ग्राउंड रिपोर्ट : ‘सिलयारी रेलवे फाटक’ यानी सिर दर्द ; जब भी आओ बंद ही पाओ, खुली मिल जाए तो किस्मत की बात है… घंटों इंतजार और जाम की जकड़न से आखिर कब मिलेगी निजात ?
केशव पाल @ रायपुर | राजधानी के आउटर में स्थित सिलयारी रेलवे फाटक व्यापारी, मजदूर, राहगीर, रहवासी समेत स्कूली बच्चों के लिए जी का जंजाल बन गया है। लगातार ट्रेनों के आवाजाही से लंबे समय तक फाटक बंद रहती है। लंबे इंतजार के बाद फाटक खुलती भी है तो वहां लंबी जाम लग जाती है। फाटक खुलने के इंतजार में लोग घंटों खड़े रहते है। तब-तक दूसरी ट्रेन आ धमकती है। देखते ही देखते फाटक के दोनों तरफ वाहनों की लंबी कतार लग जाती है। फाटक खुलते ही लोग जल्दबाजी के चक्कर में दौड़ पड़ते हैं और दुर्घटना का शिकार भी हो जाते है। मजेदार बात तो यह है कि, सभी गाड़ी गेट पार हुई ही नहीं रहती है कि फाटक फिर से बंद हो जाती है। जिससे पीछे की ओर खड़े वाहन चालकों को गाड़ी वहीं पर रोककर दूसरी बार खुलने का इंतजार करना पड़ता है। समस्या का स्थाई समाधान नहीं होने से लोगों में आक्रोश दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। उल्लेखनीय है कि, सिलयारी में आसपास के करीब 30 गांवों के ग्रामीण दैनिक जरूरतों की सामान खरीदने आतें है। रोजगार की सिलसिले में भी आसपास के ग्रामीण यहां के दुकानों में काम करने आते हैं। सरकारी और प्राइवेट स्कूल के स्कूली बच्चे भी पढ़ाई के लिए यहां आते है। लेकिन फाटक हमेशा उन्हें बंद मिलती है। फाटक खुली मिल जाए तो किस्मत की बात है। जब-तक फाटक खुले तब-तक गंतव्य तक पहुंचने में राहगीरों को लेट हो जाता है। बहुचर्चित सिलयारी का रेलवे फाटक समय बे समय ही बंद हो जाने से जहां लोग फाटक में फंसकर परेशान हो रहे है। वहीं फाटक खुलने में हो रही देरी के कारण लंबा जाम लग जाता है। जिससे यातायात व्यवस्था भी प्रभावित हो जाती हैं। यह समस्या रोज की है। पिछले कुछ वर्षों से राहगीर और भी ज्यादा परेशान हैं। फाटक पर जाम की यह समस्या अब आम हो चुकी है। सिलयारी से सारागांव-रायपुर मुख्य मार्ग होने के कारण फाटक से गुजरने के लिए इस मार्ग पर अधिक संख्या में भारी वाहनों का आवागमन होता है। वहीं अस्पताल, बाजार समेत अन्य संसाधन होने के चलते लोग बड़ी संख्या में इसी मार्ग से सफर करते है लेकिन रेलवे फाटक बंद होने की स्थिति में लोग जाम में फंसकर रोजाना ही परेशान होते है। ट्रेनों के लगातार आने-जाने के चलते फाटक को कभी भी बंद कर दिया जाता है। शुक्रवार को भी ऐसा ही नजारा देखने को मिला जब सुबह 11 बजे के आसपास करीब 40 मिनट तक फाटक बंद रहा। एक के बाद एक पांच से छह ट्रेन निकली तब कहीं जाकर गेट को खोला गया। इस दौरान लोग परेशान होते दिखे। कुछ लोग छांव की तलाश में भटकते रहे। खासकर नौकरी पेशा, बैंककर्मी, टीचर, कंपनियों के वर्कर, स्कूली बच्चे जिन्हें समय पर पहुंचना होता है। खासा परेशान रहे। यहां आलम यह है कि, सिग्नल न मिलने की स्थिति में फाटक पर ही इंजन खड़ा हो जाता है। जिससे ये स्थिति और भी गंभीर हो जाती हैं। यहां के एकमात्र रेलवे फाटक के 24 घंटे में 12 घंटे से अधिक समय तक बंद रहने से नागरिकों की परेशानी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ट्रेनों की आवाजाही दोगुनी हो गई है। इसलिए फाटक का खुला मिलना किस्मत की बात है। वैसे भी भारतीय रेल पूरी तरह से निजीकरण के मार्ग में है और उसने अपना जनसेवा का चोला उतार फेंका है। ऐसी अवस्था में यह एक व्यवसायी कंपनी की तरह काम करने वाला संगठन बनते जा रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि, अगर किसी मरीज को अस्पताल ले जाने यहां से गुजरे तो बंद फाटक की वजह से उनकी जान भी चले जाने का डर रहता है। क्योंकि यहां घंटों तक खड़ा होना पड़ता है। लेकिन फाटक अपने नियत समय में ही खुलता है। इसलिए यहां से गुजरना मतलब अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मारने के सामान है।
क्रासिंग पर आधे घंटे से भी ज्यादा देर तक फंसे रहते हैं राहगीर
राहगीरों ने बताया कि, फाटक बंद होने की स्थिति में पांच मिनट के काम में 20 से 30 मिनट लग जाते है। जिसके कारण काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या के समाधान के लिए ओवरब्रिज का निर्माण किया जाना चाहिए अन्यथा जाम की यह समस्या आगामी समय में काफी गंभीर हो जाएगी। बता दें कि, यहां क्रासिंग पर राहगीर 30 मिनट से भी ज्यादा देर तक फंसे रहते हैं। इंतजार से बचने व आपाधापी के चक्कर में राहगीर नियम भी तोड़ते हैं। इस दौरान दुर्घटना की भी आशंका बनी रहती है। गेट खुलने के इंतजार से बचने के लिए दोपहिया-चारपहिया वाहनों के चालक दूसरे रास्ते से क्रासिंग पार करने वापिस लौट जाते हैं। इसी तरह रोजाना कई वाहन चालक शार्टकट सफर तय करते हैं जो उन्हें महंगा पड़ सकता है। कुछ लोग फाटक बंद होने पर तरेसर फाटक या मौंहागांव फाटक की तरफ रूख करते हैं। यह परेशानी तभी दूर होगी जब बंद फाटक ट्रेन क्रास होने के बाद तुरंत या जल्द खुले और रास्ता क्लीयर हो सके। ट्रेन या मालगाड़ी के गुजरते समय लोग 30-35 मिनट तक खड़े रहते हैं। ट्रेन गुजर जाती है फिर भी गेट नहीं खोला जाता है। फाटक खोलने लोग चिल्लाते भी रहते हैं। गर्मी में राहगीर चिलचिलाती धूप में परेशान हो रहें हैं।
फाटक के दोनों ओर आधा किलोमीटर तक लगा रहता है वाहनों की लंबी कतार
वहीं फाटक की दोनों ओर आधा किलोमीटर तक वाहनों की लंबी कतार लगी रहती है। यात्री पैसेंजर ट्रेन की अपेक्षा इस रूट में मालगाड़ियों की आवाजाही ज्यादा होती है। कई मर्तबा आधे घंटे से ज्यादा देर तक फाटक बंद रहता है। दोनों तरफ से मालगाड़ी आने पर साइड देने के लिए भी समय से पहले फाटक बंद कर दिया जाता है। हालांकि फाटक खोलना गेटकीपर के बस में नहीं है, क्योंकि इलेक्ट्रानिक गेट सिस्टम के बंद, खुलने का काम सिग्नल मिलने पर ही होता है। इधर, रेल प्रशासन भी फाटक जल्दी खुलवाने कोई पहल नहीं कर रहे हैं। नागरिकों का कहना है कि अब यहां प्रतिदिन ट्रैफिक का दबाव बढ़ता जा रहा है। इस स्थिति में गेट का देर से खुलना लोगों को परेशान कर रहा है। बंद क्रासिंग में फंसे राहगीर, गेट खुलते ही आने-जाने के लिए जल्दबाजी करते है। ऐसे समय में भी दुर्घटना की आशंका रहती है। वहीं कई मर्तबा दोपहिया वाहन चालक बंद क्रासिंग को भी पार करते हैं। बंद क्रासिंग को जबर्दस्ती पार करते रोज देखा जा सकता है। अधिक समय तक रेलवे फाटक बंद रहने के कारण ज्यादातर लोग क्रासिंग पार करने लगते हैं।