छत्तीसगढ़ में दिव्यांगों के नाम पर 1000 करोड़ का घोटाला, पूर्व मंत्री समेत 7 पूर्व आईएएस CBI जाँच के घेरे में

छत्तीसगढ़ में दिव्यांगों (शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों) के कल्याण के नाम पर 1000 करोड़ रुपये से अधिक का संगठित घोटाला उजागर हुआ है। इस अभूतपूर्व घोटाले के कारण हाईकोर्ट ने CBI जांच के आदेश दिए हैं। यह घोटाला राज्य के प्रशासनिक इतिहास की सबसे बड़ी वित्तीय धांधलियों में शुमार हो गया है, जिसमें शीर्ष स्तर के अधिकारी व पूर्व मंत्री भी जांच के दायरे में हैं.
कैसे उजागर हुआ घोटाला
दरअसल, साल 2004 में छत्तीसगढ़ सरकार ने दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए स्टेट रिसोर्स सेंटर (ARC) नाम से स्वशासी संस्था की स्थापना की। इसका उद्देश्य तकनीकी और प्रशिक्षण सहायता के माध्यम से दिव्यांगों का पुनर्वास करना था। 2012 में इसी के अंतर्गत फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेंटर (पीआरआरसी) की स्थापना की गई, जिसका मुख्य कार्य दिव्यांगों को कृत्रिम अंग और अन्य चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना था।
जब सूचना के अधिकार (RTI) के तहत प्राप्त दस्तावेजों से यह बात सामने आई कि ये संस्थाएं केवल कागजों में ही मौजूद थीं और इनके माध्यम से सरकार से करोड़ों रुपए का अनुदान लेकर कथित गड़बड़ी की जा रही थी। शिकायतों के अनुसार, कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारी इन संस्थाओं में पदाधिकारी के रूप में शामिल थे।
याचिकाकर्ता के नाम पर निकाले वेतन, इसलिए HC पहुंचा मामला
रायपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर ने साल 2018 में अपने वकील के माध्यम से जनहित याचिका लगाई। जिसमें आरोप लगाया गया कि दोनों संस्थान केवल नाममात्र ही सक्रिय थे। कर्मचारियों की नियुक्ति किए बिना ही उनके वेतन के नाम पर करोड़ों रुपए निकाले गए।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसके नाम पर भी पीआरआरसी में काम करने का फर्जी रिकार्ड बनाकर वेतन निकाला गया, जबकि उसने कभी वहां आवेदन या कार्य नहीं किया। कुल मिलाकर इस घोटाले की राशि एक हजार करोड़ रुपए से अधिक बताई जा रही है।
गड़बड़ियों का लगाया आरोप
याचिकाकर्ता ने खुलासा किया कि, उन्हें इसी कथित अस्पताल का कर्मचारी बताते हुए वेतन तक दिया गया था। आरटीआई से पता चला कि नया रायपुर स्थित इस अस्पताल को एक एनजीओ चला रहा है। संस्था के नाम पर बैंक ऑफ इंडिया और एसबीआई मोतीबाग की शाखाओं में फर्जी आधार कार्ड से खाते खोलकर करोड़ों रुपये की निकासी की गई। मामले में उस समय के मुख्य सचिव अजय सिंह ने शपथ पत्र देकर स्वीकार किया कि 150 से 200 करोड़ तक की गड़बड़ियां हुई हैं।
करोड़ों की मशीनें खरीदी गईं
याचिका में बताया गया है कि, खुद याचिकाकर्ता को एक शासकीय अस्पताल राज्य स्त्रोत निःशक्त जन संस्थान में कार्यरत बताते हुए वेतन देने की जानकारी पहले मिली। इसके बाद उन्होंने आरटीआई के तहत जानकारी ली तो पता चला कि नया रायपुर स्थित इस कथित अस्पताल को एक एनजीओ चला रहा है। जिसमें करोड़ों की मशीनें खरीदी गई हैं। इनके रखरखाव में भी करोड़ों का खर्च आना बताया गया। याचिका में कहा गया कि स्टेट रिसोर्स सेंटर का कार्यालय माना रायपुर में बताया गया, जो समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत है।
यह एक संगठित और सुनियोजित अपराध
याचिका में यह भी बताया गया कि, एसआरसी ने बैंक ऑफ इंडिया के अकाउंट और एसबीआई मोतीबाग के तीन एकाउंट से संस्थान में कार्यरत अलग-अलग लोगों के नाम पर फर्जी आधार कार्ड से खाते खुलवाकर रुपए निकाले गए। सुनवाई के दौरान राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव अजय सिंह ने शपथ-पत्र दिया। इसमें उन्होंने 150-200 करोड़ की गलतियां सामने आने की बात कही। हाईकोर्ट ने कहा कि जिसे राज्य के मुख्य सचिव गलतियां और त्रुटि बता रहे हैं, वह एक संगठित और सुनियोजित अपराध है। कोर्ट ने सीबीआई को जांच के लिए निर्देश दिए थे। साथ ही हाईकोर्ट के निर्देश पर घोटाले में फंसे आधा दर्जन से अधिक आईएएस अधिकारियों ने भी अपना जवाब प्रस्तुत किया। इसके बाद अब यह फैसला सुनाया गया है।
