एक तरफ़ सीजफायर का अनुरोध और दुसरी तरफ़ नक्सलियों ने फिर ले ली ग्रामीण की जान

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में पिछले कुछ समय से नक्सल विरोधी अभियान जोरों पर है। सुरक्षाबलों की लगातार कार्रवाई ने नक्सलियों को कमजोर किया है, जिससे वे बौखलाए और दहशत फैलाने के लिए हिंसक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। हाल में अरनपुर थाना क्षेत्र के निलावाया गांव में नक्सलियों ने एक ग्रामीण बंडी कोर्राम की बेरहमी से हत्या कर दी। हथियारबंद नक्सलियों ने रात में गांव पहुंचकर घर से बाहर बुलाया और धारदार हथियार से हमला कर उसकी जान ले ली। चार साल पहले भी बंडी कोर्राम के बेटे हरेंद्र की हत्या नक्सलियों ने ही की थी। सरकार ने उस समय परिवार को सहायता राशि और बेटी को पुलिस विभाग में नौकरी देने की घोषणा की थी।
नक्सली गतिविधियों पर सुरक्षाबलों की सख्ती
राज्य और केंद्र की सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों में बेहद सख्त अभियान चलाया है। लगातार चल रहे सर्च ऑपरेशन और पुलिसिया दबाव की वजह से माओवादियों की ताकत कमजोर पड़ रही है। हाल के वर्षों में राज्य और स्थानीय फ्रंट की माओवादी कमेटियों की सदस्य संख्या 40 से घटकर केवल 9-10 रह गई है। शीर्ष माओवादी नेता केशवराव उर्फ बसवा राजू की एनकाउंटर में मौत के बाद संगठन और बिखर गया है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, सुरक्षाबलों की अक्षय रणनीति का असर अब साफ दिखने लगा है।
हिंसा के बीच माओवादियों की वार्ता की पहल
अभूतपूर्व घटनाक्रम के तहत, नक्सलियों की ओर से केंद्रीय कमेटी सदस्य अभय के नाम से पत्र जारी हुआ है, जिसमें हथियार छोड़ने और शांति वार्ता की पेशकश की गई है। इस पत्र में मौजूदा परिस्थितियों, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और वरिष्ठ अफसरों की अपील का हवाला देते हुए लिखा गया है कि संगठन ने अस्थायी तौर पर सशस्त्र संघर्ष रोकने और मुख्यधारा में आने का निर्णय लिया है। माओवादी प्रतिनिधिमंडल वार्ता के लिए तैयार है और भविष्य में जनसरोकार के मुद्दों पर लोकतांत्रिक तरीके से संघर्ष की बात कही है।
गांव में दहशत, पुलिस की जांच जारी
ग्रामीण की हत्या के बाद निलावाया गांव सहित पूरे इलाके में दहशत फैल गई है। घटना की सूचना मिलते ही अरनपुर थाना पुलिस और सुरक्षाबल मौके पर पहुंचे, मामले की जांच की जा रही है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह वारदात लोगों के बीच भय पैदा करने की साजिश है, हालांकि सुरक्षाबलों की सख्त कार्रवाई जारी रहेगी।
दंतेवाड़ा की यह घटना बताती है कि नक्सली संकट के इस मोड़ पर अंदरखाने दोहरी रणनीति अपना रहे हैं—एक तरफ विरोध-हिंसा और दूसरी ओर शांति वार्ता का प्रस्ताव। सुरक्षाबलों की सफल रणनीति और सरकार के नेक इरादे माओवादी समस्या के समाधान की दिशा में उम्मीद जगा रहे हैं.