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SIR प्रक्रिया में बढ़ा विवाद: बीएलओ की मौतों पर राजनीति तेज

देशभर में जारी SIR प्रक्रिया विवाद अब गहराता जा रहा है। 12 राज्यों के 51 करोड़ से अधिक मतदाताओं तक पहुंचने के लिए 5.32 लाख से ज्यादा बीएलओ लगातार घर-घर जाकर काम कर रहे हैं। लेकिन तेज होती राजनीतिक बयानबाज़ी और बढ़ती मौतों ने इस प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सिर्फ 22 दिनों में 7 राज्यों में 25 बीएलओ की मौतों ने स्थिति को और चिंताजनक बना दिया है।

तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि पश्चिम बंगाल में अकेले 34 बीएलओ की मौत हुई है। हालांकि, चुनाव आयोग फिलहाल आधिकारिक रिपोर्टों का इंतजार कर रहा है और किसी भी मौत को काम के दबाव से जोड़ने की पुष्टि नहीं करता। वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आरोप है कि SIR के जरिए “पीछे के दरवाजे से एनआरसी लाया जा रहा है” और इससे जनता में डर फैलाया जा रहा है। इसके विपरीत, भाजपा का कहना है कि TMC फर्जी नाम जोड़कर मतदाता सूची को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने भी स्थिति पर चिंता जताई। उनका कहना है कि एप में तकनीकी दिक्कतें, भारी डेटा अपलोड और रात में काम करने की मजबूरी बीएलओ पर अतिरिक्त दबाव डाल रही हैं।

उधर उत्तर प्रदेश के गोंडा में बीएलओ विपिन यादव द्वारा आत्महत्या और बरेली में सर्वेश गंगवार की अचानक मौत ने परिवारों को प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाने का मौका दिया है। परिजन का कहना है कि SIR प्रक्रिया का दबाव उनके प्रियजनों की जान ले रहा है।

राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने भी इसे गरीब, दलित और पिछड़ों को वोटर लिस्ट से हटाने की साजिश बताया है। जबकि भाजपा इसे विपक्ष का भ्रम फैलाने वाला आरोप कहती है।

सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि SIR को सिर्फ इसलिए गलत नहीं कहा जा सकता कि यह पहले नहीं हुआ। आयोग को फॉर्म-6 की जांच का संवैधानिक अधिकार है।

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Regional Desk

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