जरूरत नहीं है वरना रिएक्शन होता है।”
राष्ट्रीय शिक्षा नीति सही दिशा में उठाया गया कदम- भागवत
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर अपने विचार बताते हुए कहा कि ब्रिटिशों ने भारत पर अपनी शिक्षा प्रणाली थोप दी है और इससे भारतीय शिक्षा प्रणाली लुप्त हो गई. विद्यार्थियों को अपने अतीत के बारे में भी जानना चाहिए. क्योंकि शिक्षा का अर्थ जानकारियों को सिर्फ रटना नहीं है.”
उन्होंने कहा, “तकनीक और आधुनिकता शिक्षा के विरोधी कतई नहीं हैं. लेकिन शिक्षा का मतलब सिर्फ जानकारी देना नहीं है, बल्कि एक इंसान को पूर्ण रूप से सुशिक्षित बनाना है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (NEP) में पंचकोशीय शिक्षा का प्रावधान शामिल है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति सही दिशा में उठाया गया एक कदम है.”
अंग्रेजी सीखने में बुराई नहीं, पर अंग्रेज बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए- भागवत
भागवत ने कहा, “दुनिया के कई देशों से लोग हमारे संघ शिक्षा वर्ग को देखने आए और उन्होंने कहा कि अगर उनके देश में भी आरएसएस जैसा कोई संगठन हो तो यह उनके देश के लिए काफी अच्छा होगा. हमारे मूल्य और परंपराएं विद्यार्थियों को सिखाई जानी चाहिए.”
उन्होंने कहा, “हमें अंग्रेज बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, लेकिन अंग्रेजी सीखने में कोई बुराई नहीं है. क्योंकि यह तो सिर्फ एक भाषा है तो इसे सीखने में क्या समस्या है?”
भारत की मुख्यधारा की शिक्षा को गुरुकुल शिक्षा से जोड़ना चाहिए- भागवत
संघ प्रमुख ने अपने अतीत को याद करते हुए कहा कि जब मैं आठवीं क्लास में था, तो मेरे पिता ने मुझे ओलिवर ट्विस्ट को पढ़ने के लिए कहा था. लेकिन ओलिवर ट्विस्ट को पढ़ना और प्रेमचंद को पीछे छोड़ देना भी सही नहीं है. उन्होंने कहा, “भारत को समझने के लिए संस्कृत को समझ होना जरूरी है. इसके अलावा, मुख्यधारा की शिक्षा को गुरुकुल शिक्षा से जोड़ा जाना चाहिए.”