6 आईएएस अफसरों के नाम शामिल
याचिका में 6 आईएएस अफसरों- आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एमके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती, समेत सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा पर लगाए गए आरोप प्रारंभिक तौर पर सही पाए गए। पूरे मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस पीपी साहू और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच ने कहा कि, यह महज त्रुटि नहीं बल्कि संगठित और सुनियोजित अपराध है। अदालत ने सीबीआई को आदेश दिया है कि वह 15 दिनों के भीतर सभी संबंधित दस्तावेज जब्त कर जांच शुरू करे। कोर्ट के आदेश के बाद अब इस बहुचर्चित घोटाले में सीबीआई जांच की राह साफ हो गई है।
हाईकोर्ट ने दिए सीबीआई को जांच के आदेश
प्रकरण की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगाते हुए सुनवाई के लिए प्रकरण छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को वापस भेज दिया था। इस पर चल रही सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने अब सीबीआई को जांच का आदेश दिया है। रायपुर के कुशालपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर ने छत्तीसगढ़ के कुछ वर्तमान और रिटायर्ड आईएएस अफसरों पर एनजीओ के नाम पर करोड़ों का घोटाला करने का आरोप लगाते हुए जनहित याचिका 2017 में याचिका दायर की। 2018 में जनहित याचिका के रूप में इसकी सुनवाई शुरू की गई। सुनवाई के दौरान पता चला कि राज्य स्रोत निःशक्त जन संस्थान नाम की संस्था ही नहीं है। सिर्फ कागजों में संस्था का गठन किया गया था। राज्य को संस्था के माध्यम से 1000 करोड़ का वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा, जो कि 2004 से 2018 के बीच में 10 साल से ज्यादा समय तक किया गया।
घोटाले के प्रमुख आरोप
SRC और PRRC के नाम पर कागजी कर्मचारियों की फर्जी नियुक्ति करके वेतन निकाला गया।
नकद भुगतान की प्रवृत्ति से बैंक रिकॉर्ड से बचने का प्रयास किया गया।
कृत्रिम अंग, उपकरण और अन्य मेडिकल सुविधाएँ न खरीदी गईं, बावजूद इसके खर्च दर्शाया गया।
फर्जी NGO व अफसरों के गठजोड़ से वर्षों तक फंड की अवैध निकासी हुई.
जांच का दायरा और सीबीआई की भूमिका
जनहित याचिका, RTI और वित्तीय ऑडिट के आधार पर बिलासपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर ने 2018 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने इसे ‘सिस्टमेटिक करप्शन’ (प्रणालीगत भ्रष्टाचार) बताते हुए स्वतंत्र एजेंसी से जांच की आवश्यकता जताई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि CBI पांच फरवरी 2020 को भोपाल में दर्ज एफआईआर या यदि नई एफआईआर दर्ज होती है तो 15 दिन के भीतर दस्तावेज जब्त कर जांच शुरू करे.
कौन-कौन हैं जाँच के घेरे में?
तत्कालीन मंत्री, उच्च प्रशासनिक अधिकारी: पूर्व महिला एवं बाल विकास मंत्री रेणुका सिंह, पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड, अन्य वरिष्ठ IAS अधिकारी व NGO प्रतिनिधि CBI जांच के मुख्य संदिग्ध हैं। फर्जी नियुक्त कर्मचारियों व सम्बन्धित खातों में पैसों की निकासी से जुड़े प्रशासनिक अधिकारी.
आर्थिक व सामाजिक प्रभाव
दिव्यांगों के पुनर्वास व कल्याण फंड का दुरुपयोग, ज़रूरतमंद दिव्यांगों तक राहत नहीं पहुँची।
हजारों दिव्यांग लाभ, कृत्रिम अंग व उपकरणों से वंचित रह गए।
प्रशासनिक संरचना में विश्वास संकट व भ्रष्टाचार के खिलाफ जन-असंतोष बढ़ा.
यह घोटाला छत्तीसगढ़ में योजनाबद्ध, उच्चस्तरीय प्रशासनिक मिलीभगत का मौन उदाहरण है। इससे दिव्यांगजनकल्याण के नाम पर चलने वाली योजनाओं व NGO के संचालन में पूरी पारदर्शिता और जवाबदेही की सख्त आवश्यकता सामने आई है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई की जांच से राज्य में जिम्मेदार अफसरों व नेताओं पर कार्रवाई तय मानी जा रही है, जिससे भविष्य में ऐसे घोटालों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके.