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बिहार चुनाव 2025: दलित वोट बैंक की जंग, NDA और महागठबंधन की दांवपेंच

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में दलित वोट बैंक की भूमिका निर्णायक होगी। कुल 243 सीटों में से 40 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, जिनके लिए एनडीए और महागठबंधन दोनों ही सिर-उच्च प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। बिहार के दलित समुदाय में सबसे बड़ी आबादी रविदास, पासवान और मांझी की है, जिनका वोट शेयर लगभग 75 प्रतिशत है। यह वोट किसी भी दल के लिए चुनाव का विनिंग फैक्टर बन सकता है।

एनडीए के प्रमुख दलित चेहरे चिराग पासवान और जीतन राम मांझी हैं, जो दलित वर्ग के विभिन्न हिस्सों में प्रभाव रखते हैं। वहीं, महागठबंधन ने भी अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कांग्रेस के राजेश राम को दलित वोटों के लिए रणनीतिक नेतृत्व दिया है। कांग्रेस की रणनीति खासकर रविदास समाज पर केंद्रित है, जो बिहार के दलित मतदाताओं का बड़ा हिस्सा हैं।

एनडीए का फोकस इन 40 आरक्षित सीटों को जीतने पर है, जहां अभी तक महागठबंधन की पकड़ मजबूत है। चिराग पासवान और मांझी की मौजूदगी से एनडीए को मुसहर और पासवान समुदाय के वोट का फायदा मिलने की उम्मीद है।

महागठबंधन, विशेषकर राजद, ने पिछड़ों के बाद दलित वोटों को भी जोड़ने की कोशिश तेज कर दी है, जिसमें वामपंथी सहयोगी दलों की भूमिका अहम है।2020 विधानसभा चुनाव में भाकपा माले के साथ गठबंधन ने कई सीटों पर सफलता पाई थी, जो अब भी महागठबंधन की ताकत बढ़ाने में मदद कर रहा है।

सियासी विश्लेषक मानते हैं कि बिहार के ग्रामीण इलाकों में दलित वोटर्स मुफ्त में किसी एक दल से पूरी तरह नहीं जुड़ते, जिससे दोनों गठबंधनों में कड़ी टक्कर बनी रहती है। इस वोट बैंक के लिए सियासी दलों की तैयारियां और घोषणाएं चुनावी रण में सस्पेंस बनाए हुए हैं।

इस बार बिहार का दलित वोट बैंक चुनावी गणित को धीरे-धीरे बदलने वाला है, जो आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में निर्णायक साबित हो सकता है।

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Regional Desk

